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लद्दाख की तिलिस्मी दुनिया

धरती का स्वर्ग यानी कश्मीर जितना मशहूर है, उसी का एक हिस्सा लद्दाख उतना ही अनजान है। जम्मू-कश्मीर राज्य के तीन मुख्य भौगोलिक क्षेत्र हैं, जम्मू, कश्मीर और लद्दाख। लद्दाख के दो जिलों में से एक करगिल से तो सभी वाकिफ हैं लेकिन लेह का सफर, लोग, संस्कृति, भूगोल सब रहस्यमय है। बौद्ध धर्म एवं संस्कृति का प्रमुख केंद्र भी है लेह।
लद्दाख की तिलिस्मी दुनिया

लद्दाख में कुछ स्थल तो ऐसे हैं जो एकदम अनछुए हैं। न वहां किसी का आना-जाना है और न ही वहां विकास हुआ। नतीजा यह है कि प्रकृति अपने मूल रूप में है। हजारों साल पुराने घर, बौद्ध मठ, पुराने बर्तन बौद्ध संस्कृति आदि। इन स्थानों के अनछुए होने के कारणों का जिक्र करते हुए आईटीबीपी के अधिकारी दीपक पांडे कहते हैं, ‘यह सफर इतना खतरनाक और रहस्मय है कि यहां आना, रहना और सलामत वापस जाना हर किसी के बूते की बात नहीं है। लद्दाख के अनछुई जगहों में फुकचे मोनेस्ट्री, जंसकार घाटी, नूब्रा घाटी, हिमिस मोनेस्ट्री और लामायारू हैं।’     

 

फुकचे मोनेस्ट्री

लद्दाख की फुक्चे मोनेस्ट्री पहुंचने में एक दिन लगता है। इसे शुरुआती 12वीं शताब्दी में बनवाया गया था। फुक्चे उत्तरी लद्दाख में स्थित बहुत ही सुंदर बौद्ध मठ है जो 3800 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। मिट्टी, घास और पेड़ों की टहिनयों से बनीं इसकी दीवारें झड़ सी रही हैं। गहरी सुनसान गुफा में बना यह मठ खतरनाक भी है, क्योंकि इसके ठीक सामने काफी गहरी खाई है। ऐसे में यहां पहुंचने वाले लोगों को नदी पर बने सस्पेंशन पुल इस्तेमाल कर पहुंचना पड़ता है। इस मठ तक पहुंचने के लिए करीबी कस्बे पादुम से तीन दिन ट्रैक करके पहुंचना पड़ता है। रात गुजारने के लिए रास्ते में पड़ने वाले गांवों में रात गुजारी जा सकती है।

जंसकार घाटी

जंसकार जाने के लिए करिगल से जंसकार जाना होगा। यह जंसकार नदी के साथ-साथ है। सिकी खूबसूरती यह है कि सर्दियों में यह नदी जम जाती है। इस पर गांव के बच्चे खेलते हैं और इसे आवाजाही के लिए इस्तेमाल किया जाता है। करिगल से जंसकार जाते हुए रास्ते में पत्थर साहब, मैज्नेटिक हिल आदि आते हैं। ठेठ आदिवासी इस दुनिया का हिस्सा ही नहीं लगते।

नुब्रा घाटी

लद्दाख में नूब्रा घाटी एक खास जगह है। इसके पास कई अंतरराष्ट्रीय सीमाएं हैं - चीन, पाकिस्तान, रूस, कजाकिस्तान और सियाचिन आदि। नूब्रा जाने के लिए करिगल से करतारपुर जाना होगा। रात लेह में रुकना होगा। अगले दिन सुबह सात घंटे का सफर तय कर खारदुंगला दर्रा जाना पहुंचना होगा जो सबसे ऊंचा दर्रा है। यह न केवल खतरनाक रास्ता है बल्कि दुनिया की सबसे ऊंची मोटरेबल सड़क भी है। यहां टैक्सी से ही जाना होगा। खारदुंगला पहुंचने पर सेना की चेकपोस्ट पर सामान्य पूछताछ होगी। यहां मौसम की वजह से 15 मिनट से ज्यादा नहीं रुक सकते। खारदुंगला से दो घंटे में आप नूब्रा घाटी पहुंच जाते हैं। यह एकदम समतल है। यहां से आबादी शुरू हो जाती है। प्राकृतिक तौर पर सलेटी रंग के रेत के टीले हैं। नूब्रा घाटी एक ऐसी जगह है जहां ट्रेकिंग की जा सकती है। यहां रहने के लिए राज्य सरकार का गेस्ट हाउस है और बहुत सारे होटल भी।

हिमिस मोनेस्ट्री

लेह से 45 किमी की दूरी पर स्थित यह हेमिस मोनेस्ट्री खूबसूरत तो है ही साथ ही यह लद्दाख की सबसे बड़ी मोनेस्ट्री भी है। वैसे तो लद्दाख की प्राकृतिक सुंदरता आपका दिल चुराने के लिए काफी है पर यहां की मोनेस्ट्रीस भी कम मनमोहक नहीं हैं। हिमालय की ऊंची खूबसूरत पहाड़ियों से घिरे इन सुंदर बौद्ध मठों में जाने की कल्पना मात्र ही बहुत सुहावनी होती है। यहां एतिहासिक हेमिस मेला भी लगता है। दूर-दूर से कई पर्यटक और बौद्ध धर्म के अनुयायी यहां पंहुचते हैं।

स्टोक कांगड़ी

लेह से स्टोक कांगड़ी जाने के लिए भी टैक्सी ही लेनी होगी। इंडस नदी के उस पार कांगड़ी स्टोक चोटी है। जो लेह की सबसे ऊंची चोटियों में से एक है। इस चोटी के ठीक नीचे बसा है स्टोक नामक गांव। यह गांव इतना खूबसूरत और अछूता है कि धरती का खूबसूरत स्वर्ग लगता है। यहां हजारों साल की बौद्ध परंपरा देखी जा सकती है।

कैसे जाएं

दिल्ली से हवाई मार्ग से लेह। कुछ शौकीन और साहसी सड़क मार्ग से भी जाते हैं। अगर हवाई मार्ग से लेह पहुंचे हैं तो फिर कहीं भी जाने के लिए टेक्सी ही लेनी होगी।

कहां ठहरें

नूब्रा में सिर्फ होटल मिलेंगे उसके अलावा ठिकाना टेंट या गांवों में ही बनाना होगा। 

कब जाएं 

लद्दाख जाने के लिए जून से लेकर सितंबर तक का मौसम सबसे बढ़िया है।  

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