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प्रशांत किशोर की आंख 'कारोबार’ पर

बात जनवरी 2011 की है। तब नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री हुआ करते थे और राज्य में वाइब्रेंट गुजरात का सफल आयोजन कर विदेशी निवेशकों से लेकर देश के बड़े उद्योगपतियों को भी आकर्षित करते थे। इसी आयोजन में शामिल होने आए संयुक्त राष्ट्र की परियोजना से जुड़े प्रशांत किशोर का पहली बार नरेंद्र मोदी से आमना-सामना हुआ। बिहार के रहने वाले किशोर की मुलाकात कराने में एक आईएएस अधिकारी की बड़ी भूमिका थी। बिहार के रहने वाले गुजरात कैडर के आईएएस अधिकारी ने किशोर की तारीफ के जो पुल बांधे उससे मोदी प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाए।
प्रशांत किशोर की आंख 'कारोबार’ पर

साल 2012 में गुजरात में विधानसभा चुनाव होने थे, उस समय मोदी दुनिया की नामी-गिरामी प्रचार कंपनियों से गुजरात के विकास की गाथा का गुणगान करवा रहे थे। प्रशांत के दिमाग की उपज थी कि जब दूसरी बड़ी कंपनियां पैसे के बल पर ब्रांडिग कर सकती हैं तो वह ऐसा क्यों नहीं कर सकते। बस इसी आइडिया ने प्रशांत को हीरो बनने का मौका दिया। प्रशांत ने अपने मन की बात मोदी को बताई, जिसके लिए वह तैयार भी हो गए। गांधी नगर के एक कार्यालय में बैठकर प्रशांत ने रणनीति बनाना शुरू किया। मोदी के नेतृत्व में भाजपा की हैट्रिक लगी और प्रशांत सबकी नजरों में हीरो बन गए। लेकिन मोदी का लक्ष्य केवल गुजरात तक सीमित नहीं था। उनकी निगाहें साल 2014 के लोकसभा चुनाव पर टिकी थी और यहां भी प्रशांत ने अपने आइडिया से मोदी को प्रभावित किया। लगातार मोदी ब्रांड बनते जा रहे थे और प्रशांत की भूमिका की चर्चा भी उनके इर्द-गिर्द रहने वालों की बीच होने लगी। लोकसभा के चुनाव में मिली अपार सफलता ने जहां मोदी को विकास पुरुष के रूप में पेश किया, वहीं प्रशांत सबसे बड़े ब्रांड मैनेजर के रूप में अपनी पहचान बना चुके थे।

मोदी के सबसे विश्वसनीय और वर्तमान भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को मोदी-प्रशांत की जोड़ी कुछ जम नहीं रही थी। शाह उत्तर प्रदेश के प्रभारी थे और अपनी रणनीति के बल पर भाजपा और उसके सहयोगी दलों को 80 में से 73 सीटें जीतवाने का श्रेय ले रहे थे। इसके इतर प्रशांत भी यह श्रेय लेने में लगे थे कि अगर उनका आइडिया नहीं होता तो भाजपा को इतनी बड़ी सफलता नहीं मिलती। ऐसे में टकराव तो होना ही था। शाह को इनाम भी मिला और वे भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दिए गए। दूसरी ओर प्रशांत की इच्छा थी कि वह प्रधानमंत्री कार्यालय तक अपनी पहुंच बनाएं। लेकिन शायद शाह को यह मंजूर नहीं था। मोदी ने भी प्रशांत से किनारा करना शुरू कर दिया।

तब प्रशांत ने नीतीश कुमार पर नजर गड़ाई। प्रशांत कुमार का बिहार बैकग्राउंड भी रहा है। 1977 में शाहाबाद जिले में जन्मे प्रशांत किशोर ने सोशल वर्क में भारत में एम.ए. की पढ़ाई की और फिर जन-स्वास्थ्य एक्टिविस्ट के तौर पर काम शुरू किया। उन्होंने यूनाइटेड नेशंस के ट्रेनी के तौर पर विश्व स्वास्थ्य संगठन मुख्यालय में काम किया। 2007 में वह राहुल गांधी से मिले थे- समाज सेवा के क्षेत्र में काम करने का एक बल्यूप्रिंट लेकर। राहुल गांधी ने उन्हें अमेठी में बन रहे अस्पताल को लेकर सलाह मांगी। असंतुष्ट प्रशांत यूएन लौट गए। 2010 में संयुक्त राष्ट्र में काम करने के दौरान उन्होंने भारत के पिछड़े राज्यों में स्वास्थ्य नीति को लेकर तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को कुछ सुझाव भेजे। उसकी प्रति नरेंद्र मोदी को भेजी थी। उसमें दिए सुझावों से प्रेरित मोदी ने अक्टूबर 2011 में उन्हें गुजरात बुला लिया।

