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हाशिमपुरा फैसले के खिलाफ मुखर हुआ क्षोभ

हाशिमपुरा फैसले के खिलाफ मुखर हुआ हाशिमपुरा में २८ साल पहले पीएसी द्वारा मारे गए लोगों पर आए अदालती फैसले के खिलाफ गोलबंदी तेज। पीड़ितों के साथ अन्य संगठनों ने बैठकों, प्रदर्शनों का सिलसिला शुरू
हाशिमपुरा फैसले के खिलाफ मुखर हुआ क्षोभ

मेरठ में 28 साल पहले हाशिमपुरा में पीएसी (प्रादेशिक सशस्त्र पुलिस) द्वारा मारे 42 मुसलमानों के परिजनों और पीड़ितों को इंसाफ कब मिलेगा, यह सवाल जोर पकड़ रहा है। दिल्ली से लेकर उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ तक में इस सवाल पर विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए है। दिल्ली में आयोजित बैठक में हाशिमपुरा में मारे गए परिवारों के लोगों और पांच जीवित पीड़ितों ने निचली अदालत द्वारा सभी १६ आरोपियों को छोड़े जाने पर क्षोभ व्यक्त किया।

हाशिमपुरा के लिए  न्याय समिति द्वारा आयोजित इस बैठक में एक स्वर में यह मांग उठी कि निचली अदालत के फैसले से न्याय का अपमान हुआ है, इंसाफ की जगह नाइंसाफी हुई है। बैठक में पीड़ितों ने 28 साल पुराने खूनी मंजर को जब फिर से बयां किया तो माहौल गमगीन हो गया। अदालत के फैसले पर रोष उनकी आवाज में फूट रहा है। उन्होंने बताया कि किस तरह से 28 साल पहले पीएसी के 41वीं बटालीयन के जवान हाशिमपुरा के 50 आदमियों को पीएसी के पीले रंग के ट्रक में भर कर ले गए। उन्होंने बताया कि जवानों की संख्या 19 थी। इन 50 लोगों में से 42 लौटे नहीं। पीएसी का ट्रक पहले गंग नहर गया औ्र फिर हिंडन नहर पर, जहां तक पीएसी के जवानों ने उन पर .3003 बंदूकों से गोली चलाई और लाशों को नहर में फैंक दिया। पचास लोगों में से पांच लोग किसी तरह से बच गए और ही सारी दंरिदगी बयां की। अदालत में भी सरकारी गवाह के तौर पर पेश हुए।

जीवित बचे लोगों की गवाही और साक्ष्यों के आधार पर यह तो साबित हुआ कि हाशिमपुरा के लोगों की हत्या हुई थी और उन्हें पीएसी के जवानों ने ही मारा था। लेकिन उन्हें सजा सिर्फ इसलिए नहीं हुई क्योंकि सरकारी पक्ष ये नहीं साबित कर पाया कि मारने वाले पीएसी सिपाही कौन थे। हाशिमपुरा से आए पीड़ितों के परिवार वालों ने दो टूक पूछा कि दोषियों को पहचानने का काम किसका था। यह सरकार का काम था जो उसने नहीं किया। क्यों नहीं किया, यह तो उनसे पूछा ही जाना चाहिए।

पीड़ित पक्ष की गवाह वृंदा ग्रोवर ने बताया कि किस तरह से हर कदम पर निष्पक्ष जांच की संभावना को खत्म किया गया। जो साक्ष्य मिले भी थे, उन्हें भी खत्म कर दिया गया। उन्होंने इस बात पर भी हैरानी जताई कि हाशिमपुरा में ह्तायरों की शिनाख्त करना कोई रहस्य तो था नहीं क्योंकि सब पीएसी के ही जवान ते, पीएसी के ही ट्रक में आए थे और सरकारी रिकॉर्ड से उनका पता लगाया जा सकता था। लेकिन सरकारें दोषियों को सजा दिलाने से ज्यादा उन्हें बचाने में लगी रही। इस बैठक में बड़ी संख्या में लोगों ने शिरकत की, जिसमें उपा रमानाथन, अपूर्वानंद, रेबेका जॉन, हर्ष मंदर, शबनम हाशमी, कविता कृष्णन प्रमुख थे।

इसके साथ ही दिल्ली में हाशिमपुरा पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए ऑल इंडिया पीपुल्स फोरम (एआईपीएफ) ने जंतर मंतर पर प्रदर्शन किया। प्रदर्शनकारियों का मानना था कि हाशिमपुरा पर आया अदालत का फैसला इंसाफ के खिलाफ है। सब जानते हैं कि हत्यारे कौन हैं, लेकिन सारी सरकारें उन्हें बचाने  में रहीं।

इसके साथ ही मुस्लिम संगठनों ने की हाशिमपुरा हत्याकांड पर फैसले को चुनौती देने की मांग की है। लखनऊ में  आल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड समेत कई मुस्लिम संगठनों ने उत्तर प्रदेश सरकार से मेरठ के हाशिमपुरा जनसंहार मामले के सभी आरोपियों को बरी करने के निचली अदालत के हाल के फैसले को उच्च अदालत में चुनौती देने की मांग की है। शिया पर्सनल लॉ बोर्ड और जमीयत-उलमा-ए-हिन्द अपनी आगामी बैठकों में इस सिलसिले में सरकार पर दबाव बनाने की रणनीति पर विचार करेंगे। विडंबना की बात है कि उत्तर प्रदेश में सत्तासीन समाजवादी पार्टी (सपा) का कहना है कि वह इस मामले का अध्ययन करने के बाद ही कोई निर्णय करेगी। आल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के महासचिव मौलाना निजामउद्दीन ने कहा कि निचली अदालत में जो फैसला 28 साल बाद आया,  वह सरकार की नाकामी और लापरवाही का नतीजा है।

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