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आप की जीत में पढ़िए ‘रणछोड़’ और ग्रीस

भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ परिवार के लोग अपने कथित सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की दुहाई देते नहीं थकते। लेकिन पहले 2014 में लोकसभा और इस बार दिल्ली विधानसभा के चुनाव अभियानों के दौरान भगोड़ा कहकर आम आदमी पार्टी की बैंड बजाते वक्त भारतीय सांस्कृतिक स्मृति में गुंजित एक अहम प्रतीक का महत्व समझने में चूक गए। यह प्रतीक ‘रणछोड़’ है।
आप की जीत में पढ़िए ‘रणछोड़’ और ग्रीस

श्रीकृष्‍ण को रणछोड़ के नाम से जानते हैं। इसलिए कि उन्होंने बलशाली मगध सम्राट जरासंध के आक्रमण से मथुरा वासियों को बचाने के लिए विनाशकारी युद्ध लड़ने की बजाय सबके साथ द्वारिका जाकर बसना बेहतर समझा। और मौका मिलते ही निर्वासित पांडवों के सहयोग से अत्याचारी जरासंध से मगध और अन्य जनपदों को मुक्त किया।

श्रीकृष्ण की एक और ‘रणछोड़’ भूमिका भी भारतीय मिथक-चेतना में जीवित है। इसी तरह कालयवन से भी श्रीकृष्ण जमकर लो‌हा नहीं लिया था। बल्कि उसे बहलाकर उस गुफा में ले गए थे जहां मांधाता युगनिद्रा में लीन थे। श्रीकृष्ण ने अपना पीतांबर मांधाता को ओढ़ा दिया। अहंकार के मद में चूर कालयवन ने मांधाता को गुफा में ‌छुपा श्रीकृष्ण समझकर पांव से ठोकर मारी। युगों की तंद्रा भंग होने से कुपित मांधाता के शाप से कालयवन तत्काल भस्म हो गया। तो जिस आम आदमी पार्टी को भाजपा और संघ परिवार के प्रचार शास्त्रियों ने भगोड़ा कहकर दूसा उसे दिल्ली की जनता ने रणछोड़ मानकर सिर माथे ‌बिठा लिया। प्रचंड बहुमत के मद में चूर तथा सत्ता, संगठन और धनबल से मंडित भाजपा को कल की जन्मी एक मामूली सी पार्टी ने अपनी शर्तों पर लोहा लेकर धूल चटा दी, जिसका भाजपा के प्रवक्ता और नेता चुनाव प्रचार के दौरान नाम लेने से भी कतराते थे लेकिन जिसे शब्दों की छुरियों से छेदने में कोई कोताही नहीं करते ‌थे।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा के नेता प्रवक्ता बड़े-बड़े वायदों के शानदार पुल बांधने में माहिर पाए गए थे। शब्द, वाणी और प्रचार के आडंबर में उनसे मुकाबला करने की बजाय पिछले  9 महीनों के दौरान उनकी वास्तविक उपलब्धियों के अकाल में पैदा दिल्ली की जनता की अपूर्ण अपेक्षाओं के बीहड़ में ‘आप’ ने उन्हें ललकारा। भाजपा की बड़ी-बड़ी बातों पर जनता की भ्रष्टाचार, महंगाई, महिलाओं की सुरक्षा और स्थायी आवास जैसी स्थानीय समस्याएं  भारी पड़ीं।

प्रतीकों की बात चली है तो हम सूट और मफलर को क्यों भूलें? नरेन्द्र मोदी का 10 लाख रुपये का सूट जनता को बेगाना लगा लेकिन अरविंद केजरीवाल के मामूली मफलर में उसने निकटता की गरमाहट पाई। दस लाख की पोशाक में पो‌शीदा विश्वदृष्टि आमजन को मुट्ठी भर अमीरों के लिए समर्पित लगी। इसमें उसने भूमि अधिग्रहण अध्यादेश की असुरक्षा और आम अवाम के लिए कल्याणकारी योजनाओं- जैसे राजसहायता प्राप्त खाद्य सुरक्षा, स्वास्थ्य, शिक्षा आदि से संबंधित कार्यक्रमों में छीजन की बू आई।

आर्थिक वृद्धि का नाम जपने वाली और आमजन की राजसहायता काटकर विकास को प्रोत्साहन के नाम पर कॉर्पोरेट की अनापशनाप सहूलियतों के लिए भी सरकारी तिजोरी खोलने की वकालत करने वाली यह विश्वदृष्टि हाल के वर्षों में दुनिया के कई हिस्सों में कल्याणकारी राज्य की  संस्थाओं और अवधारणाओं को सिमटाने में लगी रही है। इसकी वजह से दुनिया में रोजगार विहीन आर्थिक वृद्धि का एक दौर आया जिसमें अमीरों के पास अकूत संपत्ति बढ़ी लेकिन आमजन की मुश्किलें भी उसी अनुपात में बढ़ती गईं। ऐसी नीतियों के अंतर्विरोधों की वजह से 2008 में अमेरिका और यूरोप से निकली मंदी सारी दुनिया में पसर गई। लेकिन मंदी से निकलने की वैकल्पिक नीतियां अपनाने की बजाय फिर उन्हीं विफल नीतियों का नुस्खा अपनाने की पेशकश की गई।

