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कैलाश मानसरोवर की यात्रा हुई आसान

पिछले साल चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग जब भारत दौरे पर थे तो भारतीय पर्यटकों के लिए कुछ अच्छी खबरें भी लाए थे। मसलन सिक्किम के नाथूला से होते हुए कैलाश-मानसरोवर तक पहुंचने वाले मार्ग को खोलने के लिए चीन सहमत हो गया।
कैलाश मानसरोवर की यात्रा हुई आसान

यह घोषणा उन तीर्थयात्रियों के लिए अच्छी खबर थी जो प्रतिवर्ष भारत सरकार के विदेश मंत्रालय में इस 23 दिवसीय दुर्गम यात्रा करने ख्वाहिश और जुनून लिए लंबी कतार में लगे रहते हैं। सिक्किम मार्ग उत्तराखंड के लिपुलेक दर्रे से होते हुए 12 या अधिक दिनों की यात्रा के बजाय आश्चर्यजनक रूप से महज तीन दिन में आपको कैलाश परिक्रमा स्थल तक पहुंचा देगा।

 

लेकिन अब कुछ वर्षों से कई भारतीय तीर्थयात्रियों ने सर्वोच्च तीर्थस्थल तक पहुंचने के लिए नेपाल का रास्ता चुनना शुरू कर दिया है। चीनी प्रशासन नेपाली ट्रैवल एजेंटों को माउंट कैलाश तक यात्रा कराने का प्रबंध करने की इजाजत देता है लेकिन उसके कुछ सख्त कायदे-कानून निर्धारित हैं और कई बार तो चीन की सरकार मनमानी शर्तें थोप देती है।  

 

बारास्ता सिमीकोट (हेलीकॉप्टर)

रूट: काठमांडू-नेपालगंज-सिमीकोट-हिलसा-पुरांग-मानसरोवर

खर्च: प्रति व्यक्ति 93,000 रुपये

दिन: 10 

यह यात्रा नेपाली टूर ऑपरेटरों द्वारा आयोजित की जाती है और इसमें कम तकलीफें आती हैं। आप काठमांडू तक उड़ान भरकर नेपालगंज और सिमीकोट जा सकते हैं। वहां से हेलीकॉप्टर के जरिये हिलसा पहुंच सकते हैं और फिर सड़क मार्ग से चार घंटे सफर तय करते हुए आप मानसरोवर पहुंच सकते हैं। बाधा: इतने कम समय में इतनी ऊंचाई पर पहुंचने के बाद आपको वहां की आबोहवा में खुद को ढालना मुश्किल हो सकता है। 16,000 फुट की ऊंचाई पर कैलाश परिक्रमा में दो दिन तो लग ही जाते हैं और आपके शरीर (फेफड़ों) को कम सांस लेने का आदी होना पड़ेगा।

 

बारास्ता नाथूला

मार्ग: दिल्ली-गंगटोक-शेरथांग-कांग्मा (नाथूला से)-लाजी-झोंगबा-मानसरोवर

 खर्च: 1.7 लाख रुपये

यह नया मार्ग जून, 2015 में खुलेगा और यह कोडारी मार्ग जैसा ही है। आपको सिर्फ माउंट कैलाश की परिक्रमा के लिए ही पैदल चलना होगा। गंगटोक से 127 किलोमीटर दूर बागडोगरा तक विमान से पहुंचने के बाद पर्यटक बस के जरिये पहले गंगटोक और वहां से बस द्वारा मानसरोवर तक पहुंचेंगे। इस मार्ग के जरिये लिपुलेक मार्ग की तुलना में समय भी कम लगेगा।

 

