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भारतीयों की विकसित तकनीक से कैंसर का प्रभावी इलाज संभव

प्रतिष्ठित मेसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी और हार्वर्ड मेडिकल स्कूल से जुड़े भारतीय वैज्ञानिकों के एक दल ने एक नैनो-तकनीक विकसित कर कैंसर के उपचार में एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है। यह नैनो-तकनीक उपचार के कुछ ही घंटे के भीतर कैंसर थैरेपी के प्रभाव का निरीक्षण कर सकती है।
भारतीयों की विकसित तकनीक से कैंसर का प्रभावी इलाज संभव

एमआईटी के ब्रिघम एंड वूमन्स हॉस्पिटल (बीडब्ल्यूएच) में प्रमुख अन्वेषक शिलादित्य सेन गुप्ता ने कहा, हमने एक नैनो-तकनीक विकसित की है, जो पहले ट्यूमर विशेष को कैंसर-रोधी दवा पहुंचाती है और फिर यदि ट्यूमर खत्म होना या कम होना शुरू कर देता है तो वह ट्यूमर को साथ के साथ प्रकाशित करना शुरू कर देती है।

बीडब्ल्यूएच की ओर से जारी बयान में कहा गया कि इसमें एक ऐसे नैनोपार्टिकल का इस्तेमाल किया जाता है, जो पहले दवा पहुंचाता है और फिर जब कैंसर वाली कोशिकाएं नष्ट होना शुरू होती हैं तो यह हरे रंग की चमक पैदा करता है। इस तरह किसी उपचार से ट्यूमर नष्ट हो रहा है या नहीं, इसका पता इस चमक को देखकर लगाया जा सकता है। यह तकनीक मौजूदा चिकित्सीय माध्यमों की तुलना में उपचार की उपयोगिता का पता जल्दी लगा लेती है।

गुप्ता ने कहा, ‘इस तरह आप साथ के साथ यह पता लगा सकते हैं कि कीमोथेरेपी काम कर रही है या नहीं। इससे आप जल्द ही मरीज को सही दवा दे सकते हैं। इससे आपको महीनों तक विषाक्त कीमोथेरेपी लेते हुए इंतजार नहीं करना पड़ता, जिसमें कई बार पता लगता है कि दवा ने तो काम ही नहीं किया और कई उल्टे असर हो गए हैं।’

यह महत्वपूर्ण शोध इस सप्ताह द प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल अकेडमी ऑफ साइंसेज में ऑनलाइन प्रकाशित हुआ है। गुप्ता इसके सहायक लेखक हैं। शोधपत्र के प्रथम लेखक आशीष कुलकर्णी महाराष्ट्र के एक छोटे से गांव से आते हैं और इस समय हार्वर्ड में कनिष्ठ शिक्षक के रूप में कार्यरत हैं। कुलकर्णी ने आईसीटी मुंबई से केमिकल इंजीनियरिंग करने के बाद यूनिवर्सिटी ऑफ सिनसिनाती से रसायन विग्यान में पीएचडी की। कुलकर्णी ने कहा कि इस तकनीक की मदद से, कैंसर दवा के काम करना शुरू करने के साथ ही कोशिकाएं प्रकाशित हो जाती हैं।

उन्होंने कहा, ‘कैंसर का कोई उपचार प्रभावी है या नहीं, इसका पता हम उपचार के कुछ घंटे में ही लगा सकते हैं। हमारा दीर्घकालिक लक्ष्य एक ऐसा तरीका खोजना है, जो परिणामों का पता इतनी जल्दी लगा ले कि हमें उन मरीजों को कीमोथेरेपी देनी ही न पड़े, जिन पर वह काम नहीं कर पा रही।’

कुलकर्णी ने कहा, ‘हमने देखा है कि यह तकनीक हमें दोनों तरह की दवाओं के प्रति ट्यूमरों की प्रतिक्रिया को सीधे दिखाने और मापने में मदद करती है।’ इस शोध दल के अन्य सदस्य हैं- पूर्णिमा राव, शिव नटराजन, ऐरन गोल्डमैन, वेंकटा एस सब्बिसेट्टी, यशिका खाटेर, नव्या कोरीमेरला, विनीतकृष्णा चंद्रशेखर और रघुनाथ ए माशेलकर। गोल्डमैन के अलावा, सभी अनुसंधानकर्ता भारतीय हैं।

कुलकर्णी ने कहा, मौजूदा तकनीकें ट्यूमर के आकार के मापन या मेटाबोलिक अवस्था पर निर्भर करती हैं। ये तकनीकें कई बार उपचार वाले कारक के प्रभाव को पहचान ही नहीं पातीं क्योंकि प्रतिरोधी कोशिकाएं ट्यूमर पर हमला बोलने के लिए उसमें चली जाती हैं, जिससे उसके आकार में वृद्धि हो जाती है। जबकि नैनोपार्टिकल हमें बिल्कुल सटीक तौर पर यह बता सकते हैं कि कैंसर कोशिकाएं मर रही हैं या नहीं। एक रिपोर्ट के अनुसार, इस तकनीक का इस्तेमाल प्रतिरोधक उपचार के प्रभाव के आकलन के लिए किया जा सकता है।

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