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नाबालिग बलात्कार पीड़िता के गर्भपात से आगे के सवाल

बलात्कार पीड़ित नाबालिग मां के बच्चे के जन्म लेने के बाद परिवार, समाज या कानून से उसे ऐसी व्यवस्था नहीं मिल पाती, जिसमें बच्चा आवश्यक जरूरी सुविधाओं के साथ पल-बढ़ सके। बल्कि वह सबके लिए एक बोझ सरीखा बन जाता है। अहमदाबाद की बच्ची को कानून से थोड़ा छूट देते हुए 25 सप्ताह के गर्भपात की इजाजत जरूर मिलनी चाहिए थी, और मिली भी। यहीं पर इस तरह के तमाम सवाल कानून के दायरे में रहकर जवाब मांगते हैं।
नाबालिग बलात्कार पीड़िता के गर्भपात से आगे के सवाल

एक बच्ची जिसकी खुद की उम्र खेलने-कूदने की है, लिखने-पढ़ने की है, यदि दुर्घटनावश वह मां बन जाए तो उसका जीवन कैसा होगा। उस बच्चे का जीवन कैसा होगा जो 14 साल की बच्ची के गर्भ से जन्मा होगा। उस बच्ची के मां-बाप सुबह-शाम इस सवाल से गुजर रहे थे। बच्ची के लिए तो ये अकल्पनीय था। इस सबके अलावा जो सामाजिक शर्म उन्हें झेलनी पड़ती, क्या वे एक सामान्य जीवन जी सकते थे।

 

उच्चतम न्यायालय के ऐतिहासिक फैसले ने, न सिर्फ इस परिवार को एक बड़े गंभीर संकट से उबार दिया, बल्कि दुर्भाग्यवश ऐसी दुर्घटनाओं का शिकार होनेवाली लड़कियों के लिए भी एक नई राह तैयार की है।उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद बलात्कार पीड़ित नाबालिग बच्ची का 25 सप्ताह का गर्भ गिरा दिया गया है। बच्ची स्वस्थ्य है। जिंदगी की नई पारी के लिए हम उसे शुभकामनाएं दे सकते हैं। अदालत का फैसला उस लड़की की जिंदगी में कितनी बड़ी राहत लेकर आया है, यह समझने के लिए हमें उस स्थिति की कल्पना करनी होगी कि यदि बच्ची अनचाही मां बन जाती। दसवीं में पढ़नेवाली छात्रा कैसे उस बच्चे को संभालती। जबकि उसकी अपनी उम्र किताबों और सहेलियों के साथ बीतनी थी। क्या वह उस बच्चे को पाल लेती। क्या वह एक मां होने की कसौटियों पर खरी उतरती। क्या समाज एक बच्ची को बच्चा संभालते हुए देख लेता। उसकी तरफ उठनेवाली हजार निगाहें, सौ-सौ फब्तियां, खुद अपने मां-बाप और रिश्तेदारों की निगाहें उसके साथ कैसा सलूक करतीं। ऐसा जीवन एक बोझ बन जाता। दुनिया में जन्म लनेवाले हर शिशु को जिस प्रेम, सहारे, स्पर्श, दुलार की जरूरत होती है, उस नवजात को नहीं मिल पाता। इस तरह दो जिंदगियां बरबाद होतीं।

 

लेकिन अब स्थिति अलग है। अनचाहे गर्भ से छुटकारा पाने के बाद वह सामान्य लड़कियों की तरह स्कूल जाएगी। कक्षा में अपनी ही जैसी तमाम लड़कियों के साथ पढ़ेगी। अपने भविष्य के लिए नए सपने बुनेगी। उसके मां-बाप भी ज्यादा निश्चिंत होंगे। सबकुछ पहले जैसा तो नहीं होगा लेकिन पहले जैसा बनाने की कोशिश जरूर की जा सकेगी।

 

