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केजरी के खिलाफ खुद उतरे मोदी

चुनावों की घोषणा के साथ ही दिल्ली में सियासी पारा चढ़ गया है। दिल्ली विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल की चुनौती को भारतीय जनता पार्टी इतनी गंभीरता से ले रही है
केजरी के खिलाफ खुद उतरे मोदी


चुनावों की घोषणा के साथ ही दिल्ली में सियासी पारा चढ़ गया है। दिल्ली विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल की चुनौती को भारतीय जनता पार्टी इतनी गंभीरता से ले रही है कि चुनाव की घोषणा से ठीक पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी रैली में शब्दों के लगभग सभी तीर उन पर ही बरसाए। दिल्ली की समस्याएं हल करने के लिए ठोस सकारात्मक एजेंडा से ज्यादा उनका जोर अरविंद केजरीवाल के व्यक्तित्व पर निशाना साधने पर रहा। उन्होने बिना नाम लिए केजरीवाल को 'अराजकÓ, 'नक्सलीÓ, 'झूठ शास्त्रीÓ और क्या-क्या नहीं कहा।    
 हालांकि प्रधानमंत्री ने कोई घोषणा नहीं की लेकिन दिल्ली की बुनियादी समस्याओं का जिक्र  जरूर किया। जिनका जिक्र कांग्रेस और 'आपÓ भी करती रही है। गत लोकसभा चुनाव के बाद चार राज्यों में जीत से उत्साहित भाजपा का नारा भी है कि हरियाणा, महाराष्ट्र, जम्मू-कश्मीर और झारखंड के बाद अब दिल्ली की बारी है। निर्विवाद स्थानीय नेतृत्व के अभाव में पिछले तीन दशक से दिल्ली में सरकार बनाने का सपना संजोए भाजपा को नरेंद्र मोदी के नाम का ही सहारा है इसलिए भाजपा कार्यकर्ता यह भी नारा देते हैं कि चलो चलें मोदी के साथ।
दूसरी तरफ आम आदमी पार्टी के नेता अरविन्द केजरीवाल एक बार फिर दिल्ली में सरकार बनाने का सपना देख रहे हैं। साल 2013 के विधानसभा चुनाव से पूर्व गठित आम आदमी पार्टी ने पहली बार में ही 28 सीटें हासिल कर भाजपा और कांग्रेस दोनों को चौका दिया। उस समय भाजपा करीब 34 फीसद वोट लाकर नंबर एक पार्टी बनी। उसे 32 सीटें मिलीं यानी अगर उसे दो-तीन फीसद वोट ही और मिल जाते तो 70 सदस्यों वाली विधानसभा में बहुमत मिल जाता। उस चुनाव में आप को 29.50 फीसद वोट और कांग्रेस को 24.50 फीसद वोट मिले। लेकिन विधानसभा में किसी को पूर्ण बहुमत नहीं मिलने से सरकार बनाने को लेकर ऊहापोह की स्थिति बनी रही। कांग्रेस के समर्थन से अरविन्द केजरीवाल मुख्यमंत्री बने और दिल्ली की जनता पर अपनी छाप भी छोड़ी लेकिन महज 49 दिनों में मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने वाले अरविन्द केजरीवाल विपक्ष के निशाने पर आ गए। उन्हें भगोड़ा तक कहा जाने लगा।
एक साल तक राष्ट्रपति शासन के बाद जब चुनाव हो रहे हैं तो मुकाबला भाजपा और 'आपÓ के बीच ही नजर आ रहा रहा है। भाजपा भी 'आपÓ से ही अपनी लड़ाई मान रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में अरविन्द केजरीवाल पर ही निशाना साधा। हालांकि भाजपा नेताओं का तर्क है कि मुकाबला त्रिकोणीय है लेकिन नरेंद्र मोदी के भाषण से यह साफ हो गया कि मुकाबला त्रिकोणीय नहीं है। भाजपा अपने प्रचार कार्यक्रमों में भी केजरीवाल पर निशाना साधती नजर आ रही है। 'आपÓ नेता मनीष सिसोदिया कहते हैं कि भाजपा की अब पोल खुलती नजर आ रही है। विकास के झूठे दावे को भी जनता समझ चुकी है। ऐसे में आम आदमी पार्टी ही दिल्ली की जनता के लिए विकल्प है। सिसोदिया कहते हैं कि इस बार उम्मीद है कि जनता पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाने का मौका देगी। मुख्यमंत्री का पद छोडऩे का केजरीवाल का तर्क भी यही है कि पूर्ण बहुमत नहीं होने के निर्णय लेने में दिक्कत होती थी। ऐसे में आम आदमी पार्टी इस बार पूर्ण बहुमत के नारे के साथ दिल्ली की जनता के बीच प्रचार-प्रसार कर रही है।
