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बर्थडे स्पेशल: 'एक कहानी अल्लाह के बन्दे की'

मेरठ में एक कश्मीरी पंडितों के परिवार में जन्में,13 साल की उम्र मे घर छोड़ देने वाले, बिजनेस में भारी घाटे के बाद मायानगरी मुम्बई का रूख करने वाले कैलाश खेर आज अपना 44वां जन्मदिन मना रहे हैं।
बर्थडे स्पेशल: 'एक कहानी अल्लाह के बन्दे की'

विशाल शुक्ला

कैलाश खेर को सुनने वाले कहते हैं कि इनकी गायकी, आपको किसी और ही दुनिया में ले जाती है। 7 जुलाई को कैलाश दोस्तों, परिवार और संगीत के साथ अपना जन्मदिन मना रहे हैं।

हिंदी फिल्मों मे प्ले बैक सिंगर बनने के सफर के बारे में कैलाश कहते हैं कि शास्त्रीय संगीत सीखने की ललक में उन्होंने दिल्ली को छोड़ा पर बाद में एहसास हुआ कि अकेला रहना इतना आसान नहीं है। दिल्ली में रहकर ही कैलाश ने कई नौकरियां पकड़ी पर संगीत को नहीं पकड़ पाए और इसलिए उन्होंने मुंबई की तरफ रुख किया। शुरुआत में मेरठ छोड़ने के दौरान कैलाश की उम्र काफी कम थी। इसके बाद उन्होंने दिल्ली का रुख किया लेकिन नौकरी में मन न लगने की वजह से मुम्बई चले गए।

जब आया मन मे सुसाइड का ख्याल

इसमें कोई शक नहीं कि कैलाश की आवाज ने उन्हें शोहरत और सफलता दिलाई लेकिन एक समय में बिजनेस में सब कुछ गंवा देने के बाद इस चर्चित गायक ने सुसाइड तक के बारे में सोच लिया था। कैलाश खेर ने एक इंटरव्यू में कहा था कि बिजनेस में भारी नुकसान और सपनों के शहर (मुंबई) जाने के बाद संयोग से गायक बन गए। कैलाश कहते हैं कि गायकी से पहले वे बिजनेस कर रहे थे। वे आगे कहते हैं, “एक वक़्त था जब मेरे साथ सबकुछ खराब हो रहा था और मेरे पास कुछ भी नहीं बचा था। मैं आत्महत्या करना चाहता था।” उन्होंने बताया, “जो कुछ भी मैंने आज हासिल किया है उसमें मुंबई के मेरे एक दोस्त और भगवान ने मदद की। इसी वजह से मेरा गाना ‘अल्लाह के बंदे' बना और इसके बाद मेरी पूरी जिंदगी बदल गयी। जीवन में इतने सारी कश्मकश के बाद मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं फिर से इतनी बेहतर जिंदगी जी सकूंगा।”

संघर्ष के दौर में दी म्यूज़िक की ट्यूशन

कैलाश को संगीत का जूनून बचपन से ही था। उनके पिता कश्मीरी पंडित थे और लोक गीतों में भी रुचि रखते थे। महज 13 साल की उम्र में कैलाश ने घर छोड़ दिया था। बिजनेस डूब जाने के बाद कैलाश ने बच्चों को म्यूजिक ट्यूशन देना शुरू कर दिया था। 2001 में दिल्ली यूनिवर्सिटी से पढ़ाई करने के बाद कैलाश खेर मुंबई आ गए। खाली जेब और घिसी हुई चप्पल लिए संघर्षरत कैलाश में संगीत के लिए कमाल का जुनून था। इसी बीच उनकी मुलाकात संगीतकार राम संपत से हुई। उन्होंने कैलाश को कुछ रेडियो जिंगल गाने का मौका दिया और वो कहते हैं न कि प्रतिभा के पैर होते हैं, वो अपनी मंजिल तलाश ही लेती है।

आज कैलाश बॉलीवुड में सूफी गायिकी के प्रतिनिधि के तौर पर पहचान रखते हैं और उनके खाते में 'अल्लाह के बंदे',  ‘तेरी दीवानी’ और बाहुबली-2 का ‘जय-जयकारा’ जैसे कालजयी गीत दर्ज हैं।

 

 

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