ऐसे बच्चों के लिए हमारे पास कोई व्यवस्था है

मान लीजिए कि यह बच्चा दुनिया में आ जाता तो उस सूरत में क्या सारी जिम्मेदारी लड़की और उसके मां-बाप की होती। या हमारे पास ऐसी कोई व्यवस्था होनी चाहिए, जहां इस तरह के बच्चों को पालने, उनकी शिक्षा, सेहत, देखरेख के लिए पर्याप्त व्यवस्था की जा सके। इसी तरह वेश्यावृत्ति से छुड़ाई गई महिलाओं के बच्चों का क्या। वे अपने बच्चों को पालने के लिए क्या करेंगी। और वे बच्चे क्या करेंगे, किस दिशा में जाएंगे।

 

क्या कहता है कानून, क्या करता है समाज

11 जुलाई 2015, मद्रास हाईकोर्ट ने अपना वह विवादित आदेश वापस ले लिया है, जिसमें एक बलात्कारी और पीड़ित को समझौते का निर्देश दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के इस निर्णय को बड़ी गलती बताते हुए कहा था कि यह महिला के सम्मान के खिलाफ है। कोर्ट ने बलात्कारी की जमानत भी रद्द कर दी, जो कि उसे संभावित समझौते के लिए पीड़ित से मिलने के वास्ते दी गई थी।

22 अक्टूबर 2014, हरियाणा के हिसार का मामला। 13 साल की बलात्कार पीड़ित बच्ची ने एक बच्चे को जन्म दिया। जन्म के बाद वह उस बच्चे को अपने साथ नहीं रखना चाहती थी। नाबालिग मां का पिता भी उस बच्चे को नहीं देखना चाहता था। डॉक्टर मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी एक्ट से बचने के लिए गर्भपात नहीं कराना चाहते थे। तो उन्होंने कुछ दिन हीलाहवाली की और प्री मेच्योर डिलिवरी करा दी। एक बच्चे को जन्म देने के बाद 13 साल की किशोरी घर जाना चाहती थी लेकिन नवजात की जान को खतरे की आशंका से डॉक्टर उसे घर जाने की इजाजत नहीं दे रहे थे। इस बच्चे के जन्म की खुशी मनानेवाला कोई नहीं था, कानून के लिए वो बस एक सबूत था जिसके बिनाह पर उस बलात्कारी को सजा दी जा सकती थी।

25 अक्टूबर 2012, तिरुवनंतपुरम के सरकारी अस्पताल में 13 साल की बच्ची ने एक बच्चे को जन्म दिया। भारत में 16 साल से कम उम्र की बच्ची के साथ मर्जी से सेक्स को भी बलात्कार माना जाता है। भारतीय दंड संहिता और बाल विवाह निषेध अधिनियिम 2006, दोनों ही कानून के तहत 13 साल की बच्ची का मां बनना अपराध है। लड़की के माता-पिता ने लोकलाज के डर से पुलिस में शिकायत तक दर्ज नहीं करायी।

 21 अप्रैल 2015, उत्तर प्रदेश के सीतापुर में बलात्कार पीड़ित नाबालिग लड़की ने अपनी दुधमुंही बच्ची को तीन हजार रुपये में बेच दिया। लड़की बेहद गरीब थी। उसका खुद का गुजारा मुश्किल था। ऐसे में एक नवजात शिशु को वो कैसे बड़ा करती। उसका खर्च कैसे उठाती। तीन महीने में ही लड़की दूध, दवा से लेकर तमाम खर्चों के लिए कर्ज में डूब गई। उधार चुकाने के लिए उसे अपने शिशु को बेचने पर मजबूर होना पड़ा।

 

