अधिकरण वाराणसी में कई स्थानों पर गंगा नदी में सीवेज और घरेलू एवं अनुपचारित औद्योगिक अपशिष्ट जल छोड़े जाने के मामले की सुनवाई कर रहा था। एनजीटी के अध्यक्ष न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव की पीठ ने पिछले सप्ताह पारित आदेश में कहा कि उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) ने आठ जुलाई को एक नयी रिपोर्ट दाखिल की थी।
 

रिपोर्ट के अनुसार, वाराणसी नगर निगम के अंतर्गत आंशिक रूप से बंद किए गए तीन वे नाले हैं जो गंगा नदी में अनुपचारित अपशिष्ट जल गिराते हैं।

इसमें कहा गया है कि अन्य बंद नहीं किए गए नालों में चंदौली जिला पंचायत के अंतर्गत घुरहा नाला और नगर पालिका परिषद, पंडित दीनदयाल उपाध्याय नगर, चंदौली के अंतर्गत रेलवे नाले शामिल हैं।

रिपोर्ट के साथ संलग्न नालों की कुछ तस्वीरों पर गौर करते हुए अधिकरण ने कहा कि इनसे ‘‘नालों की दयनीय स्थिति का पता चलता है, जहां वे गंगा नदी में अनुपचारित जलमल बहा रहे हैं।’’

अधिकरण ने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने तीन साल के भीतर सामान्य अपशिष्ट उपचार संयंत्र (सीईटीपी) और सीवेज उपचार संयंत्र (एसटीपी) स्थापित करने के निर्देश जारी किए हैं तथा निर्देश को लागू करने की जिम्मेदारी राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य सचिव और राज्य सरकार के पर्यावरण विभाग के सचिव की है।

इसने कहा, ‘‘उच्चतम न्यायालय ने 22 फरवरी, 2017 को उपरोक्त निर्णय पारित किया था और तीन वर्ष की समयसीमा समाप्त हो गई है, फिर भी कार्रवाई पूरी नहीं हुई है।’’

अधिकरण ने कहा, ‘‘उच्चतम न्यायालय के निर्देशों के अनुपालन के संबंध में रिपोर्ट दाखिल करने के लिए उपरोक्त प्रतिवादी को नोटिस दिया जाए।’’

इसने वाराणसी के जिलाधिकारी को ‘‘बंद किए गए/आंशिक रूप से बंद किए गए नालों का विवरण और इन नालों से गंगा नदी में बहने वाले अपशिष्ट जल का विवरण/मात्रा’’ का खुलासा करने का भी निर्देश दिया।

मामले की अगली सुनवाई की तिथि 16 अक्टूबर तय की गई।