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लेखन "वनडे क्रिकेट मैच" नहीं होता, एक लंबी पारी का खेल हैः ममता कालिया

नई दिल्ली। हिंदी की प्रख्यात लेखिका ममता कालिया ने कहा है कि लेखन "वनडे क्रिकेट मैच" नहीं होता बल्कि...
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नई दिल्ली। हिंदी की प्रख्यात लेखिका ममता कालिया ने कहा है कि लेखन "वनडे क्रिकेट मैच" नहीं होता बल्कि उसमें लेखकों को लंबी पारी खेलनी होती है और वर्षों तक साधना करनी पड़ती है।

ममता कालिया ने शनिवार शाम गांधी शांति प्रतिष्ठान में "परिंदे" पत्रिका के स्त्री कथा अंक के  विमोचन समारोह में यह बात कही। स्त्री दर्पण फेसबुक मंच और परिन्दे द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित इस समारोह को प्रसिद्ध लेखक और समयांतर के संपादक पंकज बिष्ट कवयित्री सविता सिंह और आलोचक रश्मि रावततथा परिन्दे के सम्पादक शिवदान सिंह भदौरिया ने सम्बोधित किया। इस अंक में 21वीं सदी की 23 महिला कथाकारों की कहानियां और लेख  इंटरव्यू भी हैं।

व्यास सम्मान से सम्मानित लेखिका कालिया ने कहा कि लेखन एक लंबी पारी का खेल है यह वनडे क्रिकेट मैच नहीं है और इसमें लेखक को कई सालों तक लिखना पड़ता है। इंसमे हड़बड़ी और गड़बड़ी नहीं चलती।

82 वर्षीय श्रीमती कालिया ने कहा कि यह कार्यक्रम  प्रेमचंद शिवपूजन सहाय और महादेवी वर्मा की स्मृति में आयोजित किया जा रहा है जिन्होंने  वर्षों तक साहित्य की  सेवा की है और आज भी सभागार में बैठे पंकज बिष्ट और विष्णु नागर जैसे लेखक पिछले 50 साल से लिख रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि हर लेखक के पास एक फ्लैश प्वाइंट होता है लेकिन केवल एक फ़्लैश  से कहानी लिखी नहीं जाती है। वैसे कहांनी लिखने का कोई नियम नहीं होता और न ही उसे किसी  विद्यालय या विश्विद्यालय में सीखा जा सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि लेखक पहले अपने अनुभव से लिखता है। वह अपने पांव में गड़े कांटे के बारे में लिखता है लेकिन बाद में उसे दूसरों के पांव में चुभे कांटे के बारे में भी लिखना चाहिए।

उन्होंने युवा कथाकारों  को सलाह दी कि वे कच्ची पक्की कहानियां पत्रिकाओं को ना भेजें बल्कि खुद उसे सुधारें और रातों का तेल जलाकर उस पर  काम करें। आप पहले खुद संतुष्ट हो लें तब रचना संपादक को भेजें। बाद में इस बात का रोना ना रोए कि संपादक ने उनकी कहानियां लौटा दीं।

उन्होंने कहा कि इस पत्रिका में प्रकाशित कहानियों में केवल स्त्री विमर्श या स्त्रीवाद नहीं है बल्कि उसमें  चुलबुलापन, कटाक्ष, छेड़छाड़ और जुमले भी हैं। उन्होंने कहा कि इस अंक में कुछ परिचित तो कुछ नई स्त्री कथाकार भी हैं और वे  सम्भावनाओं से भरी हुई हैं।

वरिष्ठ कथाकार पंकज बिष्ट ने कहा कि पूरी दुनिया में संसाधनों पर पुरुषों का कब्जा है इसलिए स्त्रियों की मुक्ति नहीं हो पा रही है। जब तक निर्णय लेने की प्रक्रिया में स्त्रियां शामिल नहीं की जाती तब तक उनको उनका अधिकार नहीं मिल सकता। उन्होंने कहा कि अमरीका जैसे देश में जो स्त्रियों की आज़ादी का समर्थक माना जाता हैं, वहां भी न्यायालय धर्म की आड़ में गर्भपात का अधिकार स्त्रियों को देना नहीं चाहता।

इग्नू में प्रोफेसर सविता सिंह ने कहा कि हम स्त्रियां कोई कट्टर फेमिनिस्ट नहीं बल्कि सोशलिस्ट फेमिनिस्ट हैं और बस बराबरी का अधिकार मांग रही हैं। हमारा विरोध पुरुषों से नहीं बल्कि पितृसत्तात्मक व्यवस्था से है। आलोचक रश्मि रावत ने कहा कि अभी तक पुरुष स्त्रियों को समझ नहीं पाया है और वह घर से लेकर बाहर सब जगह अपना वर्चस्व कायम करना चाहता है। साहित्य में भी पुरुषों का ही अब तक वर्चस्व बना रहा है।

कार्यक्रम में इब्बार रब्बी, विष्णु नागर, अवधेश श्रीवास्तव, विनोद कुमार सिन्हा, नीला प्रसाद, मृदुला शुक्ल, लीना मल्होत्रा, अंजू शर्मा, योगिता यादव, पूनम सिंह, कल्पना मनोरमा भी मौजूद थीं। समारोह का संचालन अणुशक्ति सिंह ने किया और उनकी भी एक कहांनी इस अंक में शामिल हैं। इस अंक में नीला प्रसाद सपना सिंह अंजू शर्मा प्रियंका ओम दिव्या विजय   ज्योति चावला  प्रज्ञा रोहिणी  ममता सिंह शर्मिला बोहरा जालान समेत 23 महिला कथाकारों की कहानियां हैं।

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