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धार्मिक पाखंड को उजागर करने वाले चार पत्रकार, जिन पर बनी फिल्म ने ऑस्कर जीता

डेरा प्रमुख के मामले को उजागर करने वाले पत्रकार रामचंद्र छत्रपति की तरह ही इन पत्रकारों ने भी जान का खतरा उठाते हुए धर्म की आड़ में होने वाले अपराध का पर्दाफाश किया था।
धार्मिक पाखंड को उजागर करने वाले चार पत्रकार, जिन पर बनी फिल्म ने ऑस्कर जीता

धर्म के नाम पर पाखंड का खेल हमेशा से चलता रहा है। हमारे देश में बाबाओं के गोरखधंधों का खुलासा लगातार हो रहा है। लिस्ट में नए-नए नाम जुड़ रहे हैं। धर्म व्यक्तिगत आस्था का मसला है लेकिन इसका इस्तेमाल बहुत से लोग निजी फायदे के लिए करते हैं। कभी ये बातें सामने आ जाती हैं, कभी धार्मिक-राजनीतिक डर दिखाकर इन बातों को दबा दिया जाता है। धर्म का लबादा ओढ़े इन जगहों पर यौन-शोषण से लेकर भ्रष्टाचार तक की जड़ें गहरी धंसी हुईं हैं। लोगों के अंदर दबे हुए डर से इन जगहों को खाद-पानी मिलता है।   

इनमें यौन-शोषण के मामले बहुतायत में हैं। ऐसा सिर्फ किसी विशेष धर्म में होता हो, ऐसा नहीं है। तमाम धर्मों में इस तरह के उदाहरण भरे पड़े हैं। कभी देवदासी प्रथा के नाम पर तो कभी धर्म में दीक्षित करने के नाम पर यौन-उत्पीड़न के खेल चलते रहे हैं। इनके खिलाफ लोगों की आवाज उठाने  की हिम्मत नहीं होती क्योंकि इन धार्मिक संस्थाओं के पास खुद का मजबूत तंत्र होता है। इनके पास धन-बल से लेकर बाहुबल तक सब रहता है, जिसके दम पर ये किसी को भी धमका सकते हैं।

डेरा प्रमुख राम रहीम को मिली 20 साल की सजा के पीछे उन दो साध्वियों के साहस को सबसे ज्यादा रेखांकित करने की जरूरत है, जो पिछले 15 सालों से भारी दबावों के बीच केस लड़ती रहीं। साथ ही 'पूरा सच' अखबार के संपादक रामचंद्र छत्रपति को इस मामले को सामने लाने के लिए गोली मार दी गई। कुछ भी हो, कुछ लोग बड़े से बड़े साम्राज्य की नींव हिलाने की कूवत रखते हैं फिर चाहे वो धर्म के नाम पर चल रहे साम्राज्य ही क्यों न हों। ये लोग मुठ्ठी भर ही सही लेकिन हर जगह पाए जाते हैं जो इनसे लड़ने की ताकत रखते हैं। गुरमीत राम रहीम एक ही धर्म में हो, ऐसा नहीं है। लगभग हर धर्म में गुरमीत मिल जाते हैं, साथ ही मिल जाते हैं उनसे लड़ने वाले रामचंद्र छत्रपति। 

ऐसे ही अमेरिका का बहुचर्चित 'बॉस्टन स्कैंडल' याद आता है, जिसने धर्म के ठेकेदारों की पोल खोली थी।

बॉस्टन स्कैंडल

जनवरी 2002 में अमेरिकी अखबार 'द बॉस्टन ग्लोब' ने एक स्टोरी छापी, जिसने पूरी दुनिया में तहलका मचा दिया था। इस स्टोरी में इस बात का खुलासा किया गया कि कैसे चर्च के कई पादरी बॉस्टन में बच्चों का यौन शोषण कर रहे थे और चर्च को इस बात की जानकारी थी। इस सीरीज की जो पहली स्टोरी छपी उसकी हेडलाइन थी- Church allowed abuse by priest for years. इसकी वजह से पूरे अमेरिका में कैथोलिक चर्च निशाने पर आ गया था क्योंकि स्टोरी के बाद तमाम लोग सामने आए, जिन्होंने पादरियों के खिलाफ बोलना शुरू किया।

