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चर्चाः शाह की चुप्पी की सलाह कितनी जायज

ताकत मौन में या मीडिया के पास? मीडिया कहां चुप रहे, कहां मुंह खोले और कहां ध्यान दे? सत्ता में आने के बाद अधिकांश राजनेता मीडिया को नई राह दिखाने की कोशिश करते हैं। पत्रकारिता की ‘लक्ष्मण रेखा’ पार करने वाले एक वर्ग के कारण मीडिया को घेरने की गुंजाइश बनती है।
चर्चाः शाह की चुप्पी की सलाह कितनी जायज

लेकिन भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह ने शुक्रवार को सलाह दी कि ‘रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन पर छिड़े विवाद पर मीडिया को ध्यान नहीं देना चाहिए। यह तो सरकार का प्रशासनिक मामला है।’ शाह अनुभवी राजनेता हैं। इस दृष्टि से सरकार के प्रशासनिक मामलों पर चुप्पी रखने की सलाह आश्चर्यजनक और कुछ हद तक खतरनाक है। वह और उनकी सरकार यह कैसे भूल सकती है कि पिछली केंद्र या राज्य सरकारों के कार्यकाल में प्रशासनिक निर्णयों से ही बड़ी गड़बड़ियां हुईं।

रघुराम राजन पर मीडिया से अधिक हंगामा तो भाजपा नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी ने मचाया हुआ है। उन्होंने तो राजन पर इतने गंभीर निजी आरोप लगाए हैं कि उनको एक दिन भी रखे जाने को अनुचित कहा जा सकता है। सरकार के रवैये से साफ है कि राजन पर आरोप निराधार एवं बेमानी है। सरकारें कांग्रेस, भाजपा, समाजवादी, अन्नाद्रमुक या मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की हों, प्रशासनिक व्यवस्‍था ठीक रहने पर ही सामाजिक-आर्थिक स्थितियों को संभालकर रखा जा सकता है।

शाह ने मीडिया के एक और सवाल पर आक्रामक रुख अपनाया। सरकार के कार्यक्रमों के सही क्रियान्वयन में जन प्रतिनिधियों- सांसदों-विधायकों की निष्क्रियता और जनता के बीच न पहुंचने के प्रश्न पर शाहजी की सलाह है कि ‘जन प्रतिनिधियों से ही सारी अपेक्षा क्यों की जाए? मीडिया रोज सरकार की किसी योजना-कार्यक्रम का प्रचार-प्रसार करे।’ इसका मतलब यह हुआ कि कमियां न देखो और गुणगान जारी रखो। यों सरकार स्वयं अपने जयगान में कोई कसर नहीं छोड़ रही है। लेकिन चीन की तरह मीडिया सत्ता के मूड के अनुसार चलने लगे, तो लोकतांत्रिक परंपरा और स्वतंत्र मीडिया की कितनी साख रहेगी। मनमोहन सिंह सरकार में अफसरशाही का वर्चस्व रहा और प्रधानमंत्री अपने सांसदों तक के पत्रों के जवाब नहीं देते थे और प्रशासनिक गड़बड़ियों पर मीडिया रिपोर्ट्स की भी अनदेखी करते थे। वे तो किसी से टकराने को ही तैयार नहीं थे और स्वयं पर मंत्रमुग्‍ध थे। इसका नतीजा उनकी पार्टी ने झेला। इसलिए सत्ताधारी हो या मीडिया स्वयं पर मंत्रमुग्‍ध रहने की गलती न करे।

 

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