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भारत क्या पाक के जाल में फंस गया

भारी गोलीबारी को मुद्दा बना पाकिस्तान पहुंचा संयुक्त राष्ट्र संघस पूरे मामले के अंतर्ताष्ट्रीयकरण की ओर बढ़ा, अब भारत से कूटनीतिक पहल समय की मांग
भारत क्या पाक के जाल में फंस गया

भारत-पाक सीमा पर गोलीबारी बंद भी हो तो भी यह नहीं कहा जा सकता कि हालात सामान्य हो गई है। कम से कम 1-10 अक्टूबर के बीच सीमा पर जितने बड़े पैमाने पर दोनों तरफ से गोला-बारूद खर्च हुआ, मशीनगनें चलीं, आधुनिक मारक हथियारों का इस्तेमाल किया गया और सब कुछ जल्द ठीक हो जाने के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बयान तथा एक दिन की शांति के बाद गोलीबारी जिस तरह फिर शुरू हो गई, उससे साफ है कि तनाव की काली छाया लंबे समय तक बरकरार रहने वाली है। पाकिस्तान इस पूरे मामले को संयुक्त राष्ट्र के पास ले गया है और उससे हस्तक्षेप की मांग करते हुए मामले के अंतरराष्ट्रीयकरण की अपनी पुरानी ख्वाहिश को पूरा करने की कोशिश की है। जिस तरह से पाकिस्तान ने संयुक्त राष्ट्र को पत्र लिखा उससे लग रहा है कि वह जानबूझकर भारत को इस तरह से घेरना चाहता था। सेना के भीतर और बाहर के जानकारों तथा विदेश कूटनीति के विशेषज्ञों का मानना है कि भारत पाकिस्तान के जाल में फंस गया।

दोनों मुल्कों में से दावा कोई कुछ भी करे, हकीकत यही है कि नुकसान दोनों तरफ को हुआ है, दोनों मुल्कों के आम नागरिक इसकी चपेट में आए हैं, गांव और घर नेस्तनाबूद हुए हैं, जानें तो खैर हलाक हुई ही हैं। इस तनाव की जड़ें निश्चित तौर पर दोनों मुल्कों की सियासत में दबी हुई हैं। इसके जरिये क्या हासिल करने की चाह है, इसका खुलासा तो शायद कभी न हो पाए लेकिन यह तय है कि मकसद सिर्फ सीमा पर गोली-बारूद फेंकना या सौ-पचास को ढेर करना नहीं है। पाकिस्तान यह जानता है कि वह भारत से सीधी-परंपरागत लड़ाई में बीस नहीं पड़ सकता और घरेलू मोर्चों पर ही वह इस बुरी तरह घिरा हुआ है कि उसके लिए इस मोर्चे को खोलना समझदारी भरा कदम नहीं कहा जा सकता। भारत जिस तेजी से पूरे दक्षिण एशिया में एक बड़ी ताकत के रूप में उभरने की तैयारी में है, ऐसे में पाकिस्तान जैसे पहले से अशांत देश से भिड़ना कूटनीतिक दृष्टि से बहुत दूरदृष्टि वाला कदम नहीं कहा जा सकता। सब कुछ के बावजूद हकीकत यही है कि दोनों देशों में घमासान हुआ, लंबा चला और बहुत मारक रहा। निश्चित तौर पर ऐसा अनायास नहीं हुआ, इसके पीछे बहुत सोची समझी रणनीति ही होगी।

दोनों देशों की रणनीति और इससे मिलने वाली कूटनीतिक बढ़त का विश्लेषण करने से पहले जरूरी है जो हुआ उसका आकलन करना। इस पूरे प्रकरण की खासियत यह थी कि सीमा पर तनाव और गोलीबारी की धमक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चुनावी प्रचार के भाषणों में खूब सुनाई दे रही थी। केंद्र सरकार का मामले पर रुख क्या है, इसकी घोषणा इन चुनावी रैलियों में ज्यादा हुई। हरियाणा और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनावों में भाजपा की रैलियों को संबोधित करते हुए नरेंद्र मोदी ने बाकायदा घोषणा की कि इस बार सेना को खुला हाथ दे दिया गया है और पाकिस्तान को सीज फायर उल्लंघन का करारा जवाब दिया जाएगा।