इस स्टोरी को बॉस्टन ग्लोब की इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट्स की एक टीम ने छापा था, जिसका नाम 'स्पॉटलाइट' था। इसके लिए उन्होंने लम्बे समय तक छानबीन की। शुरुआत में वो सिर्फ एक पादरी के बारे में छानबीन कर रहे थे लेकिन धीरे-धीरे उन्हें पता चलता है कि ऐसे पादरियों की संख्या और भी ज्यादा है, जिन्होंने बच्चों का यौन-शोषण किया है। उन्होंने उन लोगों से बात की जिनका इन पादरियों ने कभी मॉलेस्टेशन किया था।

टीम की लिस्ट में पहले ऐसे पादरियों की संख्या 9 से 13 थी लेकिन बाद में उनके पैरों से जमीन खिसक गई, जब उन्हें पता चला कि अकेले बॉस्टन में ऐसे लगभग 90 पादरी हैं। टीम ने उन 87 पादरियों की लिस्ट तैयार की जिन पर उन्हें शक था और उन लोगों से बात की, जिनका इन पादरियों ने मॉलेस्टेशन किया था। बाद में उन्होंने पुख्ता सबूतों के साथ एक पादरी जॉन जे के बारे में स्टोरी छापी, जिसका जिक्र ऊपर है। उन्होंने चर्च पर आरोप भी लगाया कि उसे इस बात की जानकारी थी। धीरे-धीरे स्पॉटलाइट टीम को पूरे बॉस्टन से फोन आने लगे और लोगों ने अपनी आप-बीती उन्हें सुनाई।

स्कैंडल पर की गई सीरीज के लिए द बॉस्टन ग्लोब को पुलित्जर प्राइज मिला। इस सीरीज की वजह से पांच पादरियों को जेल हुई।

कॉर्डिनल लॉ को देना पड़ा इस्तीफा

इस स्कैंडल के सामने आने के बाद बॉस्टन के कार्डिनल लॉ को वेटिकन सिटी में पोप को इस्तीफा सौंपना पड़ा और उसने पादरियों के व्यवहार के लिए सबसे माफी मांगी। 

स्पॉटलाइट टीम, जिसने ये बहादुरी दिखाई

चार लोगों की इस स्पॉटलाइट टीम में मैट कैरोल, शाशा पाइफर, माइकल रेजेंडस और स्पॉटलाइट टीम के एडिटर वॉल्टर वी रॉबिंसन शामिल थे। बॉस्टन ग्लोब के नवनियुक्त एडिटर मार्टी बैरन ने उन्हें स्टोरी पर काम करने की पूरी छूट दी।

माइकल रेजेंडस ने ये स्टोरी लिखी थी। रेजेंडस ने लिखा, 1990 के बाद से 130 से ज्यादा लोगों के किस्से सामने आए हैं, जिसमें कहा गया है कि पूर्व पादरी जॉन जे ने उनका रेप किया है। पादरी ने ग्रामर स्कूल के लड़कों को निशाना बनाया। इनमें से एक लड़का सिर्फ चार साल का था। आगे उन्होंने तफसील से पूरा ब्यौरा रखा था। रेजेंडस को बाद में अपनी खोजी पत्रकारिता के लिए पुलित्जर प्राइज मिला।  

फिल्म 'स्पॉटलाइट'

इस कहानी पर 2015 में 'स्पॉटलाइट' फिल्म आई, जिसने बेस्ट पिक्चर और बेस्ट स्क्रीनप्ले का ऑस्कर जीता। इस फिल्म को टॉम मकर्थी ने डायरेक्ट किया था। फिल्म में स्टोरी पर काम करते हुए इन पत्रकारों की मानसिक स्थिति को भी दिखाया गया। साथ ही इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिज्म के तमाम पहलू इस फिल्म से जानने को मिलते हैं। ये फिल्म जरूर देखनी चाहिए।

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