Advertisement

ओट्टो लिलिएन्थाल, जिसने उड़ने की इंसानी चाहत को दिए ‘पंख’ और अपनी ‘जान’

‘उड़ान’ इंसान की सबसे सुखद कल्पनाओं में से एक रही है। इंसान आज उड़ान भर सकता है। लेकिन इस कल्पना के...
ओट्टो लिलिएन्थाल, जिसने उड़ने की इंसानी चाहत को दिए ‘पंख’ और अपनी ‘जान’

‘उड़ान’ इंसान की सबसे सुखद कल्पनाओं में से एक रही है। इंसान आज उड़ान भर सकता है। लेकिन इस कल्पना के साकार होने के बावजूद उड़ान के प्रति इंसानों का आकर्षण बरकरार है। मिथकों के पुष्पक विमान से लेकर आज के वायुयान तक, आसमान की सैर कराने वाली जादुई कालीन से लेकर हेलीकॉप्टर तक के इस सफर की कहानी भी कम दिलचस्प नहीं है। आखिर कौन था वह शख्स जिसने कल्पना को हकीकत में बदलने का जोखिम लिया?

मानवी उड़ान का कामयाब प्रयोग करने का सबसे पहला श्रेय जर्मनी के ओट्टो लिलिएन्थाल नामक शख्स को मिला। ओट्टो लिलिएन्थाल पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने इस दुनिया का ग्लाइडर से परिचय करवाया था। इसी वजह से उन्हें ग्लाइडर किंग भी कहा गया।

अमूमन जब इसांनों के उड़ने के ख्वाब को मुक्कमल कराने वाले लोगों की चर्चा होती है तब दिमाग में अमेरिका के राइट बंधुओं का नाम सामने आता है, जिन्होंने पहला हवाई जहाज बना कर दुनिया को आश्चर्य में डाल दिया था, लेकिन असल में उड़ने के ख्वाब को पहली बार हकीकत में बदला जर्मनी के आटो लिलिएन्थाल ने। उन्होंने ग्लाइडर बनाया और उससे कई उड़ानें भरीं और यह सिद्ध किया कि इंसान उड़ान भरने वाली मशीन विकसित कर सकता है।

23 मई 1848 को जन्मे ओट्टो ने 1867 में फ्रैंको-प्रशिया युद्ध में सेवा करते समय, ‘हवा के बल’ पर प्रयोग शुरू किया। पांच साल बाद उन्होंने बॉयलर और भाप इंजन बनाने के लिए अपनी कंपनी की स्थापना की। लिलिएन्थल ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक बर्डफ्लाइट को 1889 में एविएशन के आधार के रूप में प्रकाशित किया।

1891 में लिलिएन्थल ने 25 मीटर की उंचाई से कूदकर अपनी पहली उड़ान में सफलता पाई। उनके इस कारनामे से यह स्थापित हो गया कि इंसान उड़ भी सकता है। ओट्टो के द्वारा की भरी गई पहली उड़ान की तस्वीरें जर्मनी के सभी समाचारपत्रों में, मासिक पत्रिकाओं में छपी थी।

1893 में, राइनो हिल्स में, वह 250 मीटर तक उड़ान भरने में सफल रहे।

ओट्टो ने केवल 5 सालों के भीतर 18 अलग-अलग तरह के मॉडल बनाये। इनमें से पंद्रह मॉडल में पंखे का एक ही सेट था और पंखे के दो सेट वाले 3 मॉडेल थे। ये सभी मॉडेल एक ग्लायडर थे। चालक को अपने शरीर के भार का इस्तेमाल दिशा बदलने के लिए करना पड़ता था।

ओट्टो ने 1894 में ‘नॉर्मल ग्लायडर’ की शृंखला बनाई। इनकी सहायता से ही ओट्टो ने हवा के तेज झोके के साथ ऊपर जाने का और जमीन पर ही कुशलता पूर्वक उड़ते रहने का काम कर दिखाया।

10 अगस्त 1896 ओट्टो एक हंग ग्लायडर का परीक्षण कर रहे थे उसी समय जोरदार हवा चलने लगी। ग्लायडर पर उनका नियंत्रण कमजोर पड़ गया और ग्लायडर एक कोने में जाकर गिर पड़ा। पंद्रह मीटर की ऊंचाई से नीचे गिर जाने की वजह से ओट्टो की रीढ़ की हड्डी टूट गई... ओट्टो लिलिएन्थाल उड़ान को अपनी जान दे चुके थे। आज इंसान आसमान में चहलकदमी करता है, निश्चित तौर पर इसे संभव बनाने में ओट्टो को बड़ी भूमिका रही है।  

 

 

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोर से
Advertisement
Advertisement
Advertisement
  Close Ad