इन दोनों से अलग कांग्रेस अपने बड़े नेताओं को विधानसभा चुनाव में उतारने की तैयारी कर रही है जिनमें अजय माकन, महाबल मिश्रा, जयप्रकाश अग्रवाल का नाम प्रमुखता से लिया जा रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित चुनाव लड़ेगी या नहीं, स्थिति अभी साफ नहीं है। लेकिन इतना तय है कि कांग्रेस इस बार किसी एक नाम को लेकर चुनाव नहीं लड़ेगी। कांग्रेस सूत्रों के मुताबिक यह संभव है कि पार्टी महासचिव अजय माकन को चुनाव प्रचार अभियान की जिम्मेदारी सौंप कर कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाए। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरविन्दर सिंह लवली कहते हैं कि कांग्रेस ने पंद्रह सालों के शासन में दिल्ली का विकास किया है और दिल्ली की जनता एक बार फिर कांग्रेस का शासन देखना चाहती है।
भाजपा अगर अपना वोट प्रतिशत बढ़ाती है तो निश्चित तौर पर पिछले विधानसभा चुनाव के मुकाबले पार्टी फायदे में रहेगी। लेकिन अब भी दिल्ली की एक बड़ी आबादी, जो झुज्गी-झोंपड़ी में रहती है केजरीवाल को मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहती है। अगर रिक्शा चालकों, ऑटो चालकों से बात की जाए तो उनका समर्थन केजरीवाल को ही मिलता नजर आ रहा है। लोकसभा चुनाव के दौरान भी दिल्ली की सभी सातों सीटों पर 'आपÓ दूसरे नंबर पर थी। उस चुनाव में अल्पसंख्यक वोट कांग्रेस के बजाय आम आदमी पार्टी को मिल गए तो कांग्रेस के वोट घटकर 15 फीसद पर आ गए। मोदी की आंधी में भाजपा को 46 फीसद वोट मिले और इसीलिए आप के वोट तीन फीसद बढऩे के बावजूद उसे कोई सीट नहीं मिली।
लेकिन विधानसभा चुनाव की स्थिति कुछ अलग होगी। अगर भाजपा अपना वोट प्रतिशत पिछले चुनाव के मुकाबले बढ़ाती है तो सरकार बनाने की स्थिति में होगी। अगर आम आदमी पार्टी कांग्रेस के वोट प्रतिशत में सेंध लगा ले तो भी मुकाबला दिलचस्प होगा। जिस तरह से भाजपा ने अपने मंत्रियों को दिल्ली विधानसभा में प्रचार-प्रसार के लिए लगा रखा है उससे जाहिर है कि पार्टी को संदेह है कि मुकाबला आसान नहीं है। इसलिए हर एक विधानसभा क्षेत्र में केंद्रीय मंत्रियों की सभाओं का आयोजन हो रहा है ताकि भाजपा के पक्ष में माहौल बनाया जा सके। लेकिन प्रधानमंत्री की रामलीला मैदान में आयोजित रैली में जिस तरह से भीड़ कम दिखी उससे भाजपा कार्यकर्ताओं का मनोबल जरूर कम हुआ है। इस रैली के जरिये दरअसल पार्टी अपनी ताकत दिखाना चाहती थी। लोकसभा चुनाव के दौरान रामलीला मैदान में जो भाजपा की रैली आयोजित हुई थी उसकी भीड़ इस रैली से कई गुना ज्यादा थी।
 मोदी ने दिल्ली की जनता से कोई बड़ा वादा नहीं किया। इतना जरूर कहा कि हरियाणा से पानी के लिए चल रहा विवाद खत्म होगा और 2022 तक दिल्ली के हर झुज्गी वाले को अपना घर मिल जाएगा। कुछ ही ऐसी घोषणा कांग्रेस के शासन में भी हुई थी लेकिन दिल्ली वालों को कुछ नहीं मिला। झुज्गी-झोपड़ी एकता मंच के अध्यक्ष जवाहर सिंह कहते हैं कि हर राजनीतिक दल चुनाव आने के समय तरह-तरह के वादे करता हैं लेकिन अब जनता सोच-समझकर वोट देगी। दिल्ली में बड़ी आबादी मुस्लिम और सिख मतदाताओं की है। अगर कांग्रेस का पलड़ा कमजोर रहा तो मुस्लिम मतदाता आम आदमी पार्टी के साथ जा सकते हैं। वहीं सिख मतदाताओं का रुख भी साफ नहीं है। भाजपा और अकाली दल बादल मिलकर चुनाव लड़ेंगे लेकिन पंजाब में आई दोनों दलों के बीच की खटास का असर यहां भी देखा जा सकता है।


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एक करोड़ तीस लाख मतदाता तय करेंगे भविष्य

सात फरवरी को होने वाले विधानसभा चुनाव में एक करोड़ तीस लाख मतदाता दिल्ली की 70 विधानसभा पर उम्मीदवारों का भविष्य तय करेंगे। भाजपा, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच मुख्य मुकाबला होना है। मुख्य चुनाव आयुक्त वीएस संपत के मुताबिक एक दिन में ही मतदान की प्रक्रिया पूरी कर ली जाएगी और 10 फरवरी को मतों की गिनती की जाएगी। आयोग ने मतदाताओं की संख्या को देखते हुए 11763 पोलिंग बूथ बनाने की घोषणा की है। दिल्ली की 70 विधानसभा सीटों में से 12 आरक्षित हैं। गौरतलब है कि दिल्ली विधानसभा का पिछला चुनाव दिसंबर 2013 में हुआ था। अरविंद केजरीवाल द्वारा 14 फरवरी 2014 को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के कारण विधानसभा निलंबित हो गई जिसे 4 नवंबर 2014 को भंग कर दिया गया था।


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