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दिव्या विजय को शशिभूषण स्मृति पुरस्कार, राजनीति धर्म बाजार और मीडिया ने सबका जीवन तबाह कर दिया है

हिंदी के प्रसिद्ध कवि एवं आलोचक अशोक वाजपेई ने समाज में फैल रहे झूठ  पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए कहा...
दिव्या विजय को शशिभूषण स्मृति पुरस्कार, राजनीति धर्म बाजार और मीडिया ने सबका जीवन तबाह कर दिया है

हिंदी के प्रसिद्ध कवि एवं आलोचक अशोक वाजपेई ने समाज में फैल रहे झूठ  पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि राजनीति , धर्म , बाजार और मीडिया ने लोगों का जीवन तबाह कर दिया है।

श्री वाजपेई ने कल शाम यहां इंडिया एंट्रेंस सेंटर में युवा कथाकार दिव्या विजय को प्रथम शशि भूषण स्मृति पुरस्कार प्रदान करते हुए यह बात कही। उन्हें पुरस्कार में 51 हज़ार की राशि  प्रशस्ति पत्र और एक प्रतीक चिन्ह भेंट किया गया। इस पुरस्कार की निर्णायक प्रसिद्ध कथाकार मनीषा कुलश्रेष्ठ और प्रियदर्शन थे।पुरस्कार की स्थापना जानकी पल ट्रस्ट ने की है। दिव्या विजय की पहली कहानी जानकी पुल वेबसाइट पर छपी थी। उन्हें यह पुरस्कार उनके कहांनी संग्रह "सगबग मन "के लिए दिया गया ।शशिभूषण नवलेखन पीढ़ी के प्रतिभाशाली  कथाकार थे जिनका निधन कोरोना काल मे हो गया था।

श्री वाजपेयी ने कहा कि आज झूठ का बोलबाला है और वह शिखर से बोला जा रहा है। झूठ की महिमा का बखान किया जा रहा है।जिनका खाना बिना झूठ बोले पचता नहीं वे भी दिन में दस बार झूठ बोल रहे हैं।

उन्होंने साहित्य को सत्य का प्रहरी बताते हुए कहा कि  साहित्य अंधेरे  की शिनाख्त करता और उजाले की  खोज में निकलता है।आज दुर्भाग्य से भारतीय राजनीति और समाज में अंधेरा बढ़ा है और सांप्रदायिकता धार्मिकता, अज्ञान और झूठ की महिमा बढ़ी है लेकिन हिंदी साहित्य ने हिंदी समाज में प्रतिरोध रचा और उसने सपना देखना अभी छोड़ा नहीं हैं।

उन्होंने पुरस्कारों की विश्वसनीयता पर सवाल उठाते हुए कहा कि पुरस्कार वहीं विश्वसनीय बचे हैं जो सरकार और संस्थान द्वारा नहीं दिए जाते बल्कि लेखकों और उनके परिवार द्वारा दिये जाते हैं।उन्होंने कहा कि यह पुरस्कार इसलिए महत्वपूर्ण है कि यह शशिभूषण के मित्रों द्वारा दिया जा रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि अधिकतर बड़े लेखकों को कोई पुरस्कार नहीं मिला जैसे मुक्तिबोध को अपने जीवन में कोई पुरस्कार नहीं मिला

श्री वाजपेयी ने कहा कि उन्हें खुद 53 वर्ष की अवस्था में पहला पुरस्कार मिला लेकिन उन्होंने  कालिदास सम्मान से लेकर भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार जैसे कई पुरस्कार शुरू किए। उन्होंने साहित्य समाज पर चुटकी लेते हुए कहा कि लेखक को पुरस्कार इसलिए लेना चाहिए कि वह उसे लौटा सके। अगर वह कोई पुरस्कार नहीं लेगा तो लौटाएगा क्या। उन्होंने कहा कि पुरस्कार लेखक की प्रतिभा और उपलब्धि पर मिलती है लेकिन हिंदी में पुरस्कार मिंलने पर दुश्मनों की संख्या बढ़ जाती है और लोग कहते हैं कि यह जरूर किसी तिकड़म से मिला होगा।

श्री वाजपेयी ने यह भी कहा कि युवा लेखकों को" युवा" होने की छूट नहीं दी जानी चाहिए  क्योंकि देखा यह गया है कि अधिकतर बड़े लेखकों ने अपने पहले सग्रह में ही श्रेष्ठ लेखन का परिचय दिया है, इसलिए किसी युवा लेखक को उसके नए होने की रियायत नहीं दी जानी चाहिए।साहित्य की कसौटियों पर उसकी रचना को कसा जाना चाहिए,युवा होने के कारण कच्चापन स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने दिव्या विजय और शशिभूषण की दो कहानियों का विश्लेषण करते हुए उनकी रचनाशीलता कोभी  रेखांकित किया।

इससे पहले दिव्या विजय ने सात वर्ष पूर्व जानकीपुल से शुरू हुई अपनी रचना यात्रा का जिक्र करते हुए कहा कि वह हिंदी साहित्य संसार से अपरिचित थीं लेकिन आज जानकी पुल की ओर से शशिभूषण जैसे लेखक की स्मृति में यह पुरस्कार पाकर प्रभात रंजन जी का शुक्रगुजार हूं जिन्होंने मुझे हमेशा प्रोत्साहित किया। उन्होंने शशिभूषण को उधृत करते हुए कहा कि कहांनी में विषय महत्वपूर्ण नहीं होते बल्कि दृष्टि महत्वपूर्ण होती है और कहानी कभो खत्म नहीं होती है।

समारोह को मनीषा कुलश्रेष्ठ और प्रियदर्शन ने भी संबोधित किया। जानकीपुल के संस्थापक एवम कथाकार प्रभात रंजन ने मंच का संचालन किया और पुरस्कार की योजना तथा महत्व के बारे में बताया। समारोह की अध्यक्षता ममता कालिया ने की। वाणी प्रकाशन की अदिति माहेश्वरी ने घोषणा की कि दिव्या विजय का नया संग्रह वह प्रकाशित करेंगी।

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