बारास्ता कोडारी

मार्ग: काठमांडू-कोडारी-नायलाम-सागा-परयांग-मानसरोवर खर्च: 45,000 रुपये

 दिन: 14

भारतीय पर्यटकों को यह मार्ग खूब भाता है। आप काठमांडू से कोडारी बॉर्डर तक गाड़ी से चीन की सीमा में प्रवेश कर जाते हैं। वहां अपने बजट के अनुरूप आप चीनी प्रशासन की गाड़ी से नायलाम पहुंच सकते हैं। अगले दिन लालुंगा दर्रा और फिर माउंट शिशापांग्मा, पाइकू या पेकुर झील होते हुए मानसरोवर जा सकते हैं।

 

बारास्ता लिपुलेक दर्रा

रूट: दिल्ली-काठगोदाम-अल्मोड़ा-धारचूला-नारायण आश्रम- तकलाकोट- मानसरोवर

खर्च: 1.5 लाख

यह सबसे लोकप्रिय मार्ग है लेकिन साथ ही सबसे दुर्गम भी। विदेश मंत्रालय लकी ड्रा से ही तय करता है कि किसे इस मार्ग से जाना चाहिए। इस रास्ते मानसरोवर पहुंचने के लिए सिर्फ 12 दिनों की पैदल यात्रा करनी पड़ती है। लेकिन इस सच्चाई को जान लें कि ज्यादातर पर्यटकों को बड़ा प्रयास करना पड़ता है और आयोजकों को बहुत ख्याल रखना पड़ता है। उत्तराखंड की ऊंची पहाड़ियों के जरिये यात्रा करना कैलाश यात्रा का अनुभव देता है।

 

कैलाश परिक्रमा

दिनः 2 से 3

मानसरोवर परिक्रमा अब चीनी प्रशासन द्वारा उपलब्‍ध कराई गई विशेष पर्यावरण अनुकूल बसों से पूरी हो जाती है लेकिन कैलाश परिक्रमा आपके जोश, आस्था और तंदुरुस्ती की परीक्षा लेती है। माउंट कैलाश के चारों ओर तीन दिवसीय ट्रेकिंग और 16,000 फुट की ऊंचाई पर दस मिनट की चढ़ाई के बाद ही सांस लेने में तकलीफ आप को आगे बढऩा दूभर कर देती है। ज्यादातर पर्यटक टट्टू भी साथ रख लेते हैं लेकिन तीन दिन के लिए इसका खर्च 18,000 रुपये और एक गाइड का खर्च 6,000 रुपये आपको महंगा पड़ सकता है। यह मूल्य उपलब्‍धता और मौसम की स्थिति के अनुसार घटता-बढ़ता रहता है। यदि आप दूसरे दिन भी टट्टू लेना चाहते हैं तो आपसे जबरन 15,000 रुपये वसूले जाएंगे और इस बात की भी कोई गारंटी नहीं होगी कि आपको दीराफुक के दुर्गम मार्ग पर टट्टू की सेवा मिल ही जाएगी। दीराफुक में पहली रात जबकि जुथुलफुक में दूसरी रात बिता सकते हैं।   

 

कैलाश के बारे में

(चोटीः 6638 मीटर, ऊंचाईः 4800 से 5600)

माउंट कैलाश पर कभी नहीं चढ़ा जा सका है।

यह तीन सबसे बड़ी नदियों का उद्गम स्थल है: ब्रह्मपुत्र, सिंधु की सहायक नदी सतलज और गंगा की सहायक नदी करनाली।

माना जाता है कि यहां पृथ्वी की धुरी, जीवन का मूल स्थान और भगवान शिव का निवास स्थान है।

यह हिंदुओं, बौद्धों, तिब्बतियों और बोनपो का पवित्र स्थल रहा है।

इसे मेरु, सुमेरु (दोनों का अर्थ सर्वोच्च चोटी होता है), सुष्मना (आध्यात्मिक धुरी), हिमाद्रि, देव पर्वत, रजतगिरि, रत्नासनु आदि के नाम से जाना जाता है। तिब्बती इसे कांग पिंपोचे और चीनी कांगरिन्बोजे के नाम से पुकारते हैं। भौगोलिक और आध्यात्मिक दृष्टि से मानसरोवर और कैलाश का गहरा रिश्ता रहा है। 

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