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आपातकाल की बरसी: दु:स्वप्न से ऐन पहले

वर्ष 1975 की 25 जून को इंदिरा गांधी सरकार ने आंतरिक आपातकाल की घोषणा की और भारतीय राजनीति के इस काले अध्याय से जुड़ी घटनाओं को तब अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्‍सप्रेस की एमसीडी बीट कवर करने वाली पत्रकार कूमी कपूर ने किताब की शक्‍ल दी है। यहां हम इस पुस्तक के कुछ अंशों को पाठकों के सामने ला रहे हैं जिनमें आपातकाल से ठीक पहले की घटनाओं का जिक्र है।
आपातकाल की बरसी: दु:स्वप्न से ऐन पहले

इंदिरा गांधी के इस्तीफे की मांग लेकर 25 जून की रात इनसानी जत्थों ने दिल्ली के ऐतिहासिक रामलीला मैदान को भर दिया था। जेपी ने कानफोड़ू तालियों के बीच, 'सिंहासन खाली करो कि जनता आती है' का उद्बोध किया। कांग्रेस (ओ) के क्षीणकाय बुजुर्ग मोरारजी देसाई, जो कि गुजरात के भ्रष्ट कांग्रेसी मुख्‍यमंत्री चिमनभाई पटेल से छुटकारा दिलाने वाले आंदोलन की अगुवाई करने के लिए अपने सेमी रिटायरमेंट से बाहर आए थे, मंच पर थे। साथ ही, मस्तमौला पहलवान राजनीतिज्ञ राजनारायण भी वहां थे जिन्होंने रायबरेली में इंदिरा गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ा था और श्रीमती गांधी पर चुनावी कदाचार का आरोप लगाते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर कर पहिये को इंदिरा गांधी के खिलाफ चला दिया था। इनके साथ आरएसएस के प्रचारक और जनसंघ के बड़े नेता नानाजी देशमुख और दिल्ली जनसंघ के प्रमुख मदनलाल खुराना भी वहां थे।

इससे पहले उस शाम को, हार्वर्ड से लौटे और राज्यसभा में जनसंघ की ओर से नवनिर्वाचित सांसद सुब्रह्मण्यम स्वामी को यह जिम्‍मेदारी दी गई थी कि वे नजदीक के राउज एवेन्यू स्थित गांधी शांति फाउंडेशन के दफ्तर से जेपी को लेकर रामलीला मैदान पहुंचेंगे जहां अपने दिल्ली प्रवास के दौरान जेपी ठहरा करते थे, और इस दौरान दोनों के बीच कुछ दिलचस्प बातचीत हुई। श्रीमती गांधी को हटाने की बढ़ती मांग के बीच स्वामी ने अशुभ और भविष्यदर्शी (जैसा कि बाद में घटनाएं हुईं) की तरह पूछा, 'अगर श्रीमती गांधी ने मार्शल लॉ लागू कर दिया तो क्‍या होगा?' जेपी हंसे और उनके भय को यह कहते हुए खारिज कर दिया, 'तुम बहुत अधिक अमेरिकी हो गए हो, भारतीय विद्रोह कर देंगे।' पूरे देश में जहां भी वह रैली को संबोधित करते थे वहां उन्हें सुनने उमडऩे वाली भीड़ को देखकर जेपी को यकीन हो गया था कि उन्होंने ऐसा आंदोलन खड़ा कर दिया है जो लक्ष्य तक पहुंचे बिना नहीं थमेगा।

  

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25 जून की रात रैली में जेपी ने घोषणा की कि इंदिरा गांधी को इस्तीफे के लिए मजबूर करने के लिए अहिंसक प्रदर्शन और सत्याग्रह किए जाएंगे। उन्होंने उपस्थित लोगों से पूछा कि क्‍या वे इस उद्देश्य के लिए जेल जाने को तैयार हैं। वहां हाथ खड़े करने वालों का पूरा समुद्र था। इसके बाद जेपी ने घोषणा की कि उनके द्वारा सभी विपक्षी दलों में समन्वय के लिए स्थापित संगठन लोक संघर्ष समिति के अध्यक्ष मोरारजी देसाई होंगे, नानाजी इसके महासचिव और कांग्रेस (ओ) के अशोक मेहता कोषाध्यक्ष का पद संभालेंगे। लेकिन इस रैली में जेपी का सबसे महत्वपूर्ण बयान वह था जो वह पहले भी कह चुके थे, 'पुलिस और सैन्य बलों को गैरकानूनी और असंवैधानिक आदेशों का पालन नहीं करना चाहिए।'

जेपी के इसी बयान को बाद में इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी को न्यायोचित ठहराने के लिए बार-बार लोगों के सामने दोहराया। मगर हकीकत यह थी कि उनके राजनीतिक विरोधियों को जेल की सलाखों के पीछे भेजने और विरोध की तमाम आवाजों को कुचल देने की योजना 25 जून की विनाशक रात से महीनों पहले से बन रही थी।

 

