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भाजपा के गले अटके मुफ्ती

जम्मू-कश्मीर में पहली बार सरकार बनाने की भारतीय जनता पार्टी की खुशी काफूर हो चुकी है और अब उसके शीर्ष नेता शायद यही सोच रहे हैं कि गले अटकी इस हड्डी से कैसे छुटकारा पाया जाए। राज्य के मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद ने कट्टरपंथी अलगाववादी हुर्रियत नेता मसरत आलम की रिहाई के आदेश देकर महज एक हफ्ते में भाजपा का सिरदर्द दोबाला कर दिया है।
भाजपा के गले अटके मुफ्ती

इससे पहले राज्य में शांतिपूर्ण विधानसभा चुनाव के लिए अलगाववादियों और पाकिस्तान को श्रेय देकर मुफ्ती पहले ही भाजपा की खासी किरकिरी करा चुके हैं। भाजपा को समझ नहीं आ रहा है कि मुफ्ती के इन बयानों या फैसलों पर कैसे अंकुश लगाया जाए जिनके जरिये मुख्यमंत्री कश्मीर घाटी में लगातार अपनी ‌स्थिति मजबूत करते जा रहे हैं जबकि भाजपा के वोटर अब इसके लिए उसे जिम्मेदार ठहराने लगे हैं। यूं तो साक्षी महाराज और प्रवीण तोगड़िया जैसे भगवा परिवार के नुमाइंदे मुफ्ती पर हमला बोल रहे हैं मगर कुल मिलाकर पार्टी की प्रतिक्रिया देखने से ऐसा ही लगता है कि उसे समझ नहीं आ रहा कि स्थिति से निपटे कैसे।

ये तो सबको पता है कि जम्मू-कश्मीर राज्य मुख्यतः तीन हिस्सों में बंटा हुआ है जिसमें जम्मू संभाग हिंदू बहुल, कश्मीर घाटी मुस्लिम बहुल और लद्दाख बौद्ध बहुल इलाका है। राज्य विधानसभा की 87 में से 46 सीटें कश्मीर घाटी से, 37 सीटें जम्मू संभाग से और 4 सीटें लद्दाख से आती हैं। अभी की स्थिति यह है कि कश्मीर में पीडीपी को 28 सीटें मिली हैं जबकि जम्मू से भाजपा को 25 मिली हैं। राज्य में सरकार बनाने के लिए और हिंदू और मुस्लिम बहुल इलाकों में आपसी सौहार्द बढ़ाने के लिए इस सरकार के पास ऐतिहासिक अवसर है मगर पीडीपी के एकतरफा फैसलों से कश्मीर घाटी में तो उसका जनाधार बढ़ सकता है मगर इन फैसलों का नकारात्मक असर जम्मू और लद्दाख में होना तय है। भाजपा की मुसीबत यह है कि अगर वह इस सरकार का हिस्सा लंबे समय तक बनी रही और मु्फ्ती ऐसे ही विवादित फैसले लेते रहे तो जम्मू में भाजपा के खिलाफ माहौल बनेगा और जब भी चुनाव होंगे उसे इसका नतीजा भुगतना ही होगा। ऐसे में सबसे बेहतर स्थिति में कांग्रेस है जो जम्मू में भाजपा का विकल्प है। उसे अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए खुद कुछ करने की जरूरत ही नहीं है, मुफ्ती उसे बैठे-बिठाए भाजपा पर हमलावर होने का मौका दे रहे हैं। वैसे पीडीपी के मुखिया मुफ्ती मोहम्मद सईद जैसे फैसले ले रहे हैं उससे अब खुद भाजपा के नेता पूछने लगे हैं कि जम्मू-कश्मीर की सरकार आखिर कितने दिन चलेगी?

मसरत आलम की रिहाई को लेकर मुफ्ती खेमा यह तर्क दे रहा है कि ये सामान्य न्यायिक प्रक्रिया के तहत हुई कार्रवाई है। खुद मसरत आलम मीडिया से कह रहे हैं कि उन्हें जमानत मिलने और देश के शीर्ष अदालत के आदेश के बाद ही उनकी रिहाई हुई है मगर रिहाई के विरोधी इन तर्कों को मानने या समझने के लिए तैयार नहीं हैं। शिवसेना जैसे भाजपा की कट्टर सहयोगी पार्टी ने तो भाजपा पर आरोप लगाया है कि पीडीपी के साथ सरकार बनाकर उसने देश को संकट में डाल दिया है। लोकसभा और राज्यसभा में कांग्रेस तथा अन्य विपक्षी पार्टियों ने सोमवार को मसरत की रिहाई पर जमकर हंगामा किया और प्रधानमंत्री से बयान देने की मांग की। हंगामे के कारण दोनों सदनों को स्‍थगित भी करना पड़ा। लोकसभा में कांग्रेस,  तृणमूल कांग्रेस,  राकांपा,  राजद और जदयू सदस्यों ने प्रधानमंत्री के बयान की मांग करते हुए भारी हंगामा किया।  

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