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बिहार को मिला विशेष पैकेज कहीं जुमला न बन जाए

बिहार विधानसभा चुनाव से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक लाख पच्चीस हजार के विशेष पैकेज की घोषणा की थी तो यह सवाल उठा था कि आखिर इतना बड़ा पैकेज किस मद में दिया जाएगा। चुनाव बीत गया और योजनाओं की लंबी फेहरिस्त भी तैयार हो गई लेकिन केंद्र ही इस सौगात पर ग्रहण ही लगा हुआ है। बिहार के कोटे से केंद्र सरकार में आठ मंत्री शामिल है जिनमें तीन कैबिनेट, दो स्वतंत्र प्रभार और तीन राज्यमंत्री हैं। स्वतंत्र प्रभार के मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान हैं तो उड़ीसा से लेकिन बिहार के कोटे से राज्यसभा सदस्य हैं।
बिहार को मिला विशेष पैकेज कहीं जुमला न बन जाए

 लंबे अरसे से राज्य सरकार केंद्र से वित्तिय सहायता की गुहार लगाती रही है और अभी भी लगा रही है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 1 फरवरी 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर मांग की कि वित्तिय वर्ष 2015-16 के लिए 'विशेष योजना’ के तहत स्वीकृत 1887.53 करोड़ रूपये तुंरत जारी किए जाए। इसके साथ ही राज्य सरकार की ओर से यह भी मांग की गई कि 10वीं और 11वीं पंचवर्षीय योजना की लंबित योजनाओं को पूर्ण करने के लिए 615.90 करोड़ रूपये की राशि के अलावा 12वीं पंचवर्षीय योजना की लंबित योजनाओं को पूर्ण करने के लिए 4877.77 करोड़ रूपये की राशि भी जारी की जाए। नीतीश कुमार प्रधानमंत्री के अलावा केंद्रीय मंत्रियों से भी गुहार लगा रहे हैं कि राज्य के विकास के लिए धनराशि का आवंटन किया जाए। यहां तक की राज्य का कोई भी शहर स्मार्ट सिटी में नहीं शामिल किया गया है जिसके लिए मांग उठ रही है। 

बिहार की बड़ी आबादी खेती पर निर्भर है और केंद्रीय कृषि मंत्री राधामोहन सिंह का दावा है कि राज्य में कृषि के विकास के लिए केंद्र सरकार ने कई योजनाएं चिन्हित की है। जिन पर काम चल रहा है। लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि जिन योजनाओं का राधामोहन सिंह दावा करते हैं उनमें कई योजनाएं अभी शुरू भी नहीं हो पाई हैं। राज्य के कृषि मंत्री रामविचार राय कहते हैं कि केंद्रीय राशि में कटौती से बिहार की योजनाएं प्रभावित हो रही हैं। राय के मुताबिक कई योजनाओं में केंद्र सरकार ने अपनी हिस्सेदारी में कटौती कर दी है। राय के मुताबिक पहले जिन योजनाओं में 100, 90, 85, 75 फीसदी तक केंद्रीय हिस्सेदारी थी उनमें समेकित रूप से केंद्रीय हिस्सेदारी मात्र 60 फीसदी कर दी गई है। जिससे राज्य का वित्तिय बोझ बढ़ गया है।

केंद्रीय संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद भी राज्य में संचार तंत्र को मजबूत करने में नाकाम रहे हैं। यही कारण बिहार में लोग उन्हें काल ड्राप मंत्री भी कहने लगे हैं। बिहार के वित्त मंत्री अब्दुल बारी सिद्दकी कहते हैं कि राज्य सरकार ने अपने स्तर पर कई संसाधन जुटाए हैं लेकिन योजनाओं की पूर्ति के लिए केंद्र पर निर्भरता अधिक है। दूसरी ओर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष मंगल पांडेय कहते हैं कि केंद्र सरकार की ओर से योजनाओं की जो बौछार हो रही है उसे राज्य सरकार सहन नहीं कर पा रही है। लाभ लेने की बात तो दूर योजना रूपी सौगातों के लिए राज्य सरकार जमीन देने में भी आनाकानी कर रही है। पांडेय कहते हैं कि कृषि प्रधान राज्य के लिए केंद्रीय बजट में कई प्रावधान किए गए हैं लेकिन राज्य सरकार योजनाओं का लाभ लेने में अक्षम दिख रही है।

केंद्रीय कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्री राजीव प्रताप रूडी राज्य में कौशल विकास को बढ़ावा देना चाहते हैं इसलिए उन्होने नए आईटीआई संस्थािनों को खोलने पर जोर दिया है और राज्य सरकार से प्रस्ताव भी मांगा है कि कहां-कहां पर आईटीआई खोला जाना चाहिए। रूडी कहते हैं कि युवाओं को प्रशिक्षित करके रोजगार के क्षेत्र में सराहनीय काम किया जा सकता है। लेकिन कई योजनाएं ऐसी हैं जो कि सियासी चक्रव्यूह में फंसी हुई है। सारण और औरंगाबाद में कृषि महाविद्यालय, मुजफ्फरपुर में कृषि अनुसंधान केंद्र, मोतिहारी में बागवानी कॉलेज, मोतिहारी व मधुबनी में पशु एवं मत्स्यर कॉलेज आदि योजनाएं बिहार के लिए स्वीकृत हैं लेकिन राज्य सरकार से जमीन नहीं मिल पाने के कारण यह योजनाएं अधर में लटकी हुई हैं। राज्य के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव कहते हैं कि केंद्र सरकार ने वोट के लिए घोषणाएं की लेकिन अब उन घोषणाओं पर किसी प्रकार का अमल नहीं हो रहा है। वहीं केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री जयंत सिन्हा भरोसा जताते हैं कि विधानसभा चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री की ओ से घोषित विशेष पैकेज का एक-एक पैसा बिहार को मिलेगा। इस मुद्दे पर राजनीति की कोई गुंजाइश नहीं है।

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