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जर्मनी में बोले पीएम मोदी- 1975 में आपातकाल भारत के लोकतंत्र के जीवंत इतिहास पर एक 'ब्लैक स्पॉट, लोगों ने लोकतांत्रिक तरीके से दिया इसका जवाब

जर्मनी में बोले पीएम मोदी- 1975 में आपातकाल भारत के लोकतंत्र के जीवंत इतिहास पर एक 'ब्लैक स्पॉट, लोगों ने लोकतांत्रिक तरीके से दिया इसका जवाब

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 1975 में आपातकाल लागू करने को भारतीय लोकतंत्र के जीवंत इतिहास पर 'काला...
रेडियो को सक्रिय एवं जीवंत रखें देशवासी : प्रधानमंत्री मोदी

रेडियो को सक्रिय एवं जीवंत रखें देशवासी : प्रधानमंत्री मोदी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज विश्व रेडियो दिवस के मौके पर सभी रेडियो प्रेमियों और इस क्षेत्र मंं काम करने वाले लोगों को आज शुभकामनाएं दी।
'इंडिया इन ए डे' में एक निरंतर परिवर्तनशील राष्ट्र की झलक

'इंडिया इन ए डे' में एक निरंतर परिवर्तनशील राष्ट्र की झलक

रिची मेहता की बेहद जीवंत और दिल को छू लेने वाली डॉक्यूमेंट्री इंडिया इन ए डे उन अनोखे नाम वाली फिल्मों में शुमार है जिन्हें 41वें टोरंटो अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में दिखाया जाना है।
हिंदू कॉलेज में जीवंत हुए प्रेमचंद

हिंदू कॉलेज में जीवंत हुए प्रेमचंद

प्रेमचंद ने जातिभेद पर तीखा प्रहार किया है जो हमारे समाज के लिए आज भी रोशनी का स्रोत है। कफन और सद्गति से काफी पहले मुक्ति मार्ग में वह इस समस्या से गंभीर मुठभेड़ कर चुके थे और उनका लेखन इस समस्या को दिखाता ही नहीं बल्कि इसे हल करने की दिशा भी देता है।
45 साल बाद भारत-पाक सीमा पर जीवंत 'बैटल आॅफ लोंगेवाला'

45 साल बाद भारत-पाक सीमा पर जीवंत 'बैटल आॅफ लोंगेवाला'

वर्ष 1971 के युद्ध में लोंगेवाला में पाकिस्तानी सेना की पूरी टैंक ब्रिगेड को भारतीय थलसेना की 23 पंजाब की टुकड़ी ने धूल चटा दी थी। थलसेना ने इस गौरवशाली युद्ध को 45 साल बाद जीवंत कर दिखाया है।
वीरेन का जाना, जीवंत वामपंथी प्रतिज्ञा को गहरा आघात

वीरेन का जाना, जीवंत वामपंथी प्रतिज्ञा को गहरा आघात

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अमेरिकी साम्राज्यवाद और राष्ट्रीय स्तर पर नरेंद्र मोदी-मार्का हिंदुत्ववादी फासीवाद के मौजूदा वर्चस्व के दौर में वीरेन डंगवाल (1948-2015) की कविता किसी आत्मीय, जीवंत, वामपंथी प्रतिज्ञा की तरह सामने आती है।
सेवा की जीवंत मिसाल थीं सिस्टर निर्मला

सेवा की जीवंत मिसाल थीं सिस्टर निर्मला

नोबेल पुरस्कार विजेता मदर टेरेसा के बाद मिशनरीज आफ चैरिटी का काम-काज संभालने वाली सिस्टर निर्मला जोशी का पूरा जीवन गरीबों और समाज के पिछड़े तबके के लोगों के उत्थान के प्रति ही समर्पित रहा। प्रचार और सुर्खियों से कोसों दूर रहने वाली सिस्टर निर्मला में प्रतिकूल परिस्थितियों में भी सच के साथ खड़े रहने का साहस था। उन्होंने कभी किसी गलत आरोप या अफवाह के सामने सिर नहीं झुकाया। बातचीत में तो इतनी विनम्र कि एकबार उनसे मुलाकात करने वाला उनका मुरीद बन जाता था।
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