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अंगकोर से आगे हो भारत-कंबोडिया संबंधों की तलाश

कंबोडिया सरकार के अंगकोर सलाहकार प्रो. सच्चिदानंद सहाय खमेर इतिहास में टूटी हुई कड़ियों को जोड़ना चाहते हैं। वह यहां इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आईजीएनसीए) में इस बारे में एक व्याख्यान के सिलसिले में आए थे। उन्होंने कहा, दक्षिण पूर्व एशियाई देश कंबोडिया को विभिन्न महाद्वीपों में उसके प्राचीनतम अंगकोर मंदिरों के लिए जाना जाता है। वास्तुकला के मामले में यह मंदिर दक्षिण भारत के तमिलनाडु के पल्लव और चोल मंदिरो के समान है लेकिन यह कहानी का सिर्फ एक पहलू है।
अंगकोर से आगे हो भारत-कंबोडिया संबंधों की तलाश

प्रोफेसर सहाय का कहना है कि एक खास पर्यटन आकर्षण से ऊपर उठते हुए भारत को आगे बढ़कर दुनिया को बताना चाहिए कि कंबोडिया में भारत का सदियों पुराना सांस्कृतिक प्रभाव गहरा है। वह 'अंगकोर: भारत और दक्षिण की साझा सांस्कृतिक विरासत’ पर व्याख्यान दे रहे थे। प्रो. सच्चिदानंद ने खेद प्रकट करते हुए कहा कि 9 वीं शताब्दी ईस्वी के बाद से 600 साल तक तक फलने-फूलने वाले खमेर साम्राज्य के दौरान इस क्षेत्र में भारतीय सौंदर्यशास्त्र और भारतीय आख्यान पूरे विस्तार एवं गहराई तक हावी थे हालांकि वैश्विक परिप्रेक्ष्य इस तथ्य से काफी हद तक अनजान है या इसे नजरअंदाज कर दिया गया। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि उत्तर पश्चिमी कंबोडिया के साथ पूरा क्षेत्र पूरी संवेदनशीलता के साथ भारतीय प्रभाव से भरा पड़ा है।

आईजीएनसीए के सदस्य सचिव डॉ सच्चिदानंद जोशी की अध्यक्षता में आयोजित एक सत्र में उन्होंने कहा, दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक स्मारक के रूप में प्रसिद्ध अंगकोर वाट मंदिर के लगातार पुनरुद्धार के रूप में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के हाल के योगदान के बावजूद यह तथ्य धूमिल होता जा रहा है।

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