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सुप्रीम कोर्ट का आरबीआइ से सवाल, क्या आम लोगों के स्वास्थ्य से ज्यादा अहम है बैंकों की वित्तीय स्थिति

लॉकडाउन के कारण आम लोगों को हुई आर्थिक मुश्किल से राहत देने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक ने बैंकों और...
सुप्रीम कोर्ट का आरबीआइ से सवाल, क्या आम लोगों के स्वास्थ्य से ज्यादा अहम है बैंकों की वित्तीय स्थिति

लॉकडाउन के कारण आम लोगों को हुई आर्थिक मुश्किल से राहत देने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक ने बैंकों और वित्तीय संस्थानों के कर्ज की वापसी यानी ईएमआइ पर तो मोरेटोरियम की अनुमति दी है, लेकिन ग्राहकों को ब्याज पर कोई राहत नहीं दी है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आरबीआइ के रवैये पर सख्त रुख अपनाते हुए पूछा है कि क्या बैंकों की वित्तीय स्थिति आम लोगों के स्वास्थ्य से ज्यादा महत्वपूर्ण है?

जन स्वास्थ्य आर्थिक पहल से ज्यादा महत्वपूर्ण

दरअसल, आरबीआइ ने लॉकडाउन से आर्थिक मुश्किल में आए लोगों को आधी-अधूरी राहत दी है। आरबीआइ ने लोगों को मोरेटोरियम की अवधि में देय ब्याज और इस ब्याज पर लागू होने वाले ब्याज पर कोई राहत नहीं दी है। आरबीआइ का कहना है कि अगर ब्याज माफ किया गया तो बैंकों को दो लाख करोड़ रुपये का नुकसान होगा। गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने आरबीआइ के उस नजरिये पर नाराजगी जताई, जिसके अनुसार वह बैंकों के वित्तीय स्वास्थ्य का ज्यादा ख्याल कर रहा है। आरबीआइ ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे में कहा कि अगर ब्याज माफ किया गया तो बैंकों को दो लाख करोड़ रुपये का नुकसान होगा। सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश अशोक भूषण, संजय किशन कौल और एम. आर. शाह की बेंच ने कहा कि आर्थिक पहलू आम लोगों के स्वास्थ्य से ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं है। आरबीआइ जानकारियां मीडिया में लीक करके मामले को सनसनीखेज बनाने का प्रयास कर रहा है।

कोर्ट ने सरकार से भी सवाल किए

जब सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया कि वित्त मंत्रालय ने ब्याज माफी के मसले पर आकलन किया है या नहीं तो सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि उन्हें संबंधित अधिकारियों से इस मामले में बात करनी होगी। मेहता वित्त मंत्रालय और रिजर्व बैंक से बात करके व्यावहारिक उपायों और उनकी शर्तों के बारे में अदालत को अगली सुनवाई के समय बताएंगे। कोर्ट ने इस मामले में सुनवाई के लिए अगली तारीख 12 जून निर्धारित की है।

मार्च की किस्त कटने के बाद मोरेटोरियम

मौजूदा संकट के दौर में आरबीआइ और बैंकों का रुख शुरू से ही आधा-अधूरा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लॉकडाउन की घोषणा की, उसके बाद आरबीआइ ने मार्च, अप्रैल और मई में देय किस्तों और कर्ज वापसी पर रोक लगाने की घोषणा मार्च के अंत में की। इस तथ्य को नजरंदाज कर दिया गया कि तब तक अधिकांश कर्जदार मार्च की किस्त अदा कर चुके थे। आरबीआइ ने सभी बैंकों को इसके संबंध में एक समान आदेश देने के बजाय बैंकों को मोरेटोरियम लागू करने की को अनुमति दी। इस वजह से बैंकों ने यह राहत देने में भी अलग-अलग रुख और नियम अपनाए। बड़ी संख्या में बैंकों ने सभी ग्राहकों को राहत देने के बजाय इसकी मांग करने वालों को ही राहत दी। जिन लोगों ने बैंकों को आवेदन नहीं किया, उनके खाते से किस्त काट ली गई।

मोरेटोरियम विस्तार पर बैंकों का ढीला रुख

कोविड-19 संकट और लॉकडाउन संकट लंबा खिंचने पर मई में आरबीआइ ने मोरेटोरियम तीन महीने बढ़ाकर अगस्त तक कर दिया। लेकिन अभी तक बैंकों ने अपने ग्राहकों को इसकी सूचना नहीं दी है। जब आइडीबीआइ बैंक को ट्वीट करके जानकारी मांगी गई तो उसने बताया कि अभी वह इस पर काम कर रहा है। जल्दी ही ग्राहकों को सूचना दी जाएगी। ग्राहकों की चिंता है कि अगर उनके बैंक ने मोरेटोरियम आगे नहीं बढ़ाया तो किस्त अदा न करने पर उन्हें डिफॉल्टर मान लिया जाएगा। इन विसंगतियों को भी आरबीआइ ने नजरंदाज कर दिया है।

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