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असम में मतदान से दूर रहेंगे उग्रवादी

असम विधानसभा चुनाव इस बार उग्रवाद के प्रभाव से मुक्त रहने की संभावना है। भले ही चुनाव प्रचार के दौरान उग्रवादी संगठन उम्मीदवारों को डरा-धमकाकर कुछ वसूलने का प्रयास करें या किसी हिंसक वारदात को अंजाम दें, लेकिन कोई भी उग्रवादी संगठन इस चुनाव को प्रभावित करने की स्थिति में नहीं है।
असम में मतदान से दूर रहेंगे उग्रवादी

इसके पहले हर चुनाव में अल्फा चुनाव को प्रभावित करने का प्रयास करता था। इसके लिए फतवे जारी करता था और किसी खास राजनीतिक दल को चेतावनी देता था, लेकिन इस बार अल्फा इस स्थिति में नहीं है कि पूरे चुनाव को प्रभावित करे। यदि वह फतवा जारी भी करता है तो शायद ही कोई माने। लेकिन यह संभव है कि कुछ अल्फा उग्रवादी किसी हिस्से में जाकर किसी हिंसक वारदात को अंजाम दें। अरसे बाद असम में विधानसभा चुनाव किसी उग्रवादी संगठन के हस्तक्षेप से मुक्त होगा। इसके पहले 1991, 1996, 2001 और 2006 के चुनाव को अल्फा प्रभावित करने में सफल रहा। 2011 के विधानसभा चुनाव में भी उसने चुनाव को प्रभावित करने का प्रयास किया था, लेकिन उसकी चली नहीं। विभाजन के बाद परेश बरुवा गुट चुनाव में सीधे हस्तक्षेत्र की स्थिति में नहीं है और अरविंद राजखोवा गुट चुनाव प्रक्रिया से पूरी तरह अलग रहना चाहता है। यह गुट यह भी नहीं चाहता है कि अल्फा से जुड़ा कोई मुद्दा इस चुनाव में उठाया जाए। रविवार को अल्फा के महासचिव अनूप सेतिया ने चुनाव के दौरान गुप्त हत्या का मामला उठाना का सीधा विरोध किया है। सेतिया चुनाव प्रक्रिया के दौरान केंद्र सरकार से वार्ता के पक्ष में भी नहीं है। यानी यह साफ हो गया है कि अल्फा का शांतिवार्ता समर्थक गुट इस चुनाव से पूरी तरह अलग रहेगा। पहली बार अल्फा की तरफ से इस तरफ का स्पष्ट विचार आया है।

चुनाव के दौरान ब्रह्मपुत्र घाटी में जहां अल्फा का प्रत्यक्ष हस्तक्षेप होता था, वहीं बोड़ोलैंड में बोड़ो उग्रवादी चुपचाप किसी खास राजनीतिक दल के समर्थन में काम करते थे। लेकिन इस बार बोड़ोलैंड में सक्रिय रहे नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट आफ बोड़ोलैंड के संगबिजित गुट की हालत खास्ता है। सुरक्षाबलों के सतत अभियान के वजह से उग्रवादी इधर-उधर भाग रहे हैं और कुछ ने भूटान के जंगलों में शरण ले रखी है। एनडीएफबी के अन्य गुट भारत सरकार से शांति वार्ता कर रहे हैं। इसलिए इस बार बोड़ोलैंड में उग्रवादी हिंसा की आशंका नहीं है। इस बार भले ही उग्रवादी हिंसा की आशंका बेहद कम है, लेकिन गुटीय हिंसा की आशंका है। जिस तरह के राजनीतिक समीकरण बने हैं, उनमें हार-जीत का अंतर काफी कम होगा और हर दल चुनाव जीतने के लिए हर तरह का तरीका अपनाना चाहेगा। ऐसे में गुटीय हिंसा की आशंका ज्यादा है।

अच्छी बात यह है कि सुरक्षा एजेंसियों को इस खतरे का अहसास है और उसी के अनुरूप सुरक्षा व्यवस्था की तैयारी की जा रही है। संवेदनशील मतदान केंद्रों की सुरक्षा के लिए विशेष इंतजाम किए  जा रहे हैं। भयमुक्त मतदान के लिए यह जरूरी है। 

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