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इंदिरा गांधी के अतिरिक्‍त निजी सचिव आर. के. धवन ने, जो अपने बॉस की तरफ से सभी निर्देश जारी किया करते थे, 22 जून, 1975 को आंध्र प्रदेश के मुख्‍यमंत्री जे.वी. राव को फोन कर उन्हें 24 जून को दिल्ली बुलाया, जिस दिन सुप्रीम कोर्ट की अवकाशकालीन पीठ द्वारा श्रीमती गांधी के निर्वाचन पर इलाहाबाद हाईकार्ट के फैसले पर पूर्ण स्थगन की मांग करने के बारे में प्रधानमंत्री की याचिका पर फैसला लेने की उक्वमीद थी। कांग्रेस के कई मुख्‍यमंत्रियों को 25 जून की सुबह सतर्क कर दिया गया था कि उस रात को प्रधानमंत्री निवास से हरी झंडी पाते ही उन्हें विपक्ष के नेताओं के खिलाफ कार्रवाई करनी है। भारतीय वायुसेना के विशेष विमान से हैदराबाद की अपनी वापसी की यात्रा के दौरान 25 जून को राव बेंगलौर में रुके जहां उन्होंने गिरफ्तार और आकस्मिक उपायों के बारे में कर्नाटक के मुख्‍यमंत्री को पूरी जानकारी दी। ठीक इसी तरह मध्य प्रदेश के मुख्‍यमंत्री पी.सी. सेठी को गृह राज्यमंत्री ओम मेहता ने निर्देश दिया कि वह राजस्थान में रुककर वहां के मुख्‍यमंत्री हरिदेव जोशी को सारी जानकारी दे दें।

श्रीमती गांधी अपनी योजना को अमलीजामा पहनाने के लिए जेपी की रैली (दिल्ली के रामलीला मैदान में) के बहाने का इंतजार कर रही थीं। यह रैली पहले 24 जून को होने वाली थी और 23 जून को धवन ने दिल्ली के उप राज्यपाल को सूचित कर दिया था कि जिन महत्वपूर्ण नेताओं को गिरफ्तार किया जाना है उनकी सूची बना ली जाए। इस सूची की श्रीमती गांधी ने खुद व्यक्तिगत रूप से जांच की और अंतिम दिन तक इसमें नामों की कटाई-छंटाई होती रही। जब रैली एक दिन के लिए टल गई तो विशाल पैमाने पर होने वाली गिरफ्तारियां भी उसी के अनुरूप टाल की गईं।

 

 

एक कांग्रेसी मुख्‍यमंत्री जिन्हें इस सारी अग्रिम तैयारियों से बाहर रखा गया था वह थे उत्‍तर प्रदेश के मुख्‍यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा। उन्हें सारी बातों की जानकारी 26 जून की सुबह लगी जब वे वरिष्ठ कांग्रेसी नेता उमा शंकर दीक्षित के साथ नाश्ता कर रहे थे। श्रीमती गांधी को पहले से ही बहुगुणा पर शक था, जिन्हें वह अति महत्वाकांक्षी और चंद्रशेखर जैसे कांग्रेस के युवा तुर्क सांसदों, जिन्होंने कांग्रेस के पुराने नेताओं के खिलाफ श्रीमती गांधी का साथ दिया था मगर अब जेपी को पसंद करते थे, का बेहद करीबी समझती थीं। कुछ महीनों के बाद ही वह मुख्‍यमंत्री पद से हटा दिए गए। बहुगुणा की गलती ये थी कि उन्होंने कई मौकों पर खुद को दिल्ली से स्वतंत्र दिखाया था।

हरियाणा के मुख्‍यमंत्री, घर का बुना पहनने वाले मगर क्रूर बंसी लाल को, जिन्हें अपने गृह राज्य में अपने विरोधियों को गिरफ्तार करने के लिए पुलिस का इस्तेमाल करने में कभी पछतावा नहीं होता था, दूसरे मुख्‍यमंत्रियों  से पहले इन भारी-भरकम गिरफ्तारियों के बारे में बता दिया गया था। हकीकत यह थी कि इंदिरा गांधी के छोटे बेटे संजय गांधी के साथ वह भी सारी रणनीतियां बनाने में एक सक्रिय साजिशकर्ता थे। इन दोनों की जुगलबंदी तब शुरू हुई थी जब संजय गांधी ने गुडग़ांव में अपनी छोटी कार मारुति के निर्माण की इकाई लगाई थी और इसके लिए बंसी लाल ने बाजार भाव से बेहद कम औने-पौने दाम पर किसानों से उपजाऊ जमीन का अधिग्रहण कर 290 एकड़ जमीन दे दी थी। उन्होंने फैक्‍टरी के लिए सरकारी लोन मिलना भी सुनिश्चित किया था। बंसी लाल अपने विरोधियों से निपटने के लिए ताकत के इस्तेमाल में भरोसा करते थे। संजय गांधी और बंसी लाल दोनों इलाहाबाद हाईकोर्ट का आदेश आने के बाद से ही ओवरटाइम कर रहे थे और बदले की योजनाएं बना रहे थे।

 

 

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