 सीमा पर तनाव से निपटने को भी जिस तरह से इस बार चुनावी मुद्दा बना दिया गया, वैसा संभवत: पहले किसी चुनाव प्रचार के दौरान नहीं देखा गया था। चूंकि सीमा पर जब तनाव चल रहा था, तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी चुनावी रैलियों में अत्यंत व्यस्त थे और रक्षा मंत्री अरुण जेटली स्वास्थ्य लाभ कर रहे थे, लिहाजा प्रधानमंत्री ने इस संकट से निपटने का जिम्मा राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोवाल को सौंपा। उन्हें भी निर्देश यही दिया गया कि किसी भी तरह के दबाव में आए बगैर सख्त कदम उठाने हैं। तनाव के दौरान अजीत डोवाल हर घंटे स्थिति का जायजा ले रहे थे और सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ )अधिकारियों से सीधे संपर्क में थे। बीएसएफ के उच्च पदस्थ सूत्रों से आउटलुक को मिली जानकारी के मुताबिक भारत की तरफ से 5 लाख राउंड गोलीबारी हुई और करीब 10 हजार गोले दागे गए और करारा जवाब देने के राजनीतिक फैसले का कड़ाई से पालन हुआ। मिली जानकारी के अनुसार, जिन हथियारों का हम अभी तक सीमा पर इस तरह की झड़पों में इस्तेमाल नहीं करते रहे हैं, जैसे 105 एमएम और 120 एमएम का मोर्टार, होवित्जर तोप (105 एमएम), रॉकेट बैटरी, उनका इस्तेमाल किया गया। पाकिस्तान की तरफ से भी बड़े मारक हथियारों के इस्तेमाल का प्रमाण मिला है। भारतीय सेना का दावा है कि पाकिस्तान की तरफ के 80 पोस्ट और कई गांव तबाह किए गए जबकि भारत की तरफ के 40 पोस्ट और कई गांव पाक गोलीबारी के निशाने पर आए। भारत में जम्मू से पश्चिम में तवी नदी के किनारे अल्लामाई की कोठी, अब्दुलिया और अरनिया गांव में सबसे ज्यादा तबाही हुई। पाकिस्तान में सियालकोट के आसपास का इलाका गोलीबारी का केंद्र रहा और रार गांव के आसापास के इलाके में तबाही की खबरें हैं। इस पूरे सरहदी इलाके की एक खासियत यह भी है कि यहां का बासमती बेजोड़ है और यहां चावल के खेतों से गम-गम खुशबू महकती है। गोलीबारी में ये सारी फसल तबाह हो गईं। यहां के निवासी जान-माल के नुकसान के साथ फसल बुरी तरह से तबाह होने का भी सियापा कर रहे हैं।   

जहां तक तनाव शुरू होने की बात है, जम्मू से सटे इस सांभा क्षेत्र में हर साल तकरीबन इसी समय तनाव-फायरिंग की घटनाएं होती रहती हैं। बीएसएफ के उच्च अधिकारी के अनुसार, तनाव की शुरुआत बीएसएफ द्वारा पीतल पोस्ट पर 1971 के युद्ध में प्रयुक्त पीतल के चुके हुए गोलों के पुराने जमावड़े के आसपास उग आई झाडि़यों को साफ करने के लिए आग लगाने से हुई। आग लगाए जाने का पाकिस्तान के रेंजर्स ने विरोध किया था और कहा था कि इससे उनके पोस्ट प्रभावित होते हैं। इसके बाद 17 जुलाई को दोनों पक्षों के बीच हुई फ्लैग बैठक के बाद बीएसएफ के एक हवलदार और तीन अन्य घायल हुए थे। सेना के सूत्रों के मुताबिक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 13 जून को ही यह आदेश जारी किया था कि सीमा पर सीजफायर की किसी भी घटना का जमकर जवाब दिया जाना चाहिए। इस घटना के बाद बीएसएफ के जवानों ने किया भी ऐसे ही। पीतल पोस्ट से खूब गोलीबारी हुई। इसके बाद से यह सिलसिला चालू है। पिछले 26 अगस्त को दोनों देशों के मिलिट्री ऑपरेशंस के डायरेक्टर जनरल की फ्लैग बैठक हुई। इसके कुछ ही समय बाद मामला फिर सुलग गया क्योंकि पाकिस्तान की तरफ से निशाना नागिरकों पर लगाया जा रहा था। भारतीय सरहद के आखिरी गांव अरनिया में पाकिस्तानी गोलीबारी से कई ग्रामीणों की मौतें हुई। इसके बाद भारतीय पक्ष से भी जबर्दस्त गोलाबारी शुरू हुई। इस तरह की स्थिति में यह बता पाना तकरीबन असंभव होता है कि पहली गोली कसने चलाई। लेकिन यह बात साफ है कि दोनों ही तरफ से विरोधी देश के निहत्थे नागरिकों को बड़े पैमाने पर निशाना बनाया गया। ऐसा पहले नहीं हुआ करता था। इस बारे में जम्मू-कश्मीर के चप्पे-चप्पे से वाकिफ ब्रिग्रेडियर (सेवानिवृत्त) गुरमीत कंवल ने आउटलुक से बातचीत में कहा, सीमा पर इस तरह के विवादों और झड़पों में विरोधी खेमे की पोस्ट-बैंकरों को तो हम निशाने पर लेते रहे हैं लेकिन इस दफा जिस तरह से परोक्ष फायरिंग जिसका असल निशाना नागरिक थे, वह ठीक नहीं है। दोनों ही तरफ का मकसद एक-दूसरे के निहत्थे नागरिकों को हताहत करना था, यह सरासर गलत था। इधर से भारतीय जवान 81 मिलीमीटर, 105 मिलीमीटर और 120 मिलीमीटर गनों से गोले दाग रहे थे और उधर पाकिस्तान भी 82 मिलीमीटर से गोले दाग रहा था। दोनों तरफ से ही रॉकेट लॉन्चर सहित कई मारक हथियार इस्तेमाल करने की खबरें हैं। इसके साथ एक और बड़ा हैरानी वाला मामला यह रहा कि सीमा पर होने वाली तमाम वार्ताओं से भारत ने हाथ पीछे खींच लिए। भारत के रक्षा मंत्री अरुण जेटली ने कहा, -फायरिंग के बीच वार्ता कैसे हो सकती है। और जब तक यह चलेगी, तब तक शांति नहीं हो सकती। हमारे सशस्त्र बलों, विशेषकर सेना और बीएसएफ के पास सिर्फ एक ही विकल्प है कि वे सामने वाले को पर्याप्त जवाब दें और अपनी एवं अपने देश की हिफाजत करें1--ठीक इसी कड़ी में बीएसएफ के महानिदेशक डी.के. पाठक का यह कहना मायने रखता है, --शांति का प्रस्ताव पाक की तरफ से आया। हम तो हमलावर नहीं हैं। हमने उनका अच्छा खासा नुकसान किया दिया है, फिर भी वे फायरिंग करते रहते हैं1- सेवानिवृत्त ब्रिगेडियर गुरमीत कंवल वार्ता रोकने के सख्त खिलाफ हैं। उनका कहना है कि यह तो युद्ध नहीं था, अगर युद्ध होता तो उसमें भी पहला सिद्धांत यही है कि बातचीत का चैनल हमेशा खुला रखना चाहिए। वह इस मामले को अगस्त में सचिव स्तर की वार्ता को यकबयक खत्म करने से जोड़ते हुए मानते हैं कि यह कूटनीति की दृष्टि से उचित नहीं था।

