Advertisement

इंटरव्यू: 'माई' वेब सीरीज को लेकर बोलीं राइमा सेन, "इसमें मैं नहीं, मेरे एक्शन ज्यादा बोलते हैं"

बंगाली और हिंदी फिल्मों में काम कर चुकीं राइमा सेन, इस बार नेटफ्लिक्स पर 15 अप्रैल को आने वाली वेब सीरीज...
इंटरव्यू: 'माई' वेब सीरीज को लेकर बोलीं राइमा सेन,

बंगाली और हिंदी फिल्मों में काम कर चुकीं राइमा सेन, इस बार नेटफ्लिक्स पर 15 अप्रैल को आने वाली वेब सीरीज 'माई' के जरिये ओटीटी पर अपनी अदाकारी का जलवा बिखेरेंगी। आउटलुक के लिए राजीव नयन चतुर्वेदी से बात करते हुए वो कहती हैं कि मैं इस फिल्म में एक लड़की 'नीलम' का किरदार निभा रही हूं, जो पुरुष-प्रधान समाज में संघर्ष करती है। वो कहती हैं, इस सीरीज में वो सब कुछ है, जो दर्शक देखना चाहते हैं।

साक्षात्कार के प्रमुख अंश:-

माई को साइन करने का विचार आपको कैसे आया?

मैं बहुत पहले से 'माई' के डायरेक्टर अतुल मोंगिया के साथ कार्य करना चाहती थी। मैंने कई बार यह सोचा था कि उनके साथ एक्टिंग वर्कशॉप करूंगी, लेकिन यह हो नहीं पाया। एक दिन मुझे उनके ऑफिस से फोन आया कि मोंगिया एक वेब सीरीज बना रहे हैं और आप चाहें तो स्क्रीन टेस्ट दे सकती हैं। कुछ इस तरह माई में मुझे एक किरदार निभाने का मौका मिला।

अतुल मोंगिया के साथ कार्य करने का आपका अनुभव कैसा रहा?

वह एक्टर के डायरेक्टर हैं। वह इस सीरीज के दौरान कई तरह के वर्कशॉप और मेडिटेशन कराते थे, ताकि एक्टर को सीन्स ज्यादा बोझिल न लगे।

आप इस सीरीज में कैसा किरदार निभा रही है और आपका इसमें कार्य करने का अनुभव कैसा रहा है?

मैं इसमें एक लड़की 'नीलम' का किरदार निभा रही हूं, जो पुरुष-प्रधान समाज में संघर्ष करती है। नीलम इस सीरीज में बहुत सारी कठिन परिस्तिथियों से होकर गुजरती है। यह किरदार बहुत कठिन था। इसमें मैं नहीं, बल्कि मेरे एक्शन ज्यादा बोलते हैं। इस सीरीज में कार्य करने का अनुभव बहुत शानदार रहा है।

आपके हिसाब से ऑडियंस को यह सीरीज क्यों देखनी चाहिए?

क्योंकि यह एक फैमिली ड्रामा है और इसमें वह सब कुछ है जो लोग देखना चाहते हैं। बाकी लोगों को यह देखकर समझ में आ जाएगा।

इससे पहले भी आप ओटीटी पर कार्य कर चुकी हैं। एक पारंपरिक प्रोडक्शन और ओटीटी प्रोडक्शन में आप कैसा अंतर देखती हैं?

ओटीटी पर ज्यादा रोक नहीं है। यह एक कंटेंट बेस्ड प्लेटफ़ॉर्म है। यहां आप स्टोरी को अपने हिसाब से दिखा सकते हैं क्योंक एक पारंपरिक माध्यम की तुलना में यहां राइटर और डायरेक्टर को ज्यादा स्वतंत्रता प्राप्त है। दूसरी बात, यहां काम ज्यादा करना होता है क्योंकि हर शूट का समय निर्धारित रहता है।

तुलनात्मक रूप से, स्क्रीन प्रोडक्शन और ओटीटी प्रोडक्शन में आपको एक दिन में कितने शूट करने पड़ते हैं?

फिल्मों में मैं एक दिन में 4 से 5 सूट करती थी। लेकिन बंगाल में जब मैंने पहली बार ओटीटी के लिए कार्य करना शुरू किया तो देखा मुझे एक दिन में 15 सीन करने हैं। शुरुआत में यह मुश्किल होता है लेकिन आप यहां कैरेक्टर में जल्द ढल जाते हैं क्योंकि एक ही किरदार को आप कई दिनों तक जीते रहते हैं।

ओटीटी के विकास को आप किस तरह से देखती हैं?

ओटीटी की वजह से वो एक्टर जो पिछले 10 सालों से कहीं दिख नहीं रहे थे, अब मुख्य भूमिका में नजर आ रहे हैं। इसने एक्टर, डायरेक्टर, प्रोड्यूसर समेत सभी को कार्य दिया है।

आप बंगाली और हिंदी फिल्मों में भी कार्य कर चुकी हैं। दोनों जगहों पर आप कैसा अंतर देखती हैं?

बंगाल में जो लोग मेरी माँ और दादी के साथ कार्य कर चुके हैं उनके साथ मैं भी कार्य करती हूं, इसलिए वहां लोग मुझे 'पैम्पर' ज्यादा करते हैं, लेकिन मुम्बई में ऐसा नहीं होता हैं। मेरे हिसाब से बंगाल में कार्य करना प्रोफेशनल नहीं होता है, क्योंकि वहाँ लोगों से मेरे संबंध दूसरे तरह के हैं।

माई के बाद हम आपको और किस किरदार में देख सकते हैं?

अभी मैंने एक बंगाली वेब सीरीज में कार्य खत्म किया है, जो जी 5 पर रिलीज होने जा रही है। इसके अलावा, आने वाले समय में दर्शक मुझे एक तमिल फ़िल्म में भी देखेंगे।


अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोर से
Advertisement
Advertisement
Advertisement
  Close Ad