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राहुल की मुट्टी खुलने का इंतजार

हम गांव की चिंता में भटकते राहुल की चल और अचल तस्वीरें देखते हैं लेकिन अभी जानते कि गांवों को खुशहाल बनाने की उनकी नीतियां क्या हैं और वह इसके लिए कौन-कौन से कदम उठाने वाले हैं। हम गरीबों से राहुल के मेलजोल की कोशिशों के बाबत पढ़ते हैं और भरोसा करने को तैयार हैं कि वह उनकी हालत बिना किसी बिचौलिए के जानने चाहते हैं जिस देश में गरीबों के लिए बनी योजनाओं का लाभ अक्सर फर्जी गरीब उठा लेते हैं वहां अब हम जानना चाहते हैं कि राहुल सही गरीबों की शिनाख्त का कौन सा बेहतर तरीका अपनाएंगे। हम जानते हैं क अपने पिता राजीव गांधी की तरह राहुल गांधी भी चिंतित हैं कि गरीबों के लिए केंद्र सरकार द्वारा भेजे गए प्रत्येक रुपये में सिर्फ 15 पैसे उन तक पहुंचते हैं लेकिन हमारी अब यह जानने की भी अपेक्षा है कि विचौलियों द्वारा चट हो रहे बाकी के 85 पैसे राहुल गरीबों तक कैसे पहुंचाएंगे। हम जानते हैं कि राष्‍ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना को राहुल गांधी अपनी यूपीए सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि मानते हैं और उसे पूरे देश में फैलाना चाहते हैं, शहरों मे भी, लेकिन हम यह भी जानना चाहते हैं कि वह इस योजना में व्यापक धांधली कैसे रोकेंगे, कैसे सुनिश्चित करेंगे कि सही लोगों को जॉब कार्ड मिले, काम पर आए मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी मिल पाए और इस योजना के जरिये गांवों में पक्के आधारभूत ढांचे भी बन पाएं।
राहुल की मुट्टी खुलने का इंतजार

अगर कांग्रेस और संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन के पक्ष में आए लोकसभा चुनावों के चौकाऊ परिणामों का बड़ा श्रेय राहुल गांधी की रणनीति और अभियान को दें तो भी हम एक बात से ज्यादा कहने में हिचकेंगे। यह कि राहुल गांधी ने अभी देश के जनमानस पर नेतृत्व के अपने दावे की सिर्फ दस्तक दी है। जनमानस ने अभी इसके जवाब में अपनी स्वीकृति का दरवाजा खोला भर है और कहा है, अच्छा आप? कांग्रेसी कितना भी वंश विरुद गाएं, अभी जनमानस ने राजनीतिक चौखट पर इस नवागंतुक नेतृत्व का अभिवादन भर किया है, उसे अपनी बैठक में बिठाल कर नवाजा नहीं है। नहीं तो कांग्रेस और यूपीए बहुमत का फीता छू गए होते। उत्तर प्रदेश में भी, जहां राहुल की रणनीति सबसे ज्यादा फली और बिना पर्याप्त सांगठनिक आधार के कांग्रेस की सीटें और वोट दूने हो गए, अभी लगभग तीन चौथाई सीटें अन्य दलों के पास ही हैं।

सच पूछो तो ब्रांड राहुल और छवि राहुल को हम भले पहचान गए हों, अभी नेता राहुल को जानते कितना हैं? उनके गांव-गांव धूल फांकने, दलितों की कुटिया में रात गुजारने, गरीबों के साथ रूखी रोटी, आलू जीमने- माना कि यह सब भी आज के ज्यादातर नेता नहीं करते- की कहानियों ने, जो हमें बार-बार इस देश के हाशिए पर खड़े लोगों के लिए राहुल की सदिच्छाएं बताती नहीं थकतीं, एक दिलकश अक्स उकेरा है। इस पर चौकस मीडिया संयोजन ने एक ब्रांड की चमक भी चढ़ाई है। लेकिन राहुल गांधी को यदि एक चल-छवि की उडऩछू मोहकता और एक ब्रांड की बाजारू विक्रयशीलता से ज्यादा गरहे अपने नेतृत्व का सिक्का जमाना है तो उन्हें देशमंच पर अपने किरदार को पहचनवाना ही नहीं, गंभीरता से जनवाना होगा। जरा देखें कि हम नेता राहुल गांधी को कितना जानते हैं।

