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ध्रुवीकरण: वोट का नया हिजाब, चुनाव के दौरान फिर धार्मिक मुद्दे भड़काने की कोशिश

“चुनाव के दौरान फिर धार्मिक मुद्दे भड़काने की कोशिश, कर्नाटक सरकार के आदेश से बढ़ा तनाव” जब धर्म और...
ध्रुवीकरण: वोट का नया हिजाब, चुनाव के दौरान फिर धार्मिक मुद्दे भड़काने की कोशिश

“चुनाव के दौरान फिर धार्मिक मुद्दे भड़काने की कोशिश, कर्नाटक सरकार के आदेश से बढ़ा तनाव”

जब धर्म और जाति ध्रुवीकरण चुनाव में जीत का फॉर्मूला बन जाए तो न सिर्फ उस फॉर्मूले को बार-बार आजमाया जाता है, बल्कि महंगाई, शिक्षा, बेरोजगारी जैसे मुद्दों से आमजन का ध्यान हटाने में भी उसका इस्तेमाल होता है। इसलिए आश्चर्य नहीं कि पांच राज्यों, खास कर उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव से ऐन  पहले हिजाब का नया विवाद खड़ा हो गया। कर्नाटक के उडुपी से शुरू हुआ यह विवाद कई प्रदेशों में फैल चुका है। कर्नाटक में कई जगहों पर हिजाब पहनने से मना करने पर छात्राओं ने परीक्षा में बैठने से इनकार कर दिया। छात्राओं, अभिभावकों और स्कूल मैनेजमेंट के बीच रोजाना तकरार की घटनाएं हो रही हैं। मुस्लिम टीचरों को स्कूल गेट से बाहर ही बुर्का उतारने को कहा जा रहा है। विवाद को प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है। हिजाब पहनने की अनुमति मांग रही छात्राओं की याचिकाओं पर फिलहाल कर्नाटक हाइकोर्ट में सुनवाई चल रही है और उसका फैसला आने तक सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई से मना कर दिया है।

उडुपी के प्री यूनिवर्सिटी (पीयू) कॉलेज से शुरू हुए विवाद को राज्य सरकार आसानी से सुलझा सकती थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा भी कि विवाद को दिल्ली तक मत लाइए। लेकिन पीयू ने तनाव बढ़ाने का ही काम किया। पीयू ने 5 फरवरी को कर्नाटक शिक्षा कानून 1983 की धारा 133(2) के तहत आदेश जारी किया। इसमें कहा गया कि हिजाब मुसलमानों की आवश्यक धार्मिक प्रथा नहीं जिसकी संविधान के तहत रक्षा की जाए। हिजाब पर पाबंदी मौलिक अधिकारों का उल्लंघन भी नहीं है। राज्य सरकार ने इसके लिए हाइकोर्ट के तीन फैसलों का हवाला दिया। उसने आदेश दिया कि कॉलेज ऐसे परिधान पर रोक लगाएं जिनसे कानून-व्यवस्था बाधित होती हो।

सवाल है कि हिजाब पहनने से कानून-व्यवस्था कैसे बिगड़ सकती है? मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई हिजाब के विरोध और उसके खिलाफ लड़कों की प्रतिक्रिया को वाजिब कैसे ठहरा सकते हैं? हाइकोर्ट के चीफ जस्टिस ऋतुराज अवस्थी, जस्टिस जेएम काजी और जस्टिस कृष्णा दीक्षित ने अंतरिम आदेश में कहा कि जब तक मामले का निपटारा नहीं होता तब तक छात्र-छात्राएं धार्मिक परिधान न पहनें। चीफ जस्टिस ने सुनवाई के दौरान मीडिया को मौखिक ऑब्जर्वेशन के आधार पर खबरें लिखने से मना किया था, लेकिन मुख्यमंत्री ने उसी ऑब्जर्वेशन के आधार पर मीडिया से कह दिया कि तीन जजों की बेंच ने कॉलेज में धार्मिक परिधान नहीं पहनने का आदेश दिया है। उसके बाद सरकार ने शिक्षण संस्थाओं को निर्देश दिया कि जिन कॉलेजों में यूनिफॉर्म का नियम है वहां सख्ती से उसका पालन किया जाए, जहां यूनिफॉर्म नहीं है वहां ड्रेस कोड तय किया जाए।

