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पर्यावरण दिवस- इस जंगल को बचाने के लिए फिर से शुरू होगा "चिपको आंदोलन"?, हीरे के लिए खतरे में लाखों पेड़; खून से पीएम को लिखा खत

आज यानी 5 जून को हम विश्व पर्यावरण दिवस मना रहे हैं। पेड़ों को बचाने के लिए देश के युवाओं द्वारा एक...
पर्यावरण दिवस- इस जंगल को बचाने के लिए फिर से शुरू होगा

आज यानी 5 जून को हम विश्व पर्यावरण दिवस मना रहे हैं। पेड़ों को बचाने के लिए देश के युवाओं द्वारा एक अभियान चलाया जा रहा है। नाम है “विदाउट नेचर डार्क फ्यूचर”। इस अभियान के तहत डब्ल्यूएनडीएफ की टीम बक्सवाहा के 2 लाख 15 हजार से ज्यादा पेड़ो को बचाने के लिए एक मुहिम की शुरुआत कर रही है। दरअसल, मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले में हीरा खनन के लिए बक्सवाहा में 2 लाख 15 हजार पेड़ काटे जाने है। जिससे पर्यावरण को सबसे अधिक क्षति होने की संभावना है। डब्ल्यूएनडीएफ की तरफ से इस प्रोजेक्ट को पर्यावरण विरोधी बताते हुए रोकने की मांग की जा रही है। 

62.64 हेक्टर जमीन पर किया जाएगा खनन 

छतरपुर जिले में 20 साल पहले एक सर्वेक्षण किया गया था जिसमें 3.42 करोड़ कैरट हीरा मिलने का अनुमान जताया गया था। हाल ही में आदित्य बिरला समहू को इसके लिए 382 हेक्टेयर क्षेत्र 50 साल के लिए लीज पर दिया गया है। इस प्रोजेक्ट के तहत 62.64 हेक्टर जमीन पर खनन किया जाना है। बाकी, लगभग 200 हेक्टर जमीन का, खनन के दौरान इस्तमाल किया जाना है। ये कंपनी इस प्रोजेक्ट पर तकरीबन 2 हजार 500 करोड़ रुपए खर्च करने जा रही है।

"पीएम मोदी को खून से लिखा खत" 

सामाजिक कार्यकर्ता एवं पर्यावरणविद् तारा पाटकर का कहना है कि हमारे असली हीरा हरे-भरे वृक्ष और जंगल हैं हमें जीने के लिए इनका सहारा चाहिए ना कि हीरो का। बक्सवाहा के जंगल बुंदेलखंड की की आत्मा है और अगर कोई हमारी आत्मा को ही हमसे छीन ले तो फिर हमारा शरीर कैसा! वो कहते हैं, “हम किसी भी कीमत पर इन जंगलों को कटने नहीं देंगे। हाल ही में मैने बक्सवाहा के जंगलों को बचाने के लिए पीएम मोदी, केंद्रीय पर्यावरण मंत्री और मुख्यमंत्री को अपने खून से खत लिखा हैं। हम ये नुकसान किसी भी कीमत पर नहीं होने देंगे। क्योंकि हम जानते हैं कि पेड़ और जंगल हमारे लिए कितनी अहमियत रखते हैं।“

डब्ल्यूएनडीएफ- ‘हम फिर से चिपको आंदोलन के लिए विवश हो रहे हैं’ 

इन सबसे इतर इस जंगल के संरक्षण के लिए युवाओं की डब्ल्यूएनडीएफ टीम मुहिम चला रही है। जिसके लिए देशभर से हजारों युवक बक्सवाहा जंगल को बचाने के लिए जुड़ रहे हैं। डब्ल्यूएनडीएफ की ओर से बक्सवाहा वन संरक्षण के लिए देशव्यापी ऑनलाइन अभियान चलाया जा रहा है। जिसकी शुरुआत 28 मई से की गई है। 'विदाउट नेचर डार्क फ्यूचर' कैंपेन द्वारा अपनी वेबसाइट के माध्यम से ऑनलाइन पेटीशन फॉर्म भी भरवाया जा रहा है, जिसका टाइटल 'शेयर योर वॉइस विद अस' रखा गया है। जिसमे अभी तक 3 हजार से अधिक लोगों ने ऑनलाइन याचिका दायर की है। “विदाउट नेचर डार्क फ्यूचर कैम्पेन के फाउंडर  एवं  युवा पर्यावरणविद्” विवेक उपाध्याय बताते हैं, “यदि हमारे विकास की नीतियों में पर्यावरण संरक्षण की प्राथमिकता नहीं है तो आने वाला समय निश्चित तौर पर प्राकृतिक आपदाओं से पूर्ण होगा! जलवायु परिवर्तन के परिणाम बहुत ही भयानक होने वाले हैं और यह हम सब महसूस भी कर रहे हैं इसी बीच हीरो के लिए बक्सवाहा के जंगलों को काटने की बात चल रही है जोकि बुंदेलखंड का एक अहम हिस्सा है। अगर यह जंगल कटता है तो पूरा बुंदेलखंड उजड़ जाएगा। ये पहले से ही अधिक खनन के कारण उजड़ चुका है, लेकिन अब हम ऐसा नहीं होने देंगे ‘हम फिर से चिपको आंदोलन के लिए विवश हो रहे हैं’ जिसका समर्थन भारत का हर जिम्मेदार नागरिक करेगा।“

वन क्षेत्र में 2 लाख 15 हजार से ज्यादा पेड़

वनविभाग के अनुसार इस इलाके में 2,15,875 पेड़ लगे हुए हैं। घने जंगल में करीब 40,000 पेड़ सागौन के है साथ ही, अर्जुन , शीशम , जामुन , बेल , पीपल ,तेंदू , भेराह समेत अन्य औषधीय और जीवन उपयोगी पेड़ लगे हैं। वहीं स्थानीय लोगों का कहना है कि इस क्षेत्र में अर्जुन के करीब 10 से 12 हजार पेड़ है। वहीं, मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक यहां 382.131 हेक्टर जमीन में घना जंगल है। इस जंगल में कई विलुप्त प्रजाति के जानवर भी है। जिनका जीवन जंगल काटे जाने से खतरे में पड़ सकता है। जंगल काटे जाने से लाखो जीव जंतु अपना घर गंवा देंगे जिसमें कई दुर्लभ प्रजाति के जीवों के विलुप्त होने की भी आशंका है। मई 2017 में पेश की गई जियोलॉजी एंड माइनिंग मध्यप्रदेश और रियोटिंटो कंपनी की रिपोर्ट में बताया गया था कि यहां के जंगल में तेंदुआ , बाज ( यानी कि वल्चर) , भालू , बारहसिंघा , हिरण , मोर, एवं अन्य जीव जंतु पाए जाते है, लेकिन नई रिपोर्ट ने इस दावे को खारिज कर दिया गया है और इलाके में संरक्षित वन प्राणी का बसेरा नही होने का दावा किया गया है। वहीं, वन विभाग अधिकारियों का कहना है कि हीरा खदान में जंगल काटने के बदले 382 हेक्टर राजस्व भूमि को वन भूमि में परिवर्तित किया जाना है। 

 

 

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