हम गांव की चिंता में भटकते राहुल की चल और अचल तस्वीरें देखते हैं लेकिन अभी जानते कि गांवों को खुशहाल बनाने की उनकी नीतियां क्या हैं और वह इसके लिए कौन-कौन से कदम उठाने वाले हैं। हम गरीबों से राहुल के मेलजोल की कोशिशों के बाबत पढ़ते हैं और भरोसा करने को तैयार हैं कि वह उनकी हालत बिना किसी बिचौलिए के जानने चाहते हैं जिस देश में गरीबों के लिए बनी योजनाओं का लाभ अक्सर फर्जी गरीब उठा लेते हैं वहां अब हम जानना चाहते हैं कि राहुल सही गरीबों की शिनाख्त का कौन सा बेहतर तरीका अपनाएंगे। हम जानते हैं क अपने पिता राजीव गांधी की तरह राहुल गांधी भी चिंतित हैं कि गरीबों के लिए केंद्र सरकार द्वारा भेजे गए प्रत्येक रुपये में सिर्फ 15 पैसे उन तक पहुंचते हैं लेकिन हमारी अब यह जानने की भी अपेक्षा है कि विचौलियों द्वारा चट हो रहे बाकी के 85 पैसे राहुल गरीबों तक कैसे पहुंचाएंगे। हम जानते हैं कि राष्‍ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना को राहुल गांधी अपनी यूपीए सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि मानते हैं और उसे पूरे देश में फैलाना चाहते हैं, शहरों मे भी, लेकिन हम यह भी जानना चाहते हैं कि वह इस योजना में व्यापक धांधली कैसे रोकेंगे, कैसे सुनिश्चित करेंगे कि सही लोगों को जॉब कार्ड मिले, काम पर आए मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी मिल पाए और इस योजना के जरिये गांवों में पक्के आधारभूत ढांचे भी बन पाएं।

हम मानते हैं कि नवीनतम राष्‍ट्रीय पारिवारिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण के आंकड़े राहुल के ध्यान में होंगे जिनके अनुसार देश में हर तीन में दो औरतें खून की कमी से पीडि़त और पैदा होने वाले हर दो बच्चे में एक कुपोषित है लेकिन हम जानना चाहते हैं कि राहुल कैसे इन औरतों-बच्चों तक पोषक खुराक पहुंचाएंगे। यानी भारत के आम जन को निर्धनतम उप-सहाराई देशों से बेहतर जिंदगी कैसे दे पाएंगे? हम यह भी जानना चाहते हैं कि किसानों की कर्ज माफी को अपनी यूपीए सरकार का अच्छा कदम मानने वाले राहुल गांधी कृषि संकट का स्थायी हल करने और उत्पादकता बढ़ाकर खेती को किसानों के लिए फायदेमंद बनाने के लिए क्या उपाय करेंगे।

हमें बताया जाता है कि राहुल सूचना के अधिकार कानून को अपनी यूपीए सरकार की बड़ी उपलब्धि मानते हैं और शासन तथा सार्वजनिक जीवन में पारदर्शिता के हिमायती हैं। लेकिन उन्हीं की कांग्रेस पार्टी के इस बार निर्वाचित सांसदों में 39 यानी लगभग 19 प्रतिशत ने अपने चुनावी शपथपत्रों में अपना पैन कार्ड नंबर नहीं जाहिर किया है। इनमें से कई करोड़पति भी हैं। अपनी पार्टी में अपारदर्शिता का यह रुझान राहुल कब तक और कैसे दूर करेंगे? हम मानने केा तैयार हैं कि राहुल स्वच्छ राजनीति चाहते हैं लेकिन इस बार निर्वाचित उनकी कांग्रेस पार्टी के 41 सांसदों के खिलाफ आपराधिक मामले हैं। हम जानना चाहते है कि राहुल अपनी पार्टी और व्यापक सार्वजनिक जीवन को भी अपराधमुक्त करने के लिए राहुल के पास क्या उपाय और योजना है।

राहुल गांधी की नेतृत्व क्षमता के प्रति फैसला देने के पहले यह देश इस तरह की बहुत सी बातें उनसे जानना चाहेगा और उनके उत्तरों की दिशा में उनका कामकाज भी परखना चाहेगा। राहुल गांधी को अब खुद के खुर्दबानी परीक्षण के लिए कमर कसनी चाहिए। अब देश उनके शौकों, उनके सलाहकारों, उनके पारिवारिक जीवन, उनकी सदाशयता आदि से ज्यादा जानना चाहता है। लेकिन क्या आपने उनका गंभीर इंटरव्यू कहीं पढ़ा या देखा है? मुट्टी खुली देखना चाहेंगे: वह लाख की है या नहीं।

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