यूरोपीय यूनियन में पश्चिम यूरोप के विकसित अर्थव्यवस्था वाले देश अपने आर्थिक हितों की रक्षा के लिए दक्षिण और पूर्वी यूरोप के अपेक्षाकृत कम विकसित देशों पर कर्ज वसूली के बहाने अपने आमजन का पेट काटने वाली राजसहायता कटौती लागू करने का दबाव बनाने लगे। लेकिन उनके ऑलीगार्कों (पूंजी और अपराध की संधि पर आसीन धन्ना सेठों ) की विलासिता से न तो अपेक्षाकृत पिछड़े यूरोपीय सरकारों और न ही पश्चिम यूरोप के विकसित देशों के नीति निर्माताओं को कोई परहेज रहा। इसलिए कि ये ऑलीगार्क, मांग और आपूर्ति के चक्र के जरिये विकसित पश्चिमी यूरोपीय पूंजी से नाभिनालबद्ध हैं।

विकसित पश्चिमी यूरोपीय अर्थव्यवस्‍्था का मुखिया जर्मनी है। जर्मन चांसलर एंजेला मार्केल ने ग्रीस को उसके कर्जों की किस्त आसान करने के लिए पेंशन में कटौती और आमजन के लिए अन्य कल्याणकारी राजसहायता खत्म करने के लिए दबाव बनाया। इससे ग्रीस के आम लोगों की कमर मानो टूटने लगी हालांकि उसके ऑलीगार्कों के शानदार रहनसहन में कोई कमी नहीं आई। मुश्किलें झेलती ग्रीक जनता को ऑलीगार्कों का भ्रष्टाचार और विलास चुभता रहा। वहां वामपंथी दल सीरिजा की विजय का यही राज है। पहली बार एक रेडिकल वामपंथी पार्टी वहां सत्ता में आई है जिसके प्रधानमंत्री एलेक्सिस त्सिप्रास हैं। यह पार्टी जर्मनी और यूरोपीय यूनियन की थोपी गई कथित कठिन सादगी वाले कदमों के खिलाफ है।

ग्रीस की नई सरकार इस कठोर नुस्खे में ढील चाहती है और अपने कर्जे की आसान किस्तों के बारे में एक नया समझौता चाहती है। चुनाव प्रचार के दौरान सीरिजा यह नया समझौता न होने पर यूरोपीय यूनियन से अलग हो जाने तक की धमकी देती रही। यूरोपीय कमीशन के प्रमुख ज्यां क्लॉद जुनकर ने नए ग्रीक प्रधानमंत्री को ‘मौद्रिक उत्तरदायित्व सुनिश्चित’ करने की जरूरत याद दिलाई है। क्या ऐसी ही सलाह कट्टर बाजारवादी दिल्ली में आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल को नहीं दे रहे हैं? बिजली और पानी के बिलों में कटौती तथा नए सरकारी स्कूल-कॉलेज खोलने की उनकी योजनाओं को क्या आर्थिक रूप से गैर जिम्मेदाराना नहीं बताया जा रहा है? नए ग्रीक प्रधानमंत्री झुकने से इनकार कर रहे हैं। वहां शेयर बाजार का ग्राफ बताता है कि त्सिप्रास के अड़े होने की वजह से शायद जर्मन नेतृत्व वाले यूरोपीय यूनियन और ग्रीस के बीच नया समझौता हो जाएगा और इस समझौते से आर्थिक विकास के लिए भी कोई विकट परिस्थिति नहीं पैदा होगी।

अगर आम आदमी पार्टी की नई सरकार दिल्ली में 15000 रुपये से कम की आमदनी वाली 60 प्रतिशत जनता का भला चाहती है तो उसे सुनिश्चित करना होगा कि जनकल्याणकारी कार्यक्रमों के मामले में उसकी आंखें पहले न झपकें। वैसे ग्रीस और दिल्ली में एक और अंतर है। ग्रीस में नस्ल या मजहब आधारित संकीर्णता मुद्दा नहीं थी। दिल्ली में जनता ने विभाजक सांपद्रायिक और महिलाओं के शरीर पर राजनीति करने वाले कट्टर एजेंडे को भी नकारा है।

    

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