Advertisement

मोदी को बीच में ही छोड़ चले गए ये टीम मेंबर, किसी ने काम-काज पर उठाए सवाल तो किसी ने साधी चुप्पी

अच्छे दिन के वादे, इकोनॉमी की रफ्तार के साथ-साथ और भी कई तरह के वादों और उम्मीदों के साथ 2014 में मोदी सरकार...
मोदी को बीच में ही छोड़ चले गए ये टीम मेंबर, किसी ने काम-काज पर उठाए सवाल तो किसी ने साधी चुप्पी

अच्छे दिन के वादे, इकोनॉमी की रफ्तार के साथ-साथ और भी कई तरह के वादों और उम्मीदों के साथ 2014 में मोदी सरकार सत्ता में आई थी। सत्ता पर काबिज होने के बाद तमाम तरह के वादों और उम्मीदों को पूरा करने के लिए मोदी सरकार ने देश में प्रमुख पोजीशन पर वैश्विक स्तर के अर्थशास्त्रियों से लेकर अन्य प्रमुख लोगों को बैठाया जो उन्हें पूरा कर सकें। इस कड़ी में पहला नाम था अरविंद पनगढ़िया का, जिन्हें सरकार ने नीति आयोग का वाइस चेयरमैन बनाया। इसी तरह वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार का पद अरविंद सुब्रमण्यन को दिया गया। आरबीआई गवर्नर के रूप में रघुराम राजन जैसे हैवीवेट के बाद उर्जित पटेल को कमान दी। वहीं, राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग में सरकार ने पी सी मोहनन और जे वी मीनाक्षी दोनों को ही स्वतंत्र सदस्य की कमान सौंपी। लेकिन सरकार ने जिस उम्मीद के साथ इन लोगों को ये कमान सौंपी थी उसे उन्होंने बीच रास्ते में ही छोड़ दिया यानि किसी ने तो सरकार के कामकाज के रवैय्ये पर नाराजगी जताई तो किसी ने बिना कुछ बोले मोदी सरकार से किनारा कर लिया।

आइए जानते हैं उन लोगों के बारे में जिन्होंने मोदी सरकार का कार्यकाल पूरा होने से पहले ही उनका साथ बीच रास्ते में ही छोड़ दिया-  

पीसी मोहनन और जेवी मीनाक्षी

मंगलवार को सांख्यिकी आयोग के दो स्वतंत्र सदस्यों पी सी मोहनन और जे वी मीनाक्षी ने सरकार के साथ कुछ मुद्दों पर असहमति होने के चलते इस्तीफा दे दिया है। मोहनन भारतीय सांख्यिकी सेवा के पूर्व सदस्य हैं और आयोग के चेयरपर्सन भी रह चुके हैं। वहीं मीनाक्षी दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में प्रोफेसर हैं। दोनों ही स्वतंत्र सदस्यों को जून, 2017 में एनएससी का सदस्‍य नियुक्‍त किया गया था। दोनों को तीन साल का कार्यकाल दिया गया था, जो 2020 में पूरा होना था।

एक रिपोर्ट के मुताबिक, पीसी मोहनन का कहना है, हमें कई महीनों से लग रहा था कि हमें कोई गंभीरता से नहीं ले रहा है और किनारे लगाया जा रहा है। नेशनल स्टेटिस्टिकल कमिशन के फैसलों को लागू नहीं किया जा रहा था। बता दें कि पिछले साल जुलाई में इस कमीशन ने जीडीपी आंकड़ों की समीक्षा कर बताया था कि यूपीए के समय 2010-11 में जीडीपी 10.08 फीसदी हो गई थी। मगर सरकार ने उनकी रिपोर्ट पलट दी। इस्तीफे का एक कारण यह भी बताया जा रहा है।

उर्जित पटेल

जब सरकार और आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन के बीच मतभेद बढ़े थे, तब उर्जित पटेल को उनकी जगह लाया गया। माना जा रहा था कि सरकार रघुराम राजन का कार्यकाल बढ़ा सकती है लेकिन सरकार ने ऐसा नहीं किया। 4 सितंबर 2016 को आरबीआई गवर्नर का पद संभालने वाले उर्जित पटेल ने कार्यकाल पूरा होने से 9 महीने पहले ही इस्तीफा दे दिया था। सितंबर 2019 में पटेल का कार्यकाल खत्म होने वाला था।

पटेल के तत्काल प्रभाव से दिए गए इस्तीफे का मतलब साफ था कि आरबीआई और केन्द्र सरकार के बीच तालमेल पूरी तरह बिखर गया है और पटेल के लिए इस पद पर खुद को जारी रखना नामुमकिन हो गया था। केन्द्रीय बैंक गवर्नर और केन्द्र सरकार में स्वायत्तता को लेकर विवाद खड़ा हुआ था। विवाद केन्द्र सरकार द्वारा आरबीआई के खजाने में पड़े सिक्योरिटी डिपॉजिट को लेकर था। केन्द्र सरकार केन्द्रीय रिजर्व से अधिक अंश की मांग कर रहा था। हालांकि इस विवाद के बाद केन्द्र सरकार ने बयान दिया था कि उसके और आरबीआई के बीच स्वायत्तता को लेकर कोई विवाद नहीं है।

