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`चाउर वाले बाबा' की `चौपाल- चौसर'

लोगों की छोटी-छोटी जरूरतों की पूर्ति छत्तीसगढ़ में बड़ा फर्क ला रही है- नक्सल समस्या से लेकर राजनीतिक समीकरण तक में। पढ़ें सरगुजा (छत्तीसगढ़) से आउटलुक की ग्राउंड रिपोर्ट
`चाउर वाले बाबा' की `चौपाल- चौसर'

अलोरी और जजावल। पहाडिय़ों के घिरे और नक्सल प्रभावित छत्तीसगढ़ के आदिवासी बहुल इन गांवों तक पहुंचना नाकों चने चबाने जैसा है। पहाड़ी इलाके में मीलों पैदल चलकर अपने गांव तक पहुंचते ग्रामीण। ऐसे इलाके में ग्रामीणों के बीच अगर सीधी बातचीत के लिए मुख्यमंत्री पहुंच जाएं तो उनकी क्या प्रतिक्रिया हो सकती है? वे कैसी मांगें रख सकते हैं और मुख्यमंत्री एवं उनके लाव-लश्कर के अफसर क्या- क्या  काम गिना सकते हैं और प्रतिश्रुति दे सकते हैं?

सरगुजा संभाग के जिले जशपुर के गांव अलोरी और सूरजपुर के गांव जजावल में कभी नक्सलियों का हुक्म चलता था। आज की तारीख में यह स्थिति जरूर बन गई है कि मुख्यमंत्री रमन सिंह अपने अफसरों की टीम के साथ हेलीकॉप्टर और सडक़ के रास्ते ग्रामीणों के बीच पहुंचते हैं और दो- ढाई सौ लोगों के बीच चौपाल लगाकर सीधे बातचीत करते हैं। सरगुजा अंचल में नक्सल हिंसा के खिलाफ जजावल गांव के ग्रामीणों ने सबसे पहले प्रतिरोध शुरू किया। जिस गांव में कभी एकमात्र पक्का मकान को नक्सलियों ने आईईडी लगाकर उड़ा दिया था और सीआरपीएफ के कई जवानों को मार दिया था, वहां अब सुरक्षा बलों का कैम्प तो दूर की बात पुलिस चौकी भी कई किलोमीटर दूर बनी है।

 

रमन सिंह की चौपाल में जुटी भीड़

अपने अंदाज में रमन सिंह मिली-जुली हिंदी सरगुजिया में ऐलान करते हैं, `गांव वालों के मकान का नक्शा-खसरा बनेगा और प्रति फ्री में मिलेगी। जजावल और आसपास के गांवों में बिजली के कम वोल्टेज की समस्या को दूर करने के लिए जजावल में 33/11 केवी का सब-स्टेशन बनेगा। सिंचाई के लिए स्टॉप डैम के लिए 50 लाख जारी किए जाएंगे। सूखा राहत कोष से अलग से तालाब बनाना शुरू कर दिया जाएगा। रास्ते दुरुस्त करने के लिए घाट कटिंग होगी... आदि।' एक बुजुर्ग महिला मितानिन खड़ी होती हैं। स्थानीय स्वास्थ्य केन्द्र से उन्हें कौन-सी दवाएं मिलती हैं, उसके बारे में कुछ कहती हैं और मौके पर निस्तारण होता है।

ठीक इसी तरह अलोरी में एक खेत में चौपाल लगाई जाती है और वहां सूखा एवं ओला प्रभावित किसान अपनी परेशानी बताते हैं। वहां भी कई छोटी-छोटी योजनाओं का ऐलान मुख्यमंत्री करते हैं- सौर ऊर्जा से संचालित पंप बढ़ाना, बिजली के कनेक्शन, 5-10 किलोमीटर की रूट पर बसें, पहाड़ी नाले में पुल आदि। अपने लोक सुराज अभियान के तहत रमन सिंह 100-150, 200-250 की तादाद में ग्रामीण से संवाद कर रहे हैं, दुर्गम इलाकों तक अचानक पहुंच रहे हैं (आखिरी मिनट में वे जिला प्रशासन को खबर भिजवाते हैं कि कहां पहुंचना हैं), सरकारी योजनाओं का जायजा ले रहे हैं।