इस मामले पर इंडिपेंडेंट काउंसिल और पूर्व जज भरत चुघ आउटलुक से कहते हैं, “किसी भी धार्मिक गतिविधि पर तभी रोक लगाई जा सकती है, जब उससे कानून-व्यवस्था बिगड़ने और हिंसा भड़कने की आशंका हो। लेकिन कुछ लड़कियों के हिजाब पहनने से कानून-व्यवस्था कैसे बिगड़ रही है, यह मेरी समझ से परे है। हिजाब पर रोक का निर्णय असंवैधानिक है।” चुघ की बात को आगे बढ़ाते हुए सुप्रीम कोर्ट के वकील तल्हा अब्दुल रहनान कहते हैं, “हिजाब पहनना पब्लिक ऑर्डर का मुद्दा कैसे हो सकता है? अगर ऐसा होता भी है तो सरकार को लड़कियों के अधिकारों की रक्षा करते हुए उन्हें सुरक्षा देनी चाहिए।” उन्होंने सबरीमाला का उदाहरण दिया। वहां भी सरकार ने कहा था कि महिलाएं के मंदिर में प्रवेश करने से अराजक स्थिति उत्पन्न हो सकती है। लेकिन कोर्ट ने कहा, यह सरकार की जिम्मेदारी है कि ऐसी स्थिति उत्पन्न न होने दे।

विवाद की शुरुआत पिछले साल अक्टूबर में हुई (देखें बॉक्स) जब एबीवीपी के एक प्रदर्शन में हिजाब पहनी कुछ छात्राएं दिखीं। उडुपी पीयू कॉलेज की उन छात्राओं का कहना था कि उन्हें जबरन प्रदर्शन में शामिल किया गया। अभिभावकों ने कॉलेज प्रबंधन से इसकी शिकायत की। कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया (सीएफआइ) अभिभावकों के साथ था। उसके बाद ही हिजाब का विरोध शुरू हुआ और हिंदू छात्र भगवा स्कार्फ पहनकर आ गए। तब कॉलेज ने हिजाब पर रोक लगा दी। छात्राओं ने 31 दिसंबर को प्रदर्शन किया और कहा कि उन्हें 15 दिनों से कक्षा में जाने नहीं दिया जा रहा है। उडुपी के भाजपा विधायक और कॉलेज डेवलपमेंट कमेटी के प्रमुख रघुपति भट्ट ने अभिभावकों और अन्य लोगों के साथ बैठक की और छात्राओं से कॉलेज का ड्रेस कोड पहनने के लिए कहा।

इसका असर प्रदेश के दूसरे हिस्सों में भी दिखा। बेंगलूरू में छात्रों और पुलिस के बीच झड़प हुई। चिकमंगलूर के आइडीएसजी सरकारी कॉलेज में छात्र मुस्लिम छात्राओं के समर्थन में नीले रंग का स्कार्फ पहन कर आने लगे। उडुपी पीयू कॉलेज के प्रिंसिपल रुद्र गौड़ा का कहना है कि पहले भी छात्राएं कैंपस में हिजाब पहनकर आती थीं, लेकिन कक्षा में घुसने से पहले उसे उतार देती थीं। 35 वर्षों से कोई भी छात्रा कक्षा में हिजाब नहीं पहनती थी। हालांकि छात्राओं का कहना है कि वे हमेशा हिजाब पहनकर जाती रही हैं।

फिलहाल इस पर हाइकोर्ट में बहस चल रही है। छात्राओं के वकील का कहना है कि कानून-व्यवस्था के नाम पर सरकार मौलिक अधिकारों पर रोक नहीं लगा सकती है। सिखों के पगड़ी पहनने पर पाबंदी नहीं है, इसलिए हिजाब पर रोक लगाना समानता के अधिकार का उल्लंघन है। वकील देवदत्त कामत ने कहा कि सरकार के आदेश से अनुच्छेद 25 के तहत मिले संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन होता है। उन्होंने दलील दी कि केंद्र सरकार की तरफ से चलाए जाने वाले सभी सेंट्रल स्कूलों में हिजाब पहनने की अनुमति है। वहां छात्राएं यूनिफार्म के रंग का ही हिजाब पहनती हैं। उन्होंने राज्य सरकार की तरफ से कॉलेज डेवलपमेंट कमेटी को यूनिफॉर्म तय करने का अधिकार देने पर भी सवाल उठाए हैं, क्योंकि आम तौर पर इन कमेटियों के प्रमुख विधायक होते हैं। छात्राओं के एक अन्य वकील संजय हेगड़े ने कहा कि उनके लिए दुपट्टा बांधने का नियम है। कोई छात्रा दुपट्टा कैसे पहनती है, उससे अपना सिर ढंकती है या नहीं, यह स्कूल कैसे तय कर सकता है?

