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राजस्थान विधानसभा में विवादित अध्यादेश पेश, भाजपा के दो विधायकों ने भी किया विरोध

राजस्थान विधानसभा का सत्र प्रारंभ होते हुए सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच जोरदार बहस हुई। सोमवार को...
राजस्थान विधानसभा में विवादित अध्यादेश पेश, भाजपा के दो विधायकों ने भी किया विरोध

राजस्थान विधानसभा का सत्र प्रारंभ होते हुए सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच जोरदार बहस हुई। सोमवार को वसुंधरा सरकार का विवादास्पद 'लोकसेवक' अध्यादेश विधानसभा में पेश किया गया, जिसके बाद विपक्षी कांग्रेस विधायकों ने बिल का विरोध करते हुए सदन से वॉकआउट कर दिया।

वहीं भाजपा के भी दो नेताओं घनश्याम तिवाड़ी और एन रिजवी ने इस बिल का विरोध किया। इस दौरान सदन में भारी हंगामे के चलते विधानसभा की कार्यवाही मंगलवार तक के लिए स्थगित कर दी गई।

क्या है अध्यादेश में?

समाचार एजेंसी पीटीआइ के मुताबिक, आपराधिक कानून (राजस्थान संशोधन) अध्यादेश, 2017 के अनुसार ड्यूटी के दौरान किसी जज या किसी भी सरकारी कर्मी की कार्रवाई के खिलाफ कोर्ट के माध्यम से भी प्राथमिकी दर्ज नहीं कराई जा सकती। इसके लिए सरकार की स्वीकृति अनिवार्य होगी। हालांकि यदि सरकार स्वीकृति नहीं देती है तब 180 दिन के बाद कोर्ट के माध्यम से प्राथमिकी दर्ज कराई जा सकती है।

अध्यादेश के प्रावधानों में यह भी कहा गया है कि इस तरह के किसी भी सरकारी कर्मी, जज या अधिकारी का नाम या कोई अन्य पहचान तब तक प्रेस रिपोर्ट में नहीं दे सकते, जब तक सरकार इसकी अनुमति न दे। इसका उल्लंघन करने पर दो वर्ष की सजा का भी प्रावधान किया गया है।

कांग्रेस ने बताया काला कानून

 

इस अध्यादेश के खिलाफ कांग्रेसी विधायकों ने मुंह पर काली पट्टी बांधकर विधानसभा के बाहर विरोध मार्च किया। विधायकों ने हाथ में बैनर ले रखे थे, जिस पर ‘लोकतंत्र की हत्या बंद करो, काला कानून वापस लो’ लिखा था।

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सचिन पायलट ने कहा कि वे इस अध्यादेश के खिलाफ लड़ाई जारी रखेंगे। उन्होंने कहा, "सरकार अपने स्वयं के भ्रष्टाचार को छुपाना चाहती है। हम राष्ट्रपति को ज्ञापन सौपेंगे।"

इस बीच विरोध जता रहे सचिन पायलट सहित कांग्रेस के कई नेताओं को पुलिस द्वारा हिरासत में ले लिया गया। 


 

क्या कहती है सरकार?

राजस्थान की सरकार ये दलील दे रही है कि अध्यादेश लोगों के हित के खिलाफ नहीं है। मकसद ये है कि अधिकारी बिना दबाव के काम कर सकें। मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने विधानसभा सत्र प्रारंभ होने से पूर्व भाजपा विधायक दल की बैठक ली, जिसमें उन्होंने कहा कि विपक्ष के हमलों का जोरदार जवाब दिया जाए। इससे पहले विधानसभा पहुंचे सरकार के कई मंत्रियों ने पुन: दोहराया कि यह बिल भ्रष्ट लोकसेवकों को बचाने के लिए नहीं अपितु ईमानदार लोकसेवकों को झूठे मुकदमों में फंसने से रोकने के लिए है।

इतना ही नहीं राजस्थान सरकार के सूचना एवं जनसंपर्क विभाग के वेबसाइट में भी सरकार की ओर से इस संबंध में बयान जारी कर कहा गया कि भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टोलरेंस की नीति पर कायम राज्य सरकार नए अध्यादेश में भ्रष्ट लोकसेवकों को कोई संरक्षण नहीं दे रही। राज्य सरकार द्वारा प्रख्यापित दण्ड विधियां (राजस्थान संशोधन) अध्यादेश, 2017 में ऎसा कोई प्रावधान नहीं है जिससे भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टोलरेंस की राज्य सरकार की इच्छाशक्ति कमजोर हो रही हो।  जीरो टोलरेंस की अपनी नीति पर कायम रहते हुए सरकार ने कहीं भी भ्रष्ट लोकसेवकों को संरक्षण देने की इस अध्यादेश में बात नहीं कही है।

इधर केंद्रीय विधि एवं न्याय राज्यमंत्री पीपी चौधरी ने इस विधेयक को लेकर कहा कि यह बिलकुल परफेक्ट और संतुलित कानून है। इसमें मीडिया का भी ध्यान रखा गया है और किसी व्यक्ति के अधिकारों का भी। इस समय में इस कानून की बहुत ज्यादा जरूरत है।

प्रेस की आजादी पर अंकुश लगाने वाला कानून

एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने भी इस विवादित कानून का विरोध किया है। एडिटर्स गिल्ड का कहना है कि यह 'पत्रकारों को परेशान करने, सरकारी अधिकारियों के काले कारनामे छिपाने और भारतीय संविधान की तरफ से सुनिश्चित प्रेस की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने वाला एक घातक कानून' है।

अध्यादेश के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका

'दंड विधियां (राजस्थान संशोधन) अध्यादेश, 2017'  के खिलाफ राजस्थान हाईकोर्ट में भी जनहित याचिका दाखिल की गई है। सीनियर वकील एके जैन ने दाखिल याचिका में इस अध्यादेश को 'मनमाना और दुर्भावनापूर्ण' बताते हुए इसे 'समानता के साथ-साथ निष्पक्ष जांच के अधिकार'  के खिलाफ बताया है। इसमें कहा गया है कि इससे 'एक बड़े तबके’ को अपराध का लाइसेंस दे दिया गया है।

 

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