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बैंकों में सरकारी हिस्सा घटाने और एनपीए पर जेटली करेंगे चर्चा

वित्त मंत्री अरुण जेटली जल्द ही सरकारी बैंकों के साथ बैठक कर उनमें हिस्सेदारी की बिक्री और बढ़ते एनपीए (बट्टे खाते में पड़ा धन) की समस्या पर चर्चा करेंगे। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का एनपीए बढ़कर 2.5 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। उन्होंने पीटीआई-भाषा से एक साक्षात्कार में कहा, बैंक मुझसे मिलने आ रहे हैं। कुछ बैंक तात्कालिक मुद्दों के संबंध में मुझसे मुलाकात करने आ रहे हैं।
बैंकों में सरकारी हिस्सा घटाने और एनपीए पर जेटली करेंगे चर्चा

वह इस प्रश्न का जवाब दे रहे थे कि बैंकिंग क्षेत्र में बढ़ते एनपीए से सरकार किस प्रकार निपटने की योजना बना रही है। उन्होंने कहा एनपीए चिंता वाला क्षेत्र है। एनपीए का दबाव कम करने के बारे में उन्होंने कहा कि इसके लिए निजी क्षेत्र का निवेश और निजी क्षेत्र के प्रदर्शन में सुधार लाना होगा । आरबीआई के आंकड़ों के मुताबिक सरकारी बैंकों का कुल एनपीए दिसंबर 2014 में बढ़कर 2,60,531 करोड़ रुपये तक पहुंच गया। कर्ज लेकर समय पर नहीं लौटाने वाले 30 डिफाल्टरों पर 95,122 करोड़ रुपये बकाया है जो सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के कुल एनपीए के एक तिहाई से अधिक (36.50 प्रतिशत) है। उन्होंने कहा कि सरकार ने पहले ही सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में सरकारी हिस्सेदारी घटाकर 52 प्रतिशत तक लाने की मंजूरी दी है ताकि वे बाजार से पूंजी जुटा सकें। उम्मीद की जा रही है कि भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) और कुछ अन्य सरकारी बैंक बाजार से 16,000 करोड़ रुपये से अधिक पूंजी जुटाएंगे ताकि वे अपनी पूंजी जरूरतें पूरी कर सकें।

सरकार ने एसबीआई को बाजार से 15,000 करोड़ रुपये, ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स को 1,000 करोड़ रुपये जुटाने की मंजूरी दी है। केनरा बैंक अपने चार करोड़ शेयर बेचकर धन जुटाना चाहता है। बैंक मौजूदा बाजार मूल्य पर करीब 1,500 करोड़ रुपये जुटा सकेगा। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में सरकारी हिस्सेदारी को कम करके 52 प्रतिशत तक लाने से कुल 1.60 लाख करोड़ रुपये तक जुटाए जा सकेंगे। सरकारी क्षेत्र के कुल 27 बैंकों में से बहुलांश हिस्सेदारी के जरिये भारत सरकार का 22 बैंकों पर नियंत्रण है। शेष पांच बैंकों में सार्वजनिक क्षेत्र के भारतीय स्टेट बैंक की बहुलांश हिस्सेदारी है यानी एक तरह से देखा जाए तो इनमें भी बहुलांश हिस्सेदारी एसबीआई के जरिये भारत सरकार की ही है।

देश के 17 सरकारी बैंकों के वर्ष 2014-15 के कारोबारी परिणाम बताते हैं कि बट्टे खाते में पड़े पैसों का आंकड़ा खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है। इनमें से छह बैंक ऐसे हैं जिनके कुल लेन-देन का छह फीसदी से अधिक धन बट्टे खाते में पड़ा हुआ है। इनमें भी सबसे अधिक 9.48 फीसदी के एनपीए के साथ यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया शीर्ष पर है। वैसे इस बैंक ने अपना प्रदर्शन सुधारा है क्योंकि पिछले साल इसका एनपीए 10.47 फीसदी था। करोड़ रुपयों में देखें तो सबसे खराब ‌स्थिति पंजाब नेशनल बैंक की है जिसका 25,695 करोड़ रुपया बट्टे खाते में पड़ा है। यह आंकड़ा बैंक के कुल लेन-देन का 6.55 फीसदी है।

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