कर्नाटक हाइकोर्ट का फैसला जब आएगा तब आएगा, इस बीच मद्रास हाइकोर्ट के चीफ जस्टिस मुनेश्वरनाथ भंडारी ने एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए रोचक टिप्पणी की। उन्होंने कहा, “देश सर्वोपरि है या धर्म? आश्चर्य की बात है कि कोई हिजाब के पीछे पड़ा है तो कोई धोती के पीछे। जो कुछ भी हो रहा है वह धर्म के नाम पर देश को बांटने की कोशिश है।” याचिका में आग्रह किया गया था कि तमिलनाडु के हिंदू मंदिरों में सिर्फ सनातन धर्म मानने वालों को प्रवेश की अनुमति दी जाए, श्रद्धालु तय परिधान में ही मंदिर में प्रवेश करें।

कैसे शुरू हुआ हिजाब विवाद

अक्टूबर 2021

उडुपी में एबीवीपी के प्रदर्शन में पीयू कॉलेज की छात्राएं हिजाब में दिखीं। विरोध प्रदर्शन मनीपाल में एक छात्रा के साथ कथित बलात्कार मामले में था।

दिसंबर 2021

अभिभावक आगे आए, कहा कि छात्राओं को जबरन प्रदर्शन में शामिल किया गया। उसके बाद हिजाब के खिलाफ प्रदर्शन होने लगे।

छह छात्राओं ने 14 दिसंबर को शिक्षा विभाग को मेमोरेंडम दिया और कैंपस के भीतर हिजाब पहनने की अनुमति मांगी। कहा कि उन्हें कक्षाओं में जाने नहीं दिया जा रहा है।

सीएफआइ के प्रतिनिधि और अभिभावक कॉलेज प्रिंसिपल से मिले, पर कोई नतीजा नहीं निकला।

प्रिंसिपल ने कहा, 35 साल में कभी छात्राओं ने क्लास में हिजाब नहीं पहना। क्लास में जाने से पहले वे हिजाब उतार लेती थीं।

जनवरी 2022

कुछ छात्र-छात्राएं भगवा स्कार्फ पहनकर प्रदर्शन करने लगे। विरोध राज्य के दूसरे हिस्सों तक पहुंचा।

छात्राओं ने कर्नाटक हाइकोर्ट में याचिका दायर की और हिजाब पहनने की अनुमति मांगी।

फरवरी 2022

पीयू कॉलेज ने 300 से ज्यादा भगवा स्कार्फ और हिजाब पहने छात्र-छात्राओं के कॉलेज में प्रवेश करने से रोक दिया।

विरोध बढ़ा तो सरकार ने 16 फरवरी तक सभी कॉलेज बंद करने का आदेश दिया।

हाइकोर्ट ने 10 फरवरी को अंतरिम आदेश दिया कि फैसला होने तक छात्र-छात्राएं धार्मिक परिधान न पहनें। फैसला आने तक सुप्रीम कोर्ट का सुनवाई से इनकार।

सरकारी आदेश के आधार ये तीन फैसले

केरल हाइकोर्टः   2018 में मोहम्मद सुनीर ने याचिका दायर की। कहा कि स्कूल उनकी बेटियों को हिजाब और पूरी बांह की कमीज पहनने की अनुमति नहीं दे रहा। कोर्ट ने कहा, अल्पसंख्यक स्कूल होने के नाते उसे अधिकार है। मौजूदा मामले के वकील देवदत्त कामत के अनुसार इसकी तुलना नहीं हो सकती क्योंकि कर्नाटक का स्कूल सरकारी है।

बॉम्बे हाइकोर्टः   2003 में यहां एक छात्रा ने हिजाब की अनुमति न दिए जाने के खिलाफ याचिका दायर की थी। लेकिन वह सिर्फ लड़कियों का स्कूल था, इसलिए कोर्ट ने लड़की के विरोध में फैसला दिया।

मद्रास हाइकोर्टः  2004 में एक स्कूल मैनेजमेंट ने शिक्षकों के लिए ड्रेस कोड लागू किया। कोर्ट ने कहा इसका कोई वैधानिक अधिकार तो नहीं, लेकिन उसने हस्तक्षेप करने से भी मना कर दिया। कहा कि शिक्षकों को अनुशासन पालन करते हुए रोल मॉडल बनना चाहिए।

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