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उत्तराखंड में सदन में शक्ति परीक्षण का निर्देश दिया हाईकोर्ट ने

उत्तराखंड हाईकोर्ट ने राज्य में चल रहे सियासी घमासान को नया मोड़ दे दिया है। राज्य में लागू राष्ट्रपति शासन के खिलाफ कांग्रेस की याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने निर्देश दिया है कि बहुमत का परीक्षण सदन के पटल पर किया जाए।
उत्तराखंड में सदन में शक्ति परीक्षण का निर्देश दिया हाईकोर्ट ने

हालांकि इस मामले में कांग्रेस को झटका देते हुए अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि अयोग्य ठहराए गए कांग्रेस के नौ बागी विधायक भी इस मतदान में हिस्सा लेंगे। अदालत ने 31 मार्च को सदन में शक्ति परीक्षण का निर्देश दिया है। हालांकि हाईकोर्ट ने कहा है कि अयोग्य घोषित किए गए इन बागी विधायकों के मत तब तक अलग रखे जाएंगे जब तक राज्य में राष्ट्रपति शासन के खिलाफ दायर हरीश रावत की याचिका पर फैसला नहीं आ जाता। कांग्रेस की ओर से अदालत में पेश हुए वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि अदालत ने कांग्रेस की इस बात को स्वीकार किया कि राष्ट्रपति शासन के बावजूद बहुमत परीक्षण की अनुमति देने के लिए न्यायिक समीक्षा हेतु पर्याप्त गुंजाइश है। उन्होंने कहा कि राज्यपाल के. के. पाॅल ने भी 28 मार्च को बहुमत परीक्षण कराने का निर्देश दिया था और रावत ने भी दो बार यही मांग की थी। सिंघवी ने कहा, अब सिर्फ तारीख बदलकर 28 से 31 मार्च हो गई है। उन्होंने कहा कि मात्राखरीद-फरोख्त के आरोपों से ही राष्ट्रपति शासन लगाने और बहुमत परीक्षण रोकने को उचित नहीं ठहराया जा सकता।

 

उच्च न्यायालय ने पुलिस महानिदेशक को आदेश दिया कि वह विधानसभा में बहुमत परीक्षण के समय सुरक्षा सुनिश्चित करें। रावत की सरकार को संवैधानिक मशीनरी विफल हो जाने के आधार पर रविवार को बर्खास्त कर दिया गया था। रावत ने कल अदालत में याचिका दायर की थी और केंद्र के फैसले को मनमानी करार देते हुए इसे रद्द करने का आग्रह किया था। केंद्र ने उत्तराखंड में बहुमत परीक्षण के लिए तय की गई (28 मार्च की) तारीख से एक दिन पहले राष्ट्रपति शासन लगा दिया था। कांग्रेस के नौ बागी विधायकों की अयोग्यता के सवाल पर सिंघवी ने कहा कि अदालत ने इसे दरकिनार नहीं किया है और इस पर अंतिम फैसला बाद में आएगा। उन्होंने कहा कि दोनों पक्ष भविष्य के अपने कानूनी उपायों पर विचार करेंगे।

 

गौरतलब है कि 18 मार्च को राज्य विधानसभा में विनियोग विधेयक पारित होते समय कांग्रेस के नौ विधायकों की बगावत के कारण राज्य में संविधानिक संकट उत्पन्न हो गया था। राज्यपाल ने 28 मार्च तक हरीश रावत सरकार को बहुमत साबित करने को कहा था मगर इससे एक दिन पहले 27 मार्च को राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया। इस फैसले को मुख्यमंत्री हरीश रावत ने उत्तराखंड हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।

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