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शरद यादव की अपील, साझी संस्कृति बचाने के लिए हों एकजुट

देश आज चौराहे पर खड़ा है। लोग समझ नहीं पा रहे हैं कि सही रास्ता कहां है। ऐसे में यह जरूरी है कि देशवासी संविधान द्वारा बताए गए रास्ते पर चलें जिससे देश में शांति कायम हो सके। ये बातें आज जदयू के वरिष्ठ नेता शरद यादव ने आज कहीं। उन्होंने कहा कि गुरुवार (17 अगस्त) को नई दिल्ली में ‘साझा विरासत बचाओ सम्मेलन’ का आयोजन किया गया है। इस सम्मेलन में विरोधी दलों के नेताओं के अलावा बुद्धिजीवी, किसान, बेरोजगार युवा, दलित और देश के सभी हिस्से के आदिवासी भाग लेंगे।
शरद यादव की अपील, साझी संस्कृति बचाने के लिए हों एकजुट

उन्होंने लोगों से अपील की कि वे एक-दूसरे से प्यार करें और समाज के गरीब, पिछड़े, अल्पसंख्यक और शोषित समुदाय के लोगों की हक की लड़ाई लड़ें। ऐसा करने पर ही देश का और ज्यादा विकास संभव है। यादव ने कहा कि आज देश की साझी संस्कृति को बचाने के लिए एकजुट होना जरूरी है। इसके लिए देश के करीब-करीब सभी विपक्षी दलों के नेता पिछले तीन महीने से एक मंच पर जुटने का विचार कर रहे हैं।  यादव ने कहा कि कल होने वाले सम्मेलन का उद्देश्य देश के सभी लोगों को धर्म और क्षेत्र की भावना से ऊपर उठकर संविधान और साझी संस्कृति को बचाने के लिए प्रेरित करना  है। उन्होंने कहा कि संविधान में सभी लोगों को बराबर का हक दिया गया है। संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, प्रजातांत्रिक गणराज्य बना का वादा किया गया है। संविधान में जो उद्देश्य घोषित किया गया है वह संविधान सभा की 13 दिसंबर 1946 को हुई बैठक में पंडित जवाहर लाल नेहरू और बाबा साहेब आंबेडकर द्वारा पेश प्रस्ताव में कहा गया है। इस प्रस्ताव में कहा गया था कि स्वतंत्रता, समानता और भाईचारा जीवन के सिद्धांत की तरह है। इन्हें एक-दूसरे से कतई अलग नहीं किया जा सकता है।

शरद यादव ने सवाल किया कि आज क्या हो रहा है? पूरा देश भय के माहौल में जी रहा है। दलित, आदिवासी, किसान और बेरोजगार युवा आज न सिर्फ परेशान हैं बल्कि उन्हें सुरंग में कहीं रोशनी भी नजर नहीं आ रही है। ऐसे में हमारा कर्तव्य है कि हमें न सिर्फ एकजुट होना है बल्कि इनकी लड़ाई भी लड़नी है।

शरद यादव ने कहा कि स्वतंत्रता सेनानी और संविधान निर्माता नहीं चाहते थे कि ब्रिटिश राज की समाप्ति के बाद भारत और पाकिस्तान अलग देश बनें, मगर कई कारणों से ऐसा हुआ। लेकिन मैं इस बारे में विस्तार में नहीं जाना चाहता कि देश के विभाजन और 1947 में हुई हिंसा के लिए कौन दोषी है। इस दौरान भारत के हिस्से वाले पंजाब में मुस्लिमों की संख्या तो पाकिस्तान के हिस्से वाले पंजाब में हिंदुओं की संख्या नगण्य हो गई। शरद ने कहा कि इस दर्दनाक कहानी का जिक्र करना इस लिए जरूरी है कि देश एक बंटवारे का दर्द पहले ही झेल चुका है। ऐसे में हमें इस बात को बढ़ावा नहीं देना चाहिए जिससे घृणा और हिंसा का माहौल बने। उन्होंने कहा कि कल होने सम्मेलन में देश से भय का माहौल खत्म करने का सार्थक प्रयास किया जाएगा।

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