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सियासी दलों की निगाहें अब लुक ईस्ट राजनीति पर, यूपी की सत्ता के लिए हैं इसके खास मायने

अब सियासी दलों की निगाहें यूपी की लुक ईस्ट यानी पूर्वांचल की राजनीति पर टिकी हैं। जानकारों का मानना...
सियासी दलों की निगाहें अब लुक ईस्ट राजनीति पर, यूपी की सत्ता के लिए हैं इसके खास मायने

अब सियासी दलों की निगाहें यूपी की लुक ईस्ट यानी पूर्वांचल की राजनीति पर टिकी हैं। जानकारों का मानना है कि यूपी की सत्ता का रास्ता पूर्वांचल से ही होकर जाता है। जिसके पास पूर्वांचल में अधिक सीटें आई, वही यहां की सत्ता पर काबिज होता है। हालाकि पिछले सोलों में हुए चुनावों को देखें तो पूर्वांचल का मतदाता कभी किसी एक पार्टी के साथ नहीं रहा। ऐसे में यहां अपनी स्थिति सुधारने के लिए भाजपा पूर्वांचल के विकास पर रस्साकसी कर रही है। इस महीने के 11 से 13 तक सीएम योगी आदित्यनाथ ने पूर्वांचल में रह कर विकास के कई योजनाओं की शुरुवात की और चीनी फैक्ट्री का उदघाटन किया। पूर्वाचंल चीनी का कटोरा के लिए भी जाना जाता था। लेकिन इसकी बदहाली ऐसा दौर चला कि गरीबी पूर्वांचल की पहचान बन गया पर अब जापानी बुखार भी गायब हो गया। AIIMS भी आ गया और पूर्वांचल एक्सप्रेस के साथ योगी काल मे विकास की दौड़ लगा रहा है और हो भी क्यों ना 2019 के परिणाम बीजेपी के लिए मजबूत करने वाले थे।

अब पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने सपा को लेकर पूर्वांचल की तरफ ध्यान देना शुरू किया और अपने संसदीय क्षेत्र में कैम्प ऑफिस बना पूर्वांचल के लिए समय देने की रणनीति तय की है। इसी के साथ,उत्तर प्रदेश में पूर्वांचल सियासत का नया गढ़ बनने लगा है। कांग्रेस ने पहले से ही अजय कुमार लल्लू को अपना अध्य्क्ष बना रखा है जो पूर्वांचल से आते है।  AIMIM, पीस पार्टी जैसे तमाम दल भी पूर्वांचल से बड़ी उम्मीद लगाए बैठे हैं। एक नज़र पूर्वांचल में गर्माती सियासत पर। यूपी को सबसे ज्यादा मुख्यमंत्री देने वाले पूर्वांचल में एक बार फिर प्रदेशभर के सियासतदानों की निगाहें है।

यूपी की 403 विधानसभा सीटों में से पूर्वांचल के 28 जिलों में से करीब 170 विधानसभा सीटें आती हैं। यूपी की राजनीति में कहावत भी है कि जिसने पूर्वांचल जीता उसने लखनऊ की कुर्सी पर कब्जा जमाया। इसी को देखते हुए अब भारतीय जनता पार्टी हो समाजवादी पार्टी हो कांग्रेस हो या फिर यूपी की राजनीति में अपनी जड़ें जमाने की कोशिश में करने वाले छोटे-छोटे दल हैं। सभी पूर्वांचल की तरफ ना सिर्फ रुख कर रहे हैं बल्कि पूर्वांचल में अपनी दमदार उपस्थिति दिखाने की कोशिश में लगे हुए हैं।

सत्ताधारी पार्टी अच्छी तरह से जानती है कि पूर्वांचल में जिस का सिक्का बोलता है वह लखनऊ की सत्ता संभालता है, शायद इसीलिए दिसंबर के दूसरे हफ्ते में स्वयं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गोरखपुर में कैंप करते हुए पूर्वांचल के विकास को लेकर उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा चलाई जा रही विभिन्न योजनाओं की जमीनी हकीकत में तब्दील करने के लिए सभी बड़े अधिकारियों को वहां पर ले कर गए।

साल 2012 के विधानसभा चुनाव में पूर्वांचल में समाजवादी पार्टी ने 106 सीटें जीती थी और सत्ता की गद्दी पर विराजमान हुई थी। लेकिन 2017 में कहानी पलट गई और पूर्वांचल में कमल खिल उठा। हालांकि 2019 में अखिलेश यादव आजमगढ़ आये और यहां से सांसद बनकर संसद पहुचे। अब एकबार फिर पूर्वांचल के इतिहास और अपनी पार्टी के 2012 के इतिहास को यादकर अखिलेश यादव यहां कैम्प करने जा रहे हैं। सबसे ज्यादा शासन करने वाली कांग्रेस भी पूर्वांचल के महत्व को जानती है। शायद इसीलिए कांग्रेस का कहना है कि उनकी पार्टी की सरकार ने पूर्वांचल के बहुत विकास किया , राजभर की भासपा ही या ओवैसी के गठबंधन सब की जड़ पूर्वांचल पर ही टिकी है।

सियासी दल कुछ भी कहें लेकिन पूर्वांचल पर सबकी निगाहें टिक गई हैं। हालांकि सच्चाई ये है कि यूपी की राजनीति में सबसे ज्यादा प्रभाव डालने के बाद भी विकास के पैमाने पर पूर्वांचल प्रदेश का सबसे पिछड़ा क्षेत्र माना जाता है। जानकारों की माने तो सभी दलों के एजेंडे में पूर्वांचल सबसे ऊपर है। कई दशक से जातीय समीकरण और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का कार्ड पूर्वांचल में खेलकर सत्ता में आने वाली पार्टियों ने यहां के लिए कोई काम नहीं किया यही कारण है कि शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, बिजली, पानी से लेकर कानून व्यवस्था के मामले में प्रदेश के बाकी हिस्सों से यह हिस्सा काफी पिछड़ा है। पूर्वांचल की सबसे बड़ी समस्या बेरोजगारी और पलायन भी है।

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