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झारखंड विधानसभा से सरना आदिवासी धर्म कोड का प्रस्‍ताव पास, अब केंद्र के पाले में गेंद

झारखंड विधानसभा ने 2021 में होने वाली जनगणना में आदिवासियों के लिए अलग धर्म कोड कॉलम के लिए 'सरना आदिवासी'...
झारखंड विधानसभा से सरना आदिवासी धर्म कोड का प्रस्‍ताव पास,  अब केंद्र के पाले में गेंद

झारखंड विधानसभा ने 2021 में होने वाली जनगणना में आदिवासियों के लिए अलग धर्म कोड कॉलम के लिए 'सरना आदिवासी' धर्म कोड के प्रस्‍ताव को सर्वसम्‍मत पारित किया। मुख्‍यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि जल्‍द ही इसे केंद्र को भेजा जायेगा। आदिवासियों के लिए यह महत्‍वपूर्ण है, इसके प्रभावी होने के बाद कई फायदे होंगे। सदस्‍यों की आपत्ति के बाद विषय में थोड़ा सा संशोधन कर प्रस्‍ताव पास किया गया।

राज्‍य मंत्रिपरिषद ने विषय में आदिवासी/सरना के प्रस्‍ताव को मंजूरी दी थी। अब सरना आदिवासी के रूप में इसे पास किया गया है। इस सीमा तक कैबिनेट द्वारा पास संकल्‍प में भी संशोधन किया जायेगा। विधानसभा अध्‍यक्ष रविंद्र नाथ महतो ने ध्‍वनि मत से सर्वसम्‍मत प्रस्‍ताव पास किया। आदिवासियों के धर्म कोड से संबंधित प्रस्‍ताव पर विमर्श के लिए ही विधानसभा का एक दिन का विशेष सत्र बुलाया गया था। मुख्‍यमंत्री हेमंत सोरेन ने ट्वीट कर कर कहा है कि आज विधानसभा का विशेष सत्र झारखंड के इतिहास में ऐतिहासिक दिन साबित होगा। झारखंड की पहल के बाद केंद्र ने जनगणण में आदिवासियों के लिए अलग धर्म कोड की मंजूरी दे दी तो मुख्‍यमंत्री हेमंत सोरेन का कद देश के आदिवासियों के बीच बढ़ जायेगा। आदिवासियों की आबादी वाले अनेक राज्‍य जनगणना कॉलम में आदिवासियों के लिए अलग धर्म कोड की मांग करते रहे हैं।

वर्ष 2000 में अलग झारखंड राज्‍य के गठन के बाद आदिवासियों के लिए धर्म कोड की मांग जोर पकड़ी रही। हालांकि भारतीय जनता पार्टी का स्‍टैंड बहुत स्‍पष्‍ट नहीं था। राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ आदिवासियों को हिंदू मान उनसे जनगणना फार्म में यही दर्ज करने की अपील करती रही। मगर विधानसभा में भाजपा ने भी सहमति दे दी। एक दिन पहले भाजपा विधायक दल की बैठक में धर्म कोड का समर्थन करने मगर आदिवासियों के धर्मांतरण पर फोकस करने का निर्णय किया था। रघुवर सरकार में मंत्री रहे भाजपा के नीलकंठ सिंह मुंडा ने सदन में कहा कि पहले आदिवासियों के लिए अलग कोड था मगर हटा दिया गया था। वे सरना धर्म कोड का समर्थन करते हैं मगर कांग्रेस ने आदिवासी जोड़कर राजनीति की है। सीपी सिंह, नीलकंठ मुंडा और बंधु तिर्की के आरोप-प्रत्‍यारोप के कारण सदन में थोड़ी देर अव्‍यवस्‍था रही। बाद में मुख्‍यमंत्री ने धर्म कोड के प्रारूप में संशोधन की स्‍वीकृति दी और सदन से सर्वसम्‍मत प्रस्‍ताव पास हो गया। बता दें कि 1871 से 1951 तक की जनगणना में आदिवासियों के लिए अलग धर्म कोड का प्रावधान था मगर 1961 की जनगणना में इसे हटा दिया गया। उसके बाद से जनगणना के कॉलम में शामिल करने की मांग उठती रही। आदिवासी इसे अपने अस्तित्‍व, अपनी पहचान से जोड़कर देखते हैं।

केंद्र ने खारिज किया प्रस्‍ताव तो हेमंत को मिलेगा आक्रमण का मौका

झारखंड विधानसभा द्वारा सर्वसम्‍मत प्रस्‍ताव केंद्र को जायेगा उसके बाद केंद्र सरकार को निर्णय करना है। निर्णय जल्‍द करना होगा क्‍योंकि 2021 में जनगणना शुरू होने के पहले की प्रक्रिया भी कम समय में ही शुरू हो जायेगी। भाजपा पर आरएसएस का पूरा प्रभाव रहता है और आरएसएस नेतृत्‍व जनगणना में आदिवासियों के लिए अलग धर्म कोड का हिमायती नहीं रही है। ऐसे में समय बतायेगा कि केंद्र का क्‍या रवैया होता है। रुख नकारात्‍मक रहा तो हेमंत सोरेन को केंद्र की भाजपा सरकार के खिलाफ आदिवासियों को गोलबंद करने का एक और बड़ा मौका मिल जायेगा। क्‍योंकि झारखंड में आदिवासियों के बीच यह मुद्दा गरमाया हुआ है। 2015 में भी इसकी पहल हुई थी तक जनगणना महानिबंधक ने सरना धर्म कोड के प्रस्‍ताव को इस आधार पर खारिज कर दिया था कि देश में सौ से अधिक आदिवासियों के समूह हैं और सरना की तरह अलग-अलग प्रदेशों में अलग-अलग नाम से मांग होती रही है। नाम में एकरूपता के अभाव में यह मुश्किल है। वहीं मुख्‍यमंत्री हेमंत सोरेन कहते हैं कि पिछली जनगणना में देश के 21 राज्‍यों के 50 लाख आदिवासियों ने जनगणना फार्म में सरना दर्ज कराया था।

 

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