दरअसल, आरबीआई और केन्द्र सरकार के बीच कई संवेदनशील मामलों में विवाद की स्थिति का खुलासा अक्टूबर के अंत में तब हुआ था जब आरबीआई के डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने दावा किया था कि आरबीआई के कामकाज में दखल देने से देश के लिए खतरनाक स्थिति पैदा हो सकती है। आचार्य के इस बयान के बाद वित्त मंत्री अरुण जेटली ने आरबीआई पर आरोप लगाया था कि 2008 से 2014 तक केन्द्रीय बैंक ने कर्ज बांटने के काम की अनदेखी की और देश के सामने गंभीर एनपीए की समस्या खड़ी हो गई।

वहीं, केन्द्र सरकार और आरबीआई के बीच जारी विवाद में आरबीआई एक्ट के सेक्शन 7 के इस्तेमाल की भी बात सामने आई थी। इस सेक्शन के तहत केन्द्र सरकार जनहित में अहम मुद्दों पर आरबीआई को फरमान देने का काम कर सकती है। इस विवाद के बीच केन्द्र सरकार द्वारा सेक्शन-7 को पहली बार इस्तेमाल किए जाने की बात कही गई थी। हालांकि केन्द्र सरकार ने मामले में सफाई देते हुए कहा था कि उसने इस सेक्शन का इस्तेमाल नहीं किया है। वहीं, वित्त मंत्री जेटली ने कहा था कि आरबीआई एक्ट कहता है कि केन्द्र सरकार गंभीर मामलों में सलाह देने का काम करती है और दावा किया कि केन्द्र सरकार इसी प्रावधान के तहत सिर्फ सलाह देती है।

प्राइवेट और सरकारी संस्थानों में कई महत्वपूर्ण पदों पर रह चुके हैं पटेल

पटेल ने 1998 से 2001 तक वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों के विभाग के सलाहकार के तौर पर काम किया। वह प्राइवेट और सरकारी संस्थानों में कई महत्वपूर्ण पदों पर रह चुके हैं। उर्जित बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप और रिलायंस इंडस्ट्रीज के लिए भी काम कर चुके हैं। वह केंद्रीय बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन के साथ वॉशिंगटन में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (इंटरनेशनल मोनेट्री फंड) में 1990 से 1995 तक कार्य कर चुके हैं। उन्होंने 7 जनवरी 2013 को आरबीआई के डिप्‍टी गवर्नर का पद संभाला। इसके बाद आरबीआई के गवर्नर बने।

अरविंद सुब्रमण्यन

मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यन ने 16 अक्टूबर 2014 से 20 जून 2018 तक इस पद पर रहे। उन्होंने सरकार से कार्यकाल न बढ़ाने की अपील की थी। उन्होंने कहा था कि पारिवारिक जिम्मेदारियों के कारण वह अमेरिका लौट रहे हैं। केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली ने फेसबुक पोस्ट के जरिये यह जानकारी दी थी। सुब्रमण्यन को 16 अक्टूबर 2014 को वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार नियुक्त किया गया था। उनकी नियुक्ति तीन साल के लिए हुई थी। 2017 में उनका कार्यकाल एक साल के लिए बढ़ाया गया था।

अरविंद सुब्रमण्यन ने हाल ही में रिलीज अपनी किताब 'ऑफ काउंसेल: द चैलेंजेज ऑफ द मोदी-जेटली इकोनॉमी' में जीएसटी समेत मोदी सरकार की कई नीतियों की आलोचना की है। उन्होंने आगाह किया कि भारतीय अर्थव्यवस्था कुछ समय के लिए मंदी के दौर में फंस सकती है। उन्होंने कहा कि बजट में वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) से राजस्व वसूली का लक्ष्य तर्कसंगत नहीं है।

सुब्रमण्यन ने कहा, 'बजट में जीएसटी से वसूली के लिए जो लक्ष्य रखा गया है, वह व्यवहारिक नहीं है। मैं स्पष्ट तौर पर कहूंगा कि बजट में जीएसटी के लिए अतार्किक लक्ष्य रखा गया है। इसमें 16-17 प्रतिशत (वृद्धि) की बात कही गई है।' सुब्रमण्यन ने कहा था कि भारतीय रिजर्व बैंक की स्वायत्तता में कटौती नहीं की जानी चाहिए। हालांकि उन्होंने कहा कि आरबीआई की अतिरिक्त आरक्षित राशि का इस्तेमाल सार्वजनिक क्षेत्रों के बैंकों के पूंजीकरण के लिए करना चाहिए न कि सरकार के राजकोषीय घाटे को कम करने के लिए।

 

अरविंद पनगढ़िया

 

अरविंद पनगढ़िया जनवरी 2015 से अगस्त 2017 तक नीति आयोग के उपाध्यक्ष रहे। पनगढ़िया भारतीय मूल के अमेरिकी अर्थशास्त्री हैं और कोलंबिया विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर हैं। उनका नाम दुनिया के सबसे अनुभवी अर्थशास्त्रियों में लिया जाता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने जब योजना आयोग को खत्म कर नीति आयोग गठन किया था, तब पनगढ़िया को बड़ी जिम्मेदारी देते हुए उपाध्यक्ष चुना गया था। पनगढ़िया कई पुस्तक भी लिख चुके हैं। उनकी पुस्तक "इंडिया द इमरजिंग ज्वाइंट 2008" में इकोनॉमिस्ट की ओर से सबसे अधिक पढ़ी जाने वाली पुस्तक में शामिल हो चुकी है। मार्च 2012 में उन्हें देश के तीसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से नवाजा जा चुका है। पनगढ़िया को जनवरी 2015 में नीति आयोग का पहला उपाध्यक्ष बनाया गया था, जिन्होंने 1 अगस्त 2017 को अपने पद से इस्तीफा दे दिया।

 

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोर से
Advertisement
Advertisement
Advertisement
  Close Ad