लेकिन भारत के रवैये ने बड़ी तादाद में वर्तमान तथा पूर्व आम फौजियों एवं वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों में जबर्दस्त उत्साह और सैन्य प्रभुत्व वाली राष्ट्रीयता का भी संचार किया है। सेवानिवृत्त कर्नल एच. साहनी ने आउटलुक को बताया, - जिस तरह से राजनीति के आलाकमान ने सेना पर भरोसा जताया और उसे खुला हाथ दिया, उससे हम वह कर पा रहे हैं, जो पहले नहीं कर पाते थे। करारा जवाब देना राजनीतिक फैसला था1-रक्षा मामलों के जानकार कुणाल वर्मा का कहना है, - पाकिस्तान को भारत ने इस बार जो सबक सिखाया है, वह इतना तगड़ा है कि उसे वह लंबे समय तक याद रहेगा। उधर से आने वाली एक गोली का हम 10 से जवाब दे रहे हैं1-ऐसा ही स्वर कर्नल (सेवानिवृत्त) आर.एस.एन सिंह का था, -पाकिस्तान के छद्म युद्ध का इसी तरह से जवाब दिया जाना चाहिए। पाकिस्तान इस तरह से भारत में घुसपैठियों को भेजना चाहता था, जो हमने नाकाम कर दिया। ङ्त

दूसरी तरफ , फौजी समुदाय का एक बड़ा तबका यह मान कर चल रहा है कि अभी मामला निपटा नहीं है। लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) जे.एस. बाजवा का कहना है कि सीमा पर गोलीबारी कम हुई है, लेकिन फिर कभी भी तेज हो सकती है। तनाव बरकरार है। नवंबर 2003 के बाद इस तरह का तनाव और इतनी अधिक गोलीबारी सीमा पर नहीं हुई थी। दिक्कत यह है कि पाकिस्तान चाहता है कि भारी गोलीबारी हो और बड़ी तोपों तथा भारी हथियार इस्तेमाल हो। वह तो बहुत खुश होगा अगर हम ब्रह्मोस मिसाइल का इस्तेमाल करें, ताकि वह तुंरत संयुक्त राष्ट्र और अमेरिका के पास जाकर हस्तक्षेप की मांग करें। ऐसा पाकिस्तान ने करना भी शुरू कर दिया। इसका जवाब हमें भी कूटनीतिक हमले से करना चाहिए, जिसकी शुरुआत हम भी कर चुके हैं। एक चीज का ख्याल रखना जरूरी है कि सीमा पर अपनी ताकतों को यह स्पष्ट संदेश भी दिया जाए कि इसके आगे नहीं जाना है। जिस हद तक गोलीबारी बढ़ी, उस स्तर पर जाने से बचा जा सकता था और न ही सेना को खुला हाथ जैसी बातें कहने की जरूरत थी क्योंकि इससे दुनिया में दूसरी तरह की छवि जाती है। 

 

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