नक्सल हिंसा प्रभावित सुकमा में मोटरसाइकिल से रमन सिंह का दौरा मीडिया में बेहद चर्चित रहा। कोरिया जिले में सोनहत विकासखंड के ग्राम सलगवांकला में नई एक योजना की घोषणा की गई, जिसकी चर्चा वे हर नए चौपाल में कर हैं- आंगनबाड़ी केन्द्रों में तीन वर्ष से छह वर्ष तक आयु समूह के बच्चों को सप्ताह में एक दिन मीठा और सुगंधित दूध देने के लिए `मुख्यमंत्री अमृत योजना' की शुरूआत। इसी कड़ी में गर्भवती महिलाओं को सप्ताह में छह दिन दोपहर में गर्म, ताजा और पौष्टिक भोजन देने के लिए `मुख्यमंत्री महतारी जतन योजना'।

जिन इलाकों में अभी हाल तक नक्सलियों के फरमान का ग्रामीण पालन करते दिखते थे, वहां प्रशासन की योजनाओं-घोषणाओं का विश्लेषण और रिव्यू करने में सीधे ग्रामीणों की हिस्सेदारी बन रही है। उत्तर छत्तीसगढ़ के 3000 वर्ग किलोमीटर वाले अबूझमाड़ को आदिम सभ्यता और वन क्षेत्र के लिए जाना जाता है। वहां का नारायण गढ़ जिला, जहां माओवादी दहशत के चलते विकास की रोशनी तक नहीं पहुंची। अबूझमाड़ का यह इलाका एक प्रकार से बस्तर का युद्ध क्षेत्र का हिस्सा है, जहां सुरक्षा जवानों और माओवादियों के बीच मुठभेड़ रोज की बात है। माओवादी यहां प्रेशर बम, आईईडी और लैंड माइन के साथ सक्रिय हैं और जन अदालतें लगाया करते हैं। 

अबूझमाड़ के बासिंग में रमन सिंह के हेलिकाप्टर की आवाज सुनकर कुछ लोग देखने पहुंचते हैं। कुछ मुख्यमंत्री को पहचान पाते हैं और कुछ अनभिज्ञ दिखते हैं। थोड़ी ही देर में वहां चौपाल लगती है। बातें होने लगती है। फिर नक्सल प्रभावित बीजापुर जिले में चौपाल लगती है रतिराम की बाड़ी में। यहां मातृ मृत्यु दर बहुत ज्यादा है। सबसे बड़ा कारण यह कि सड़क ही नहीं है। सुकमा जिले के इंजरम से भेज्जी मार्ग पर बन रही सड़क पर नक्सलियों ने अब तक 53 ब्लास्ट किए हैं। इंजरम से भेज्जी तक सड़क मार्ग पर माओवादियों का कब्जा है। इसी इलाके के ताड़मेटला में माओवादियों ने सीआरपीएफ के 76 जवानों को मार डाला था। उर्पलमेटा में 24 जवानों की मुठभेड़ में मौत हो गई थी। थाना परिसरों के बाहर एक तरह से माओवादियों का अघोषित कब्जा है। हर कदम पर बिछे लैंड माइन और माओवादियों की सशस्त्र टुकडिय़ों से आए दिन मुठभेड़ की खबरें आम हैं। भेज्जी इलाके में डा. रमन सिंह मोटर साइकिल पर घूमते हैं और सीधे ग्रामीणों से संवाद करते हैं। भेज्जी गांव को दोबारा बसाया गया है।

पहाड़ियों से घिरे बड़े डोंगर की बुजुर्ग आदिवासी महिला शूलमति `चाउर वाले बाबा' से मिलने पहुंची थी। शूलमति ने अपनी गंवई बोली में कहा, `मुझे चावल, चना, मिट्टी का तेल सब कुछ मिल रहा है, सिर्फ चाउर वाले बाबा से मिलने की चाहत थी।' शूलमति के घर के पास ही मुख्यमंत्री और उनकी टीम का हेलीकॉप्टर उतरा। शूलमति की चाहत बस इतनी थी कि उनके गांव में एक हैंडपंप लगा दिया जाए। रमन सिंह तुरंत इसके निर्देश देते हैं।

