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ईरान में आतंकवाद पर पाकिस्तान को घेरेंगे मोदी

ईरान जाकर आतंकवाद और कूटनीति के मोर्चे पर पाकिस्तान को अलग-थलग करने की योजना है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की। ईरान के रास्ते अफगानिस्तान तक सीधे पैठ की योजना है। इस यात्रा में कूटनीतिक रूप से पाकिस्तान और चीन को जवाब भी देने की तैयारी है। दूसरा महत्व ईरान के शिया मुस्लिम बहुल आबादी वाले देश होने के चलते है। दुनिया में ईरान के बाद सबसे ज्यादा शिया आबादी भारत में रहती है। माना जा रहा है कि मोदी के ईरान दौरे से देश में खासकर उत्तर प्रदेश में राजनीतिक पकड़ की दृष्टि से शिया आबादी को सकारात्मक संदेश भी दिए जाने की तैयारी है।
ईरान में आतंकवाद पर पाकिस्तान को घेरेंगे मोदी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 22 और 23 मई को ईरान यात्रा से को कूटनीति के लिहाज से ही नहीं आर्थिक और रणनीतिक लिहाज से भी अहम माना जा रहा है। ईरान के दौरे के पहले मोदी यूएई और सउदी अरब के दौरे पर गए थे। चार-पांच जून को वे कतार जाने वाले हैं। इन दौरों के लिहाज से ईरान में भारत के एजेंडे पर दुनिया भर की निगाह है। 23 मई को ईरान की राजधानी तेहरान में अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी भी होंगे। उस दिन दोनों राष्ट्राध्यक्ष एक साथ ईरान के राष्ट्रपति हसन रुहानी के साथ मौजूद होंगे और तीनों की मौजूदगी में मंत्री स्तर की संधि पर दस्तखत किए जाएंगे- ईरान का चाबहार बंदरगाह बनाने का। भारत इस बंदरगाह का निर्माण करेगा। इस बंदरगाह के बाबत अंतिम फैसला मार्च में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के ईरान दौरे के दौरान हुआ था।

तीनों राष्ट्राध्यक्षों के बीच आतंकवाद अहम मसला होगा। पिछले दिनों ईरान के राष्ट्रपति के पाकिस्तान दौरे के दौरान पाकिस्तानी सेना और सुरक्षा एजेंसियों ने बलुचिस्तान से एक व्यक्ति को गिरफ्तार कर उसे भारतीय जासूस बताया। कथित तौर पर भारतीय नौसेना के अधिकारी कुलभूषण यादव नाम के इस व्यक्ति के बारे में पाकिस्तानी अफसरों का दावा था वह चाबहार में बिजनेस कर रहा था और वहां से अपनी गतिविधियां चला रहा था।

आतंकवाद और पाकिस्तान द्वारा चलाए जा रहे ऐसे अभियानों को लेकर भारत की कोशिश है कि दुनिया के इस्लामी देश पाकिस्तान का साथ न दें। इस लिहाज से चाबहार बंदरगाह समेत कई अन्य वाणिज्यिक समझौतों को अहम माना जा रहा है। चाबहार बंदरगाह से सड़क मार्ग के जरिए आसानी से अफगानिस्तान पहुंचा जा सकता है। इस लिहाज से भारत चाबहार बंदरगाह को अफगानिस्तान के गेटवे के रूप में देख रहा है। इस कवायद से अफगानिस्तान में भारत की पैठ और मजबूत होगी। अफगानिस्तान में आंतरिक सुरक्षा की स्थिति काफी खराब है। भारत इस युद्धग्रस्त राष्ट्र में अपना कदम जमाने के लिए कई रास्ते खोजने में जुटा है, ताकि वहां पाकिस्तानी प्रभाव को कम किया जा सके। पाकिस्तान की जमीन के जरिए भारत अफगानिस्तान नहीं जा सकता, ऐसे में इंडिया ईरान के रास्ते अफगानिस्तान पहुंचने के लिए चीजों को सुगम बनाने में लगा है। दक्षिणपूर्वी ईरान में इंडिया चाबहार पोर्ट विकिसत करने के लिए 150 मिलियन डॉलर का निवेश कर रहा है। इस बंदरगाह के जरिए इंडिया को अफगानिस्तान के लिए ट्रांजिट रूट मिल जाएगा। भविष्य में इंडिया सेंट्रल एशिया से गैस लाने के योजना पर भी काम कर रहा है। यह ईरान और अफगानिस्तान के जरिए ही संभव हो पाएगा।

विदेश मंत्रालय में ईरान, पाकिस्तान और अफगानिस्तान डेस्क के संयुक्त सचिव गोपाल बागले के अनुसार, प्रधानमंत्री के ईरान दौरे में ढांचागत निर्माण, ऊर्जा, द्विपक्षीय सहयोग, राजनीतिक स्थिरता और सांस्कृतिक संबंधों को लेकर चर्चा होगी। चाबहार बंदरगाह के प्रथम चरण का काम भारत के इंडियन पोर्ट्स ग्लोबल प्राइवेट लिमिटेड और ईरान के आर्य बानादेर मिलकर करेंगे। अफगानिस्तान की भूमिका यह है कि ईरान के चाबहार- जाहेदेन और दक्षिण-पश्चिमी अफगानिस्तान के जरंज के बीच सड़क बननी है। यह सड़क भारत की उत्तर-दक्षिण यातायात कॉरिडोर प्रस्ताव का हिस्सा है, जो अफगानिस्तान और मध्य एशिया से भारत का संपर्क सुगम करेगी।

मोदी के इस दौरे में ओएनजीसी विदेश का ईरान के फरजाद बी गैस फील्ड में उत्खनन शुरू करने का भी समझौता होगा। ओएनजीस विदेश, ऑयल इंडिया और इंडियन ऑयल मिलकर इस गैस फील्ड में एक सौ मीलियम डॉलर का निवेश कर चुके हैं। यहां भारतीय कंपनियां उत्खनन शुरू नहीं कर पाई थीं, क्योंकि अमेरिका और यूरोपीय यूनियन ने हाइड्रोकॉर्बन सेक्टर में ईरान में रोक लगा रखी है।

भारतीय सरकारों की अमेरिका से करीबी के कारण ईरान के संबंधों को लेकर भारत अब तक खुलकर सामने नहीं आया। हालांकि, ईरान के साथ अटल बिहारी वाजपेयी या मनमोहन सिंह के जमाने से संबंध अच्छे रहे। 

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