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किसका दामन थामेंगे अजित सिंह !

राजनीतिक गलियारों में इन दिनो दावे किए जा रहे हैं कि अजित सिंह की पार्टी रालोद और समाजवादी पार्टी में 'डील' हो चुकी है और इसकी बस घोषणा होनी बाक़ी है। मगर वहीं अजित सिंह को निकट से जानने वालों की मानें तो दिल्ली अभी दूर है। बक़ौल उनके सिंह अभी कम से कम एक बार ताश के पत्ते और फेंटेंगे और अन्य सम्भावनाओं को टटोलने का पुनः प्रयास करेंगे ।
किसका दामन थामेंगे अजित सिंह !

इन क़यासों को को हाल ही में उस समय और बल मिला जब रालोद के मंत्री और अजित सिंह के पुत्र जयंत चौधरी ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अपने दौरे में पार्टी कार्यकर्ताओं से कहा कि पार्टी का अभी कोई समझोता नहीं हुआ है। उन्‍होंने कहा कि कार्यकर्ता अकेले चुनाव लड़ने की ही तैयारी करें। उन्होंने पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अनेक जनपदों के प्रभारियो की नियुक्ति की भी घोषणा कर दी है।

रालोद प्रमुख इन दिनो विदेश में हैं। उनकी वापसी तीस जून तक होने की सम्भावना है। पार्टी के महासचिव त्रिलोक त्यागी बताते हैं कि किस पार्टी से समझाैता होगा, यह पार्टी अध्यक्ष की वापसी के बाद ही तय होगा। वह कहते हैं कि प्रदेश में भाजपा को रोकने के लिए पार्टी धर्मनिरपेक्ष ताकतो के एक होने पर काम कर रही है। यही वजह रही कि हाल ही में राज्यसभा चुनावों में पार्टी के दो विधायकों ने कांग्रेस को और छह ने समाजवादी पार्टी को वोट किया। वहीं विधान परिषद चुनाव में भी पार्टी के चार विधायकों ने कांग्रेस और चार ने सपा को वोट दिया। इसी का नतीजा हुआ कि इन दोनो चुनावों में भाजपा के प्रत्याशी हार गए। बता दें कि इससे पूर्व विधान परिषद चुनाव में पार्टी विधायकों ने बसपा को भी वोट किया था।

स्मरण हो कि सभी दलों में अपनी ग़ोटी फ़िट रखने वाले अजित सिंह अगले साल उत्तर प्रदेश में होने वाले विधान सभा चुनावों के लिए भी कई नावों में पैर रखे हुए हैं। कुछ माह पूर्व प्रदेश में बिहार की तर्ज़ पर महागठबंधन बनाने को उनकी नीतीश कुमार और शरद यादव से चर्चा हुई। बात कहांं अटकी यह ख़ुलासा तो नहीं किया गया मगर इसी बीच कांग्रेस के साथ जाने को लेकर सोनिया गांधी से उन्होंने मुलाक़ात कर ली। बताया गया कि अजित सिंह ने समझौते के एवज़ में कांग्रेस से अपने लिए राज्यसभा की सीट मांंगी थी मगर सोनिया गांधी इस पर राज़ी नहीं हुईं। इसके बाद भाजपा अध्यक्ष अमित शाही से भी उनकी पींगे बढ़ीं। सूत्रों का दावा है कि अजित सिंह ने पचास सीटें मांंगी थीं और भाजपा तीस से पैंतीस सीटें देने को तैयार भी हो गई थी, मगर इसी बीच पार्टी की उत्तर प्रदेश इकाई के सुझाव पर भाजपा ने अजित सिंह के समक्ष विलय की शर्त रख दी। इस पर भाजपा से नाराज होकर अजित सिंह ने मुलायम सिंह से भेंट की और समझौते का प्रस्ताव रखा राज्यसभा की सीट, दो मंत्री पद और चुनाव में पचास सीटें मांग लीं। चर्चाओं के दौर में ही राज्य सभा चुनाव का समय निकल गया और सपा की ओर से हरी झंडी नहीं मिली। इसी से नाराज़ अजित सिंह अब कोई नई खिचड़ी पकाने के मूड में हैं। पार्टी के सूत्र बताते हैं कि वे सपा और कांग्रेस दोनो को साथ लेकर चलना चाहते हैं मगर उसके भी आसार अभी दिखाई नहीं पड़ रहे।

उधर राजनीतिक गलियारो में चर्चा है कि मोलभाव करने में सिद्धस्त अजित सिंह इस बार भी कोई फ़ायदे का सौदा ही करेंगे। बता दें कि इसी सौदेबाज़ी के दम पर वे केंद्र में जनता दल सरकार में उद्योग मंत्री, नरसिम्हा राव सरकार में खाद्य मंत्री, अटल बिहारी बाजपेई सरकार में कृषि मंत्री और मनमोहन सिंह सरकार में नागरिक उड्डयन मंत्री पद हासिल कर चुके हैं। उत्तर प्रदेश में भी वे बसपा को छोड़ अन्य सभी दलों के साथ जा चुके हैं। इस बार अजित सिंह की गलबहियांं किस दल के साथ होगी, यह बस अगले कुछ दिनो में ही तय हो जाएगा।

 

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