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नेपाल सरकार संविधान में संशोधन को तैयार मधेशी फिर भी अड़े

नेपाल में चल रहे मधेशी आंदोलन को लेकर राजनीतिक दलों रूख भले ही लचर हो रहा है लेकिन मधेशी नेताओं की मानें तो सरकार पूरी तरह से उनकी मांगों को मानने के लिए तैयार नहीं हैं।
नेपाल सरकार संविधान में संशोधन को तैयार मधेशी फिर भी अड़े

नए संविधान को लेकर पिछले कई महीनों से चल रहे गतिरोध से नेपाल का जन-जीवन बुरी तरह से प्रभावित हो गया है। जिसे देखते हुए राजनीतिक दलों ने प्रदर्शनकारियों के 11 सूत्री मांगों पर कानून में संशोधन के लिए संसद में एक विधेयक लाने का फैसला कर लिया है। यह फैसला नेपाल के प्रधानमंत्री के.पी.शर्मा ओली के आधिकारिक कार्यालय बालूवाटर में तीन प्रमुख पार्टियों -नेपाली कांग्रेस, कम्यु‍निस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (एकीकृत माक्र्स‍वादी-लेनिनवादी) तथा एकीकृत कम्यु‍निस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (यूसीपीएन) की बैठक के दौरान लिया गया। दरअसल भारत की सीमा से लगे दक्षिणी नेपाल के तराई क्षेत्र में मधेसियों के आंदोलन को खत्म कराने को लेकर नेपाल सरकार पूरी तरह से नाकाम रही है। आंदोलन के दौरान नेपाल पुलिस की गोलियों से कई मधेशियों की मौंत भी हो गई। जिसकी भारत सहित संयुक्त‍ राष्ट्र संघ ने भी आलोचना की। संयुञ्चत राष्ट्र संघ ने नेपाल में नए संविधान का मधेसी समुदाय द्वारा किए जा रहे विरोध पर बढ़ रही हिंसा की स्वतंत्र जांच कराने तथा नेपाल के अधिकारियों द्वारा प्रदर्शनकारियों के खिलाफ बल के अधिक प्रयोग पर चिंताओं के बीच तथ्यों की पुष्टि करने की बात कही है।
लगातार आलोचना के कारण नेपाल सरकार ने संविधान में संशोधन का फैसला तो किया है लेकिन मधेशी नेताओं की मानें तो सरकार पूरी तरह से उनकी मांगे मानने को तैयार नहीं दिख रही है। क्योंकि संशोधन का प्रस्ताव सरकार ने रखा है उसमें मधेशियों के हितों को फिर भी नजरअंदाज किया जा रहा है। लेकिन यूसीपीएन (माओवादी) के उपाध्यक्ष नारायण काजी श्रेष्ठ का कहना है कि मधेशी समूहों से परामर्श लेने के बाद ही विधेयक संसद में पेश होगा। लेकिन सोशल रिपब्लिकन पार्टी के अध्यक्ष रामबाबू राय कहते हैं कि सरकार ने कुछ ही लोगों से मंत्रणा करके संविधान में संशोधन का फैसला कर लिया जो कि मधेशियों के व्यापक हित में नहीं है। इसलिए इस संशोधन के बाद भी मधेशी आंदोलन करते रहेंगे।

इस हालात के कारण नेपाल-भारत के संबंधों में तनाव आ गया। पहले नेपाल सरकार की ओर से आरोप लगाया गया कि भारत ने अंतरराष्ट्रीय सीमा पर अघोषित नाकेबंदी कर रखी है। जिसकी भारत सरकार ने जमकर आलोचना की। आंदोलन के कारण भारत से नेपाल को मिलने वाले सामानों की आपूर्ति भी बाधित हुई। इस बाधा को देखते हुए नेपाल सरकार ने चीन से संपर्क साधा। चीन से कुछ जरूरी सामानों की आपूर्ति भी हुई लेकिन नेपाल का संकट कम नहीं हुआ। बताया जा रहा है कि लगातार बढ़ रहे संकट के कारण नेपाल सरकार संविधान में संशोधन के लिए तैयार हुई और भारत से पहले की तरह संबंध सुधारने की पहल भी। भारत में नेपाल के राजदूत दीप कुमार उपाध्याय कहते हैं कि भारत सरकार के साथ मिलकर समस्या का समाधान ढूढ़ा जा रहा है। उपाध्याय के मुताबिक अगर समाधान नहीं निकला तो नेपाल के हालात भूकंप से हुई तबाही से भी ज्यादा पीड़ादायक हो जाएगा।
उधर भारत नेपाल सीमा पर अभी भी तनाव बना हुआ है। सौनौली के रास्ते नेपाल के भैरवाहा जाने वाले रास्तों पर ट्रकों की लंबी कतार लगी हुई है। सामानों की आपूर्ति नहीं होने से ट्रक चालक भी परेशान हो चुके हैं। भारत से नेपाल जाने वाले सैलानियों की संख्या‍ भी कम होती जा रही है। जिससे नेपाल के लोग भी परेशान हैं। गौरतलब है कि नेपाल में पर्यटन आजीविका का प्रमुख स्रोत है और पर्यटकों के न आने के कारण स्थिति भयावह हो गई है। नेपाल में भारत के राजदूत रंजीत राय के मुताबिक जल्द की गतिरोध समाप्त हो जाएगा। राय के मुताबिक नेपाल सरकार और मधेसी समूहों के बीच वार्ता का जो दौर शुरू हुआ है उससे बीच का रास्ता जरूर निकलेगा।

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