बहरहाल, बिहार को लेकर नीतीश कुमार के साथ पहली बैठक में ही उनका मनचाहा हो गया।  नीतीश उस समय नरेंद्र मोदी की तरह ही हर दांव चलना चाहते थे और उन्हें लगा कि प्रशांत इसके लिए बिल्कुल उपयोगी व्यक्ति हैं। प्रशांत ने भी मन बना लिया और मोदी से किनारा कर सुशासन बाबू के साथ काम करने की रणनीति बनाने में जुट गए। प्रशांत ने नीतीश की छवि पेश करने से लेकर कांग्रेस और राजद के बीच गठबंधन की रणनीति तैयार की। बिहार में महागठबंधन की जीत हुई और प्रशांत एक बार फिर हीरो बनकर उभरे। लेकिन नीतीश ने प्रशांत से दूरी नहीं बनाई बल्कि उनके कद को और बढ़ाकर कैबिनेट मंत्री का दर्जा दे दिया। कई मुद्दों पर सलाह लेने लगे। बिहार चुनाव के दौरान ही प्रशांत की पहली मीटिंग कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी से हुई थी। उसी समय प्रशांत ने मन बना लिया था कि अगर मोदी ब्रांड को कमजोर करना है तो राहुल के साथ जुडऩा होगा। इसके लिए प्रशांत ने राहुल के करीबी लोगों से मेल-जोल बढ़ाना शुरू किया। कांग्रेस के मुक्चय प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला से लेकर युवा ब्रिगेड के कई नेताओं से प्रशांत ने अकेले मुलाकात की। इनमें मीनाक्षी नटराजन, रवनीत सिंह बिट्टू, सचिन पायलट, ज्योतिरादित्य सिंधिया आदि प्रमुख हैं। इन लोगों से प्रशांत ने राहुल के कामकाज की शैली को समझा और उसी हिसाब से आइडिया देने में जुट गए। इसके लिए प्रशांत ने नीतीश कुमार से सहमति भी ले ली। क्योंकि प्रशांत की पहली प्राथमिकता नीतीश कुमार हैं इसलिए प्रशांत ने कांग्रेस के लिए ब्रांडिग का काम उन इलाकों के लिए चुनाव जहां नीतीश के लिए कोई खतरा नहीं है। असम और पश्चिम बंगाल के लिए कांग्रेस चाहती थी कि प्रशांत रणनीति बनाएं, लेकिन नीतीश कुमार ने इसके लिए सहमति नहीं दी। पंजाब और उत्तर प्रदेश में प्रशांत की टीम ने सर्वे का काम शुरू किया। प्रशांत इंडियन पैक नामक कंपनी के रणनीतिक सलाहकार है। यह कंपनी साल 2015 में अप्रैल महीने में अस्तित्व में आई। जिसका मुख्यालय पटना में है। कंपनी में ऋषिराज सिंह, विनेश चंदेल और प्रतीक जैन डायरेक्टर हैं। कंपनी का टर्न ओवर क्या है- इसके बारे में जानकारी नहीं मिल पाई है, लेकिन कंपनी आईआईटी, आईआईएम, लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स, टाटा स्कूल ऑफ सोशल साइंस से पढ़-लिखकर आए लोगों के साथ काम कर रही है। कंपनी में करीब 60 लोग पूर्णकालिक हैं। बाकी प्रोजेक्ट के हिसाब से काम करते हैं। पंजाब में कांग्रेस के लिए क्या रणनीति होगी, इस पर काम शुरू हो चुका है, जबकि उत्तर प्रदेश के लिए मार्च महीने के बाद संभव है कि काम शुरू हो जाए।

पहले मोदी फिर नीतीश और अब राहुल के लिए ब्रांडिंग का काम प्रशांत के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पिछले ढाई दशक से सत्ता से बाहर है। पंजाब में भी एक दशक से बाहर है और पार्टी के पास कोई बड़ा मुद्दा नहीं है जो कि बड़ी जीत दिला सके। कांग्रेस के एक नेता नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं कि प्रशांत, प्रशांत के नाम पर जो पार्टी चुनाव लड़ रही है इससे नुकसान हो सकता है। पहले पार्टी को अपनी छवि सुधारनी होगी। कांग्रेस नेता के मुताबिक, प्रशांत केवल पैसे के बल पर पार्टी की छवि सुधारना चाहते हैं लेकिन सवाल यह है कि जब कार्यकर्ता ही नहीं होगा तो वोट प्रतिशत में कैसे बढ़ेगा।  विरोधी भी प्रशांत पर निशाना साधने से नहीं चूकते। भाजपा उपाध्यक्ष और उत्तर प्रदेश के प्रभारी ओम माथुर कहते हैं कि गुजरात विधानसभा चुनाव में भाजपा की जीत हो या फिर केंद्र में पार्टी को मिली बड़ी सफलता के पीछे प्रशांत का कोई योगदान नहीं है। भाजपा ने अपने संगठन के बल पर चुनाव लड़ा और जीता। माथुर कहते हैं, 'प्रशांत बिजनेस करने के लिए आए हैं, जहां से उनको धंधा मिल रहा है, वहां काम कर रहे हैं।’