कोंडागांव के बड़े डोंगर की चौपाल में रमन सिंह दो पुल बनवाने का भरोसा ग्रामीणों को दिलाते हैं। बारदा-उरंदाबेड़ा का पुल और दूसरा पावड़ा का पुल। इन पुलों के बन जाने से लगभग 50 पंचायतें मुख्यधारा से जुड़ जाएंगी। बड़े डोंगर इलाके में बहने वाली बारदा और पावड़ा नदियां हजारों किसानों को फरसगांव मंडी से काट देती हैं। धान और मक्का का उत्पादन करने वाले किसान बड़ी मुश्किल से अपनी उपज बाजार तक पहुंचा पाते हैं।

 

अपनी घोषणाओं को जमीनी स्तर पर कितना उतार पाए हैं डॉ. रमन सिंह? छत्तीसगढ़ में जन वितरण प्रणाली (पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम) और महिलाओं के स्वयं सहायता समूहों के लिए चलाए जा रहे कुछ कार्यक्रमों का जायजा लेने का मौका मिला। सूरजपुर जिले के अमनदीप ग्राम पंचायत इलाके की पीडीएस दुकान पर कुछ ग्रामीण कतार लगाकर खड़े हैं। वहां एक बुजुर्ग ग्रामीण अपने परिवार के लिए `एक रुपए किलो और प्रति व्यक्ति सात किलो चावल' स्कीम के तहत अपना राशन लेते हैं। राशन दुकानदार अपने टैब से उनकी फोटो उतारता है, जो खरीद-बिक्री के आंकड़ों के साथ सेंट्रल डेटाबेस सेंटर पर अपलोड हो जा रही है। मुख्यमंत्री के साथ चल रहे कई विभागों के प्रभारी सचिव संतोष कुमार मिश्रा बताते हैं, `अकेले इस योजना के चलते समूचे छत्तीसगढ़ में भुखमरी खत्म करने में मदद मिली है। लोगों को कम से कम भोजन मिल रहा है।' 2005 में छत्तीसगढ़ में इस योजना को कंप्युटरीकृत करने की सोची गई थी। गोदाम से जब अनाज के ट्रक निकलते हैं, तब उनकी जीपीएस मॉनीटरिंग की जाती है। ऐसे में पीडीएस योजना में किसी तरह की छोटी-मोटी चोरी को भी कमतर कर दिया गया है। रमन सिंह `आउटलुक' से कहते हैं, `अब हम `मर्जी मेरी' योजना पर काम कर रहे हैं। किसी भी परिवार को कहीं से अनाज खरीदने की छूट होगी। स्मार्ट कार्ड से वह भुगतान करेगा। ऐसे में बची-खुची कसर भी निकल जाएगी।' इस एक योजना से जनाधार बढ़ाने में रमन सिंह को अच्छी मदद मिली है।

सूरजपुर जिले के सरगांव में महिलाओं के स्वयं सहायता समूहों के लिए चलाए जा रहे कुछ कार्यक्रमों को केंद्रीय मनरेगा योजना से जोड़ दिया गया है। पशुपालन विभाग ने यहां के सरगांव में 10 समूह बनाकर 100  महिलाओं को सदस्य बनाया और उन्हें पोल्ट्री फॉर्मिंग की ट्रेनिंग दिलवाई। सकालो पोल्ट्री फॉर्म के डॉ. सी. के. मिश्रा बताते हैं, `महिलाओं को मुर्गी पालन में निषेचित अंडे तैयार करने की ट्रेनिंग दी गई है। पोल्ट्री फॉर्म से उन्हें संकर नस्ल के चूजे दिए जा रहे हैं। इनके अंडों और मीट की प्रोटीन वैल्यू ज्यादा है। इससे रोशनी समूह की निशापति, सूरज समूह की प्यारो और मानमति जैसी महिलाओं की घर बैठे अच्छी आमदनी हो रही है और कुपोषण से भी छुटकारा मिल रहा है।' इसी जिले के अंबिकापुर डंपिंग ग्राउंड में कचरा प्रबंधन का प्रयोग अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नजीर बनने को है। वहां एक लैंडफील से कैसे रोजगार के उपाय निकाले गए, कचरा प्रबंधन किया गया और उस जगह बागवानी तैयार की गई, इस प्रोजेक्ट पर जाने-माने विशेषज्ञ सी. श्रीनिवासन काम कर रहे हैं। अंबिकापुर डंपिंग ग्राउंड में मिलते हैं विधानसभा में विपक्ष के नेता त्रिभुवन शरण सिंहदेव। श्री सिंहदेव कहते हैं, `छोटे-छोटे मसलों पर ध्यान देकर बड़ी दिक्कतें सुलझाई जा सकती हैं।'