सुजैट जॉर्डन ने तोड़ी बलात्कार पीड़िता की छवि

छोटी उम्र में बलात्कार जैसी दुर्घटना, जिसका असर शरीर से ज्यादा मन पर पड़ता है, की शिकार लड़कियों की बात करते हुए मुझे सुजैट जॉर्डन की भी याद आ रही है। फरवरी 2012 में सुजैट जॉर्डन के साथ दो लोगों ने बलात्कार किया। समाज का दंश झेलती हुई सुजैट ने फैसला किया, वह इस बात को नहीं छिपाएंगी कि उनके साथ बलात्कार हुआ था। अपनी शक्ल दिखाने या नाम बताने पर उन्होंने ऐतराज नहीं किया। बजाए खुद को छिपाने के उन्होंने खुलकर दुनिया के सामने आईं, क्योंकि बलात्कार उनकी नहीं समाज की गलती है। बीमारी के चलते इसी वर्ष सुजैट का निधन हो गया। उन्होंने लोगों के बीच एक हिम्मती महिला की छवि बनायी।

 

भंवरी देवी की जंग

बलात्कार पीड़िता के साथ समाज किस तरह का सलूक करता है, जयपुर के भटेरी गांव की भंवरी देवी की आपबीती से भी समझा जा सकता है। भंवरी देवी का बाल विवाह हुआ था। जो पीड़ा खुद झेली उससे कोई और न गुजरे, बाल विवाह रुकवाने के लिए भंवरी देवी ने अपनी आवाज बुलंद की। यह बात कथित ऊंची जाति वालों को बरदाश्ता नहीं हुई। भंवरी देवी का हुक्का पानी बंद कर दिया गया। इतने से वहां के लोगों का गुस्सा शांत नहीं हुआ तो पांच लोगों ने पति के सामने उसका बलात्कार किया। 22 सितंबर 1992 की बात है ये। भंवरी देवी ने अपने उपर हुए जुल्म के खिलाफ जंग छेड़ दी। आरोपियों के खिलाफ उसने मुकदमा दर्ज कराया तो गांव के सभी लोग चाहते थे कि भंवरी मुकदमा वापस ले। यहां तक कि भंवरी के रिश्तेदारों ने भी उससे मुंह मोड़ लिया। अगर कोई साथ था तो भंवरी का पति। खूब राजनीतिक दांवपेच चले। पूरा अमला बलात्कारियों को ही बचाने में जुट गया जैसे। उन पर बवंडर नाम से फिल्म भी बनायी गई। तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने भंवरी देवी को बहादुरी पुरस्कार भी दिया। भंवरी का संघर्ष आज भी जारी है। वह आज भी महिलाओं के हक के लिए लड़ती हैं। आज भी हमारा समाज बलात्कार पीड़िता के साथ मानवीय व्यहवार नहीं कर पाता।

 

बलात्कार के मामलों में कितने संवेदनशील हैं हम

बलात्कार को लेकर हम, हमारा समाज, हमारी व्यवस्था कितनी संवेदनशील है इस पर राज्यसभा सांसद जावेद अख्तर ने कहा था कि “ जिस तरह का तर्क बलात्कारी दे रहे हैं, यही तर्क ऐसे लोग भी देते हैं जो अपने आप को समाज सुधारक समझते हैं, जो अपने आप को संस्कृति का पहरेदार समझते हैं ”। जावेद अख्तर ने ये बात निर्भया कांड से जुड़ी डॉक्युमेंट्री को दिखाने जाने के विवाद पर कही थी। उनके मुताबिक डॉक्युमेंट्री दिखायी जानी चाहिए थी।

 

इन मामलों से ये तय होता है कि बच्चे के जन्म लेने के बाद परिवार, समाज या कानून से उसे ऐसी व्यवस्था नहीं मिल पाती, जिसमें बच्चा आवश्यक जरूरी सुविधाओं के साथ पल-बढ़ सके। बल्कि वह सबके लिए एक बोझ सरीखा बन जाता है। बड़ा होने पर वह किस तरह का नागरिक बनेगा या बनेगी, कहीं ये राहें उसे अपराध की दुनिया में तो नहीं ले जाएंगी। ये मुद्दा बड़ा है। अहमदाबाद की बच्ची को कानून से थोड़ा छूट देते हुए 25 सप्ताह के गर्भपात की इजाजत जरूर मिलनी चाहिए थी, और मिली भी।  यहीं पर इस तरह के तमाम सवाल कानून के दायरे में रहकर जवाब मांगते हैं।

 

 

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