उधर, प्रशांत किशोर के लिए उत्तर प्रदेश को आसान नहीं माना जा रहा। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने उन्हें उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव की रणनीति का प्रबंधन करने के लिए अनुबंधित किया है। प्रशांत किशोर ने यूपी में कांग्रेस नेताओं के साथ बैठकें शुरू कर दी हैं। पिछले दिनों उन्होंने लखनऊ और आजमगढ़ का दौरा किया। जब वह पहली बार लखनऊ आए तो उनकी मुलाकात प्रदेश भर के जिला-शहर अध्यक्षों और अन्य पदाधिकारियों से हुई। प्रशांत ने उन्हें एक 14 पृष्ठों वाला एक मोटा सा प्रोफार्मा सौंपकर एक अप्रैल तक भरकर देने को कहा। इस प्रोफार्मा में ब्लॉक कमेटी तक के सदस्यों के नाम-पते-टेलीफोन नंबरों के साथ ही जातीय समीकरणों का विवरण मांगा गया है। उन्होंने यह जानना चाहा है कि चुनाव में किन जातियों को जोडऩे पर विशेष बल दिया जाना चाहिए। उन्होंने पदाधिकारियोंं से यह भी पूछा है कि कैसे चुनाव लड़ा जाए ताकि जीत मिले। हर विधानसभा क्षेत्र में ऐसे 20 व्यक्तियों को चिह्नित करने को कहा है, जिनकी मदद मदद ली जा सकती है पार्टी को मजबूत करने में। प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने की स्थिति में इन लोगों लोगों का विशेष ध्यान रखा जाएगा लेकिन ये लोग पदाधिकारी नहीं होने चाहिए।

कांग्रेस को वे राष्ट्रीय पार्टी बताते हुए भाजपा के साथ सीधी लड़ाई की बात कर रहे हैं। इस बात को वे मतदाताओं तक पहुंचाना चाहते हैं। लेकिन सवाल उठता है कि प्रदेश में चौथे नंबर पर वर्षों से टिकी कांग्रेस अचानक एक नंबर पर कैसे पहुंच जाएगी। ऐसा कौन- सा जादुई चिराग प्रशांत के पास है? कांग्रेसियों के मन में ये सवाल उठ रहे हैं। कांग्रेस की स्थिति यूपी में ऐसी है कि उसे 403 विधानसभा क्षेत्रों में ऐसे प्रत्याशी ही नहीं मिल रहे हैं, जो विपक्ष को टक्कर दे सकें। बैठक में शिरकत करने वाले कांग्रेस के पदाधिकारी यह बात नहीं मान रहे हैं कि जो काम कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी या सोनिया गांधी नहीं कर सके, वह प्रशांत किशोर कैसे कर देंगे? वह एक पेशेवर रणनीतिकार हैं, जो किसी भी दल के लिए अनुबंधित किए जा सकते हैं।

वर्ष 1996 विधानसभा के चुनाव को छोड़ कांग्रेस वर्ष 1993 से अब तक राज्य में लगातार हार का ही स्वाद चखती आ रही है। पिछले चार चुनावों में पार्टी 30 का आंकड़ा भी नहीं पार कर सकी है। 2007 में कांग्रेस के 22 विधायक जीते तो 2012 में 28 सीटें मिलीं। कांग्रेस अपने परंपरागत वोट बैंक दलित-मुस्लिम-ब्राह्मण को कभी एकजुट नहीं कर पाई। सत्ता से दूरी और लगातार चुनाव हारने से कार्यकर्ताओं का मनोबल टूटा हुआ है। गुटबाजी चरम पर है। कांग्रेस के एक पूर्व प्रदेश अध्यक्ष के अनुसार, 'प्रशांत के लिए यूपी में कांग्रेस को विधानसभा चुनाव जिताने की राह आसान नहीं है। उनके सामने संगठन को पुनर्जीवित करना सबसे बड़ी चुनौती है।’ प्रशांत किशोर को लेकर कांग्रेस में ऊहापोह की स्थिति है। हालांकि कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष निर्मल खत्री उनको लेकर कवायद को अपनी ताकत के रूप में देख रहे हैं। बैठक में मौजूद महासचिव और पार्टी के प्रांतीय प्रभारी मधुसूदन मिस्त्री के अनुसार, 'अनेक विश्वविद्यालयों के प्रोफेसर और कई डॉक्टरों ने प्रदेश में कांग्रेस की मदद करने के लिए उनसे संपर्क किया है। अनेक लोग जुड़ते हैं, उन्हीं में से एक प्रशांत किशोर भी हैं।’

साथ में स्नेह मधुर 

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