लेकिन कहीं-कहीं भोर की रोशनी के बीच अभी भी अंधकार की स्थिति बची है। सूरजपुर के प्रतापपुर में कई गांवों में आदिम पंडो जनजाति को मुख्यधारा से जोड़ने के रास्ते में अभी भी `थोड़ा है, थोड़े की जरूरत है' वाली स्थिति है। कोरमा-करंजवार गांव में जीतेंद्र कुमार पंडो को 12 की पढ़ाई के बाद सीधे नौकरी मिल गई। लेकिन इसी गांव के एक पंडो बुजुर्ग दावा करते हैं कि उनकी दो बेटियों ने बी.ए. तक की पढ़ाई कर ली, कंप्युटर डिप्लोमा ले लिया, लेकिन नौकरी नहीं मिली। कुछ पंडो परिवारों को कुछ दिन पहले शहर ले जाकर रेलवे स्टेशन, ट्रेन और बस दिखाया गया।

पंडों आबादी वाले गांवों में बिजली देने, रोजगार प्रशिक्षण दिलाने, उन्हें जाति प्रमाण-पत्र देने समेत कई अभियान शुरू किए गए हैं। लेकिन अभी-अभी विकास की रोशनी देख रहे पंडो जनजाति के लोगों को शायद विकास का अहसास करने में समय लगेगा। अभी भी तेंदु पत्ता बटोरकर, महुआ बीनकर भोजन जुटाने की मजबूरी है। अभी हाल में छत्तीसगढ़ सरकार ने अत्यंत पिछड़ी जनजाति के लोगों की विकास प्रक्रिया को तेज करने के लिए 11 सूत्री कार्यक्रमों की घोषणा की है। इस योजना के तहत हर घर को बिजली दी गई है। 32 पंडो युवकों को बिजली मेकेनिक का 75 दिनों का प्रशिक्षण दिया गया है। एक और आदिम जनजाति समुदाय कोडाकू समुदाय में भी शिक्षा की ललक बढ़ रही है। लड़कियां पढ़ रही हैं। प्रतापपुर के कस्तूरबा आश्रम में छठी की बुधनी और नौंवी की फुलकुंवारी समेत करीब दर्जनभर बच्चियां डॉक्टर या इंजीनियर बनना चाहती हैं। कस्तूरबा आश्रम की एक शिक्षिका के अनुसार, `इस समुदाय की बच्चियों के लिए हिंदी भी एक कठिन भाषा होती है। यह समुदाय अपनी लोक-बोली ही जानता-समझता आया है। अब फूलकुंवारी जैसी बच्चियां धड़ल्ले से हिंदी बोलती है, अंग्रेजी पढ़ती हैं।' फूलकुंवारी की एक बहन अभी बीए फाइनल में है, एक बहन दसवीं पढ़ रही है।

कभी नक्सल प्रभावित रहे इन इलाकों से पिछड़े और जीवन के लिए रोज-रोज संघर्ष कर रही बड़ी आबादी जब अपने बीच प्रशासन के शीर्षस्थ लोगों को देखती है तो अब बेहिचक अपनी जरूरतें बता रही है। छोटी-छोटी जरूरतें हैं, जिन्हें हम-आप शायद गंभीरता से न लें। लेकिन उन इलाकों में उन जरूरतों की पूर्ति बड़ा फर्क ला रही है। जाहिर तौर पर छत्तीसगढ़ की सबसे बड़ी समस्या नक्सल हिंसा से मुकाबले में इस कवायद की भी भागीदारी है।

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