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किसान आंदोलनः सरकार ने अपनाई बैकडोर रणनीति, फूट डाल कर प्रदर्शन खत्म करने की कोशिश

किसान आंदोलन का आज 19वां दिन है। किसान संगठनों ने अपने आंदोलन को और तेज कर दिया है। किसान जहां नए तीनों...
किसान आंदोलनः सरकार ने अपनाई बैकडोर रणनीति, फूट डाल कर प्रदर्शन खत्म करने की कोशिश

किसान आंदोलन का आज 19वां दिन है। किसान संगठनों ने अपने आंदोलन को और तेज कर दिया है। किसान जहां नए तीनों कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग पर अड़े हैं तो सरकार केवल संशोधन की बात कह रही है। सरकार से पांच दौर की बातचीत भी बेनतीजा रही है। हाल में यूपी, हरियाणा और उत्तराखंड के किसान संगठनों ने कृषि मंत्री से मुलाकात कर कृषि कानूनों का समर्थन किया है। सोमवार को भी करीब 10 किसान यूनियनों से कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने मुलाकात की। दो दिन पहले केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने किसानों के आंदोलन को लेकर बयान दिया था। इससे भी कई तरह के सवाल खड़ो हो रहे हैं। कयास लगाए जा रहे हैं कि सरकार नए तरह की रणनीति पर काम कर रही है और इन संगठनों के जरिए कृषि कानूनों को जायज ठहराने की कोशिश कर रही है।

सोमवार को देशभर के करीब 10 किसान यूनियनों से बात करने के बाद केन्द्रीय कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने कहा कि आज आल इंडिया किसान समन्वय समिति के किसान आए थे.। उन्होंने हमारे कृषि क़ानून का समर्थन किया है। उन्होंने कहा कि मोदीजी सरकार ने नेक काम किया है, हम चर्चा के लिए खुले हुए हैं। किसानों का कार्यक्रम चल रहा है, अगर बातचीत का कोई प्रस्ताव भेजेंगे तो करेंगे। हमारी इच्छा है कि किसान क़ानून की हर धारा पर चर्चा करें। इससे साफ है कि यानी कि सरकार कानून वापस नहीं लेना चाहती।

किसान आंदोलन को लेकर केंद्रीय रेल मंत्री पीयूष गोयल ने कहा था कि अब यह आंदोलन ज्यादातर लेफ्टिस्टों और माओवादियों के हाथ में चला गया है। ये वामपंथी दल अपना एजेंडा चलाना चाहते हैं। उनका बयान यही दर्शाता है कि केंद्र सरकार किसान आंदोलन के खिलाफ उठ रही आवाज को अब अलग-थलग करने का प्रयास कर रही है। किसान नेताओं और खाप चौधरियों ने भी केंद्र सरकार पर कई गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने साफ तौर पर कहा है कि सरकार उनके आंदोलन में फूटकर आंदोलन को विपळ करना चाहती है।

इससे पहले यूपी, हरियाणा और  उत्तराखंड के कुछ किसानों सगठनों ने कृषि कानूनों को अपना समर्थन दिया है। वहीं, सिंघु बार्डर पर बैठे किसान नेताओं ने सोमवार को कहा कि दो दिन पहले उत्तराखंड से आए जिन कथित संगठनों ने कृषि मंत्री से मुलाकात कर कानून का समर्थन किया था, वह कोई किसान नहीं थे, बल्कि वह तो छलावा था।

बताया जाता है कि सरकार की इस रणनीति बनाने वाले लोगों का मानना है कि अगर हम पंजाब के अलावा बाकी के राज्यों में यह संदेश देने में सफल होते हैं तो इसका मतलब यह होगा कि दूसरे राज्यों ने केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए नए कृषि कानूनों को स्वीकार कर लिया है। बहरहाल किसान आंदोलन को लेकर सरकार और किसान अपने अपने रूख पर कायम है। देखना होगा कि सरकार अपनी रणनीति में कहां तक सफल होती है।

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