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सुधार नीतियों से तय होगी भारत की साख-मूडीज

सरकार द्वारा वृद्धि को प्रोत्साहित करने और राजकोषीय एवं आपूर्ति पक्ष की मुश्किलें दूर करने से जुड़ी पहलों से भारत की साख का निर्धारण तय होगा। यह बात बुधवार को रेटिंग एजेंसी मूडीज ने कही।
सुधार नीतियों से तय होगी भारत की साख-मूडीज

साख निर्धारण एजेंसी ने कहा कि मुद्रास्फीति में गिरावट भी नीतिगत दरों में कटौती की गुंजाइश पैदा कर रहा है ताकि निवेश प्रोत्साहित किया जा सके।

मूडीज ने एक रपट में कहा राजकोषीय और ढांचागत सुधार संबंधी नीतियां यह तय करेंगी कि तेज वृद्धि किस हद तक सावरेन साख निर्धारण को मजबूत करेगी।

रपट के मुताबिक 2015 में वैश्विक स्तर पर तेल की कीमतों में नरमी भारत की मुद्रास्फीति और चालू खाते के दबाव को नियंत्राण में रख सकती है। इससे और समायोजन मौद्रिक नीति की गुंजाइश बनेगी जिससे निवेश बढ़ेगा। मूडीज ने कहा कि आधार वर्ष में संशोधन के आधार पर सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर के अनुमान में बढ़ोतरी अर्थव्यवस्था की मजबूती को रेखांकित करता है लेकिन मूडीज के साख निर्धारण के आकलन पर इसका असर नहीं होता।

नए आधारवर्ष, 2011-12 के मुताबिक भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर 2013-14 में 6.9 प्रतिशत रही जो 2004-05 के आधार वर्ष के मुताबिक पांच प्रतिशत से कम थी। नए आधार वर्ष के मुताबिक 31 मार्च को समाप्त हो रहे वित्त वर्ष के दौरान अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर 7.4 प्रतिशत रहने का अनुमान है।

मूडीज ने कहा कि हाल में जारी आंकड़े के लिहाज से भारत की उच्च आर्थिक वृद्धि स्थिर दृष्टिकोण के साथ बीएएए3 की सावरेन साख निर्धारण का समर्थन करती है क्योंकि एजेंसी ने सरकार की वित्तीय स्थिति, निजी वाय ऋण और बैंक परिसंपत्ति की गुणवत्ता के अनुपात में बदलाव नहीं किया है और ये सब साख निर्धारण के लिए जोखिम पैदा करते हैं।

एजेंसी ने कहा राजकोषीय और आपूर्ति पक्ष की दिक्कतें दूर करने से जुड़ी नीतियां यह तय करेंगी कि आने वाले दिनों में भारत की वृद्धि की मौजूदा गति और वृहत्-आर्थिक संतुलन बरकरार रखा जा सकता है या नहीं। मूडीज ने आगाह किया कि भारत का विशाल राजकोषीय घाटा, खराब बुनियादी ढांचा और नियामकीय जटिलताओं ने घरेलू मांग और आपूर्ति के बीच असंतुलन पैदा किया है जो मुद्रास्फीति और चालू खाते के दबाव में योगदान कर रहा है।

साख निर्धारण एजेंसी ने कहा कि अगले तीन से पांच साल में राजकोषीय घाटे और ढांचागत आपूर्ति की दिक्कतें दूर करने से जुड़ी सरकारी पहलों के अभाव और घरेलू मांग या वैश्विक जिंस मूल्य में तेजी से मुद्रास्फीति बढ़ सकती है और चालू खाते पर दबाव बढ़ सकता है।

रपट में कहा गया वृहत्-आर्थिक असंतुलन में एेसी बढ़ोतरी से भुगतान संतुलन का दबाव पैदा हो सकता है विशेष तौर पर तब जबकि अंतरराष्टीय नकदी की स्थिति मौजूदा स्तर के मुकाबले तंग हो जाए।

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