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ऐतिहासिक मुकाम, लेखकों के इस्तीफे का बवंडर

ऐतिहासिक मुकाम, लेखकों के इस्तीफे का बवंडर

देश के सभी कोनों से, सभी भाषाओं में एक ही आवाज उठ रही है। यह अपने आप में ऐतिहासिक परिघटना है। इससे पहले इस देश में इतने बड़े पैमाने पर लेखकों-साहित्यकारों-रंगकर्मियों ने एक साथ एक ही मुद्दे पर मिलकर आवाज नहीं उठाई थी। वे सब अलग-अलग राज्यों से, अपनी-अपनी भाषाओं में एक ही स्वर बोल रहे हैं।
डबराल, जोशी समेत कई साहित्‍यकारों ने लौटाए पुरस्‍कार

डबराल, जोशी समेत कई साहित्‍यकारों ने लौटाए पुरस्‍कार

सांप्रदायिक राजनीति, अभिव्‍यक्ति की आजादी पर बढ़ते हमलों और बढ़ती असहिष्‍णुता के खिलाफ साहित्‍य अ‍कादमी पुरस्‍कार लौटाने का सिलसिला तेज होता जा रहा है। अब तक विभिन्‍न भाषाओं के करीब 15 साहित्‍यकार पुरस्‍कार लौटा चुके हैं।
भगवान बालाजी का डीमैट खाता, पहुंचे दलाल स्ट्रीट

भगवान बालाजी का डीमैट खाता, पहुंचे दलाल स्ट्रीट

दलाल स्ट्रीट को सबसे महंगा सदस्य मिल गया है। तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम (टीटीडी) के भगवान बालाजी का यहां खाता खुल चका है। इस बारे में टीटीडी प्रबंधन का कहना है कि अब भक्त यहां शेयर और प्रतिभूतियों का भी दान कर सकते हैं।
पुरी में सदी की प्रथम नबकलेबर रथ यात्रा

पुरी में सदी की प्रथम नबकलेबर रथ यात्रा

कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच भगवान जगन्नाथ की सदी की प्रथम नबकलेबर यात्रा पुरी में शनिवार को पारंपरिक श्रद्धा और उल्लास के साथ निकाली गई। देश विदेश से लाखों श्रद्धालु भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा की नयी मूर्तियों की नौ दिनों की यात्रा देखने के लिए पुरी आए हैं। यह यात्रा गुंडीचा मंदिर तक होगी और वहां से अपने अपने मूल स्थान पर लौटेगी।
अहमदाबाद में रथयात्रा और ईद का उल्‍लास

अहमदाबाद में रथयात्रा और ईद का उल्‍लास

सुरक्षा एजेंसियों की भारी चौकसी के बीच शहर में आज भगवान जगन्नाथ की 138 वीं रथयात्रा और ईद उल फित्र का त्योहार मनाया गया। ये दोनों त्योहार 30 वर्ष बाद संयोग से एक ही दिन मनाये गये। धूमधाम से शुरू हुई इस रथयात्रा में हजारों श्रद्धालुओं ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया।
मन का व्यायाम है विपश्यना

मन का व्यायाम है विपश्यना

जब से नेताओं के विपश्यना करने की खबरें आने लगी हैं तब से आम लोगों की भी इसमें रुचि बढ़ रही है। हालांकि यह पुरानी परंपरा है। इसे आत्मनिरीक्षण द्वारा आत्मशुद्धि की बहुत पुरानी साधना-विधि माना जाता है। भगवान गौतम बुद्ध ने विलुप्त हुई इस पद्धति का पुन: अनुसंधान कर इसे जीवन जीने की कला के रूप में बनाया।
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