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नेपाल के पुनर्निर्माण का सवाल

25 अप्रैल को नेपाल में आए भूकंप से व्यापक तबाही हुई है। इससे नेपाल में महात्रासदी की स्थिति पैदा हो गई है। भूकंप के एक माह से ज्यादा समय गुजर जाने के बाद लगातार कंपन जारी है। बारह अप्रैल को 7.3 रेक्टर की तीव्रता ने स्थिति को जटिल बनाने के साथ ही लोगों का सामान्य जीवन तबाह कर दिया है। भारी संख्या में लोग खुले आसमान के नीचे राते गुजारने के लिए बाध्य हैं। पीड़ितों के पास अब तक पर्याप्त राहत सामग्री नहीं पहुंच पाई है। दूर-दराज के क्षेत्रों में स्थिति और भी भयावह है। सरकारी मदद अब तक इन स्थानों तक नहीं पहुंची है। राज्य सरकारों की अनुपस्थिति ने शासकीय शून्यता को जन्म दिया है। वर्षों से वहां पर नौकरशाहों का राज है। स्थानीय स्तर पर निर्वाचित और उत्तरदायी शासन के अभाव ने राहत कार्यों में गंभीर स्थिति को जन्म दिया है।
नेपाल के पुनर्निर्माण का सवाल

 

गृह  मंत्रालय के अनुसार अभी तक 8659 जानें जा चुकी हैं और 21952 लोग बुरी तरह से जख्मी हैं। दुखद बात यह है की घायलों की निरंतर मौत जारी है। इस भूकंप ने तकरीबन 6 लाख घरों को क्षतिग्रस्त किया है। इससे बड़ी तादाद में सरकारी भवन भी शामिल हैं। सरकारी भवनों के ढह जाने की वजह से सरकारी कामकाज भी प्रभावित हुआ है। सर्वोच्च अदालत, प्रधानमंत्री एवं योजना आयोग का भवन भी इसकी चपेट में है। सर्वोच्च अदालत के अलावा कई जिला अदालतों के भवन क्षतिग्रस्त हो जाने से नेपाल की न्यायिक प्रक्रिया गंभीर रूप से प्रभावित हुई है। न्यायिक प्रक्रिया का इतने समय तक निलंबित होना नेपाल के इतिहास में अपने आप में प्रथम घटना है। 

 

भूकंप ने नेपाल में तकरीबन 80 लाख लोगों को प्रत्यक्ष रूप में अपनी गिरफ्त में ले लिया है। तकरीबन छह लाख मकान ढह गए हैं, जिसमें दस हजार स्कूल भी शामिल हैं। कुछ ही दिनों में मानसून शुरू हो जाएगा और तत्काल स्थायी आवास का निर्माण करना मुमकिन नहीं होगा। बारिश शुरू होते ही यातायात गंभीर रूप से प्रभावित होगा और आवश्यक सामाग्रियों को दूर दराज के इलाको में पहुचाना असंभव होगा। इसके लिए भारी संसाधन और राजनैतिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता होगी। किसी भी प्राकृतिक विपत्ति में राहत एक अल्पकालीन कार्यक्रम होता है और दीर्घकालीन रूप से पुर्नस्थापना और पुनर्निर्माण की प्रक्रिया को अमली जामा पहनाने का काम होता है।

इस त्रासदी को अवसर में बदलने की जरूरत है। त्रासदी को नेपाल के पुनर्निर्माण के अवसर के रूप में कैसे तब्दील किया जाए इस पर गंभीर विमर्श की आवश्यकता है। नेपाल भूकंपीय रूप से अत्यंत जोखिम भरा क्षेत्र है यह सभी को पता है। बावजूद नेपाल में कोई एहतियाती कदम नहीं लिया गया। इससे संबंधित कानूनी प्रबंधों की अनदेखी की गई। वर्षों पहले बनी इमारतों में भवन संहिता का पालन नहीं हुआ। भू उपयोगी संबंधी कानून निर्मित नहीं किया गया। गांवों में स्थानीय स्रोत साधनों के जरिये कम कीमत पर भूकंप प्रतिरोधी मकान कैसे बनाया जा सकता है इस पर जनचेतना जाग्रत करने और कानूनी रूप से इसको मान्य बनाने के लिए राज्य ने कोई तत्परता और इच्छाशक्ति नहीं दिखाई। बेतरतीब ढंग से शहरीकरण हुआ। नवधनाढ्य भू माफिया का तेजी से उदय हुआ। भवन संहिता संबंधी कानूनी प्रबंधों का खुला उल्लंघन कर बड़ी तदाद में बहुमंजिला भवनों का निर्माण हुआ। इस प्रक्रिया में  भू माफिया,  भ्रष्ट राजनीतिक व्यक्तियों तथा उत्तरदायित्वविहिन नौकरशाही के अपवित्र गठजोड़ ने जनहित को पूर्ण रूप से नजरअंदाज किया। राजनैतिक लोकतंत्र की तरह विकास भी जनता के लिए जनता द्वारा संपन्न और पर्यावरण के हित में हो। नेपाल लोक केंद्रित विकास मॉडल का नया नमूना दक्षिण एशिया देशों के बीच प्रस्तुत कर सकता है। 

 

किसी भी प्राकृतिक संकट में मानवीय सहायता प्राप्त करना नागरिकों का मूलभूत अधिकार है।  यह सिर्फ दान और पुण्य का मामला नहीं है। प्राकृतिक संकट की स्थिति में लोगों को मानवीय सहायता प्रदान करना राज्य का पहला कर्तव्य है। राज्य को हर हालत में लोगों के जीवन और आत्मसम्मान की रक्षा करनी चाहिए।

 

तकरीबन सारा दक्षिण एशियाई क्षेत्र भूकंप के उच्च जोखिम में है। इसलिए इस क्षेत्र में भूकंप से होने वाली मानवीय और आर्थिक क्षति को व्यापक न्यूनतम साझा प्रयासों की जरूरत है।  नेपाल के भूकंप की स्थिति में भारत सहित बहुत सारे देश जिस तेजी से मदद के लिए आगे आए वह सराहनीय है। उल्लेखनीय बात यह है कि नागरिकों के स्तर पर भी स्वत:स्फूर्त क्रियाशीलता देखने को मिली। इस प्रक्रिया में नए नागरिक समाज का उदय हो रहा है। यह इसका सुखद पक्ष है। ऐसी स्थिति में दक्षिण एशियाई देश के नागरिक समाज को इस दिशा में ठोस और सक्रिय ढंग से आगे आने की जरूरत है। इसी संदर्भ में भूकंप के बाद नेपाल के पुनर्निमाण प्रक्रिया में नागरिक स्तर की भागीदारी के लिए और जायज नागरिक सरोकारों को ठोस अभिव्यक्ति के लिए हाल ही में, दक्षिण एशिया फिक्रमंद नागरिक समाज का निर्माण हुआ है। जिसकी कुछ बैठकें नई दिल्ली और पटना में हो चुकी हैं। इन बैठकों को दक्षिण एशिया के अन्य देशों में विस्तार देने की प्रक्रिया जारी है। ताकि दक्षिण एशियाई देशों के नागरिकों को नेपाल की पुनर्निर्माण प्रक्रिया से जोड़ा जा सके। जाहिर है इस नागरिक केंद्रित प्रक्रिया से दक्षिण एशियाई देश के लोगों को एक-दूसरों से जुड़ने के साथ ही पीपुल्स डिप्लोमेसी की प्रक्रिया को भी व्यापक बल मिलेगा।

 

(लेखक नेपाल की सर्वोच्च अदालत में अधिवक्ता हैं।)

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