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दस लाख मौतों के बावजूद धंधे की चाह

सचमुच महान है भारत, हमारी सरकार और समाज। हर साल 10 लाख लोगों की मौत के रिकार्ड पर हम आंसुओं के साथ भाषण दे रहे हैं। बहुत बारीक अक्षरों में पैकेट पर चेतावनी दर्ज कर देते हैं, ताकि खानापूर्ति हो जाए। लेकिन करीब 30 करोड़ लोगों के तंबाकू के उपयोग से उत्‍पादक, विक्रेता की अंधाधुंध कमाई के साथ सरकार अपने खजाने में अच्‍छा-खासा टैक्‍स भर लेती है।
दस लाख मौतों के बावजूद धंधे की चाह

‘गुटका किंग’ और ‘मटका किंग’ के बल पर राजनेताओं, अफसरों को अपने भंडारों के लिए भी समुचित व्‍यवस्‍था हो जाती है। सबसे मजेदार बात यह है कि तंबाकू से समाज के स्‍वास्‍थ्‍य पर घातक प्रभाव से राहत के लिए हमारी सरकार विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन के सामने 22 अरब डॉलर खर्च होने का दर्द भी सुनाती है। मतलब, तंबाकू के धंधे से सरकार को होने वाली वैधानिक कर वसूली से कई गुना राशि उसके सेवन से होने वाले नुकसान को नियंत्रित करने पर खर्च हो जाती है। यह कहानी नई नहीं है। 1977 में मोरारजी देसाई के नेतत्‍व में जनता पार्टी की सरकार बनने पर सोशलिस्‍ट पृष्ठभूमि वाले स्‍वास्‍थ्‍य मंत्री राजनारायण ने तंबाकू-गुटका के विरुद्ध अभियान शुरू किया, तो दिग्‍गज नेताओं ने हस्‍तक्षेप किया।

कुछ महीनों में ही ‘गुटका किंग’ विजयी हो गए। आर्थिक विकास के साथ तंबाकू का उत्‍पादन और खपत बढ़ने से संबंधित धंधेबाजों की चांदी हो गई। अरबों रुपयों का वैध-अवैध धंधा फलता-फूलता रहा। कल तंबाकू नियंत्रण ढांचा संधि पर विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन का सम्‍मेलन दिल्‍ली में ही आयोजित हुआ। दुनिया के 78 देशों के प्रतिनिधि सम्‍मेलन में पहुंचे हैं। श्रीलंका से तो स्‍वयं राष्ट्रपति मैत्रीपाल सिरीसेना ने सम्‍मेलन में आकर तंबाकू नियंत्रण पर संयुक्‍त अंतरराष्ट्रीय प्रसासों पर जोर दिया। भारत के स्‍वास्‍थ्‍य मंत्री ने स्थिति पर चिंता अवश्‍य व्‍यक्‍त की, लेकिन सार्वजनिक रूप से यह भी स्वीकार कर लिया कि ‘तंबाकू उपयोग पर नियंत्रण में कई कठिनाइयां एवं चुनौतियां हैं। तंबाकू से होने वाली मौतों को रोकने के लिए भारत को लंबी दूरी तय करनी है।’

दूसरी तरफ तंबाकू उत्‍पादकों के एक वर्ग ने सम्‍मेलन के विरोध में ही प्रदर्शन कर दिया। उत्‍पादक और धंधेबाज तंबाकू नियंत्रण प्रयासों को षड्यंत्र करार दे रहे हैं। प्रदूषण के लिए जिम्‍मेदार पटाखा उत्‍पादक और धंधेबाजों ने भारी संकट और हंगामे के बावजूद ‘धार्मिक उत्‍सवों’ पर करोड़ों- अरबों के पटाखों के प्रयोग की छूट सरकार से ले ली। केवल विवाह कार्यक्रमों के अवसर पर पटाखों पर दिल्‍ली में प्रतिबंध लगा दिया गया। यह भी हास्‍यास्‍पद बात है, क्‍योंकि निजी शादी कार्यक्रम के मुकाबले हर तीसरे हफ्ते भारत के किसी न किसी त्‍यौहार के नाम पर पटाखे चलते रहेंगे। तंबाकू पर नियंत्रण के लिए भी इसी तरह हरसंभव छूट के साथ नियंत्रण के कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। कोई यह नहीं सोचता कि तंबाकू और बारूद से कितने लाख लोग बिना किसी युद्ध के मारे जा रहे हैं।

 

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