Advertisement
10 जुलाई 2023 · JUL 10 , 2023

शहरनामा/सीतामढ़ी

भगवान राम की पत्नी सीता की प्रकाट्य स्थली
यादों में शहर

सीतामय शहर

राजधानी पटना से 140 किमी दूर, बिहार की उत्तरी सीमा पर प्रकृति की गोद में बसा सीतामढ़ी महाकाव्य रामायण में भगवान राम की पत्नी सीता की प्रकाट्य स्थली है। धार्मिक बंधनों से परे जाकर माता सीता यहां के जन मानस में रची-बसी हैं। कस्बेनुमा इस शहर में वैदेही सीता की सुगंध आप महसूस कर सकते हैं। सुबह-शाम, व्यवसाय-नौकरी, खेल-कूद, मनोरंजन यहां जनकनंदिनी जानकी के नाम के बगैर कुछ भी प्रारंभ नहीं होता। हिमालय की तराई के विस्तार में स्थित होने के कारण यह शहर शानदार मौसमों का साक्षी है, बल्कि इस जिले में आप कहीं भी जाएं हरियाली, पेड़ों की घनी छांव ही मिलेगी।

वैदेही का दातुन

सीतामढ़ी में एक जगह है पंथ पाकड़। यह आस्था और वृक्ष प्रेम का अद्भुत संगम है। किंवदंति है कि सीता अपने ब्याह के बाद पहली बार जब जनकपुर से चलीं तो यहीं पहली बार डोली रखी गई। सीता जी ने पाकड़ के वृक्ष की टहनी से दातुन किया और दातुन को फेंक दिया। वही दातुन पाकड़ का वृक्ष बन गया, जो आज तक पंथ पाकड़ का ऐतिहासिक वृक्ष बन चुका है। यह लगभग दो एकड़ में फैला है। वृक्ष तो अद्भूत है, आज कोई भी इसे नहीं काटता है। अगर वृक्ष का विस्तार किसी निजी खेत में हो जाए तो भूस्वामी उस खेत पर अपना स्वामित्व छोड़ उसे सीता माता को अर्पित कर देता है। सीतामढ़ी को सीतामय बनाने में पुनौरा धाम, जानकी स्थान स्थित मंदिर, उर्विजा कुंड, हलेश्वरनाथ मंदिर की बड़ी भूमिका है। इन मंदिरों में सीता के प्रकाट्य स्थल को लेकर मतभेद हैं पर आस्था के रंग में रंगकर ये मतभेद विरल हो जाते हैं।

लखन की नदी

पौराणिक गाथाओं में लखनदेई नदी को लक्ष्मणा के नाम से जानते हैं, जो सीता की सहेली थी। कथाकार वैदिक ग्रंथों में आए शब्द ‘सीता’ को हल के फाल से भूमि में बने आरेखन से जोड़ते हैं। भूमि, कृषि का नदी से संबंध बताने की जरूरत नहीं है। एक कथा यह भी है कि एक बार रामचंद्र के भाई लक्ष्मण ने प्यास लगने पर अपने तीर से भूमि पर वार किया, जिससे जल की धार फूटी और लखनदेई नदी का उद्भव हुआ। लखनदेई यानी लखन (लक्ष्मण का दिया) का दिया हुआ। सीतामढ़ी शहर इस नदी के दोनों ओर बसा है। जीवन से लेकर मरण तक, स्नान से लेकर त्योहार तक सभी में सीतामढ़ी के लोगों को लखनदेई का साथ है। एक समय था जब इस नदी की मुख्यधारा के नेपाल से भारत में प्रवेश करते ही रुख बदल जाने से नदी मृतप्राय हो गई थी। पिछले वर्ष ही इसको पुनर्जीवित करने में सफलता मिली है।

गंगा-जमुनी तहजीब

सीतामढ़ी में हिंदुओं के ख्यात मंदिरों के साथ 19वें जैन तीर्थंकर श्री मल्लिनाथ जी, 21वें तीर्थंकर श्री नेमीनाथ जी के अवतरण की कल्याणक भूमि है। इस्लाम धर्म के गोढ़ौल शरीफ, मदरसा असरफूल उलूम, लहुरिया शरीफ और इसाइयों का एक छोटा चर्च भी है। इनके साथ रानी मंदिर और चोरौत मठ के महंत के मंदिर अपने स्थापत्य और छत में अवस्थित चित्रित अलंकरण और चित्रकारी के कारण सभी लोगों को सहज आकर्षित करते हैं। यहां का सनातन धर्म जिला केंद्रीय पुस्तकालय100 वर्षों से भी ज्यादा पुराना है। मात्र 25 पुस्तकों के साथ यह 1918 में शुरू हुआ और आज उसमें 30 हजार किताबें हैं। पुरानी किताबें, पुरानी पत्रिकाओं के वार्षिक बाइंड किए जिल्द देखना हो तो यहां जरूर आइए।

लहठी और सिक्की

सीतामढ़ी की सांस्कृतिक और कलात्मक पहचान बनने की प्रक्रिया चल रही है। गोबर और मिट्टी के क्यूरल, मिथिला चित्रकला, सिक्की कला, टेराकोटा सभी कुछ है यहां पर। मिथिला कला का विस्तार सुरसंड और चोरौत इलाकों में देखने को आसानी से मिलता है। सिक्की कला की प्रख्यात कलाकार पद्मश्री देवी मूलत: श्रीखंडी मिथिला की ही थी। आज भी कोरियाही गांव की तृप्ता झा, मुक्ता झा, काजल, मेघा, सुप्रिया जैसी तेजतर्रार युवा मिथिला कलाकार तो वहीं शैल देवी, चमेली देवी, मीना देवी जैसी कलाकार सिक्की कला को अपने जीवन की तरह जी रही हैं। इसी तरह भुतही, मेजरगंज की दलित वर्ग की महिलाओं ने बड़े जतन से अपने बांस की गोबर मिट्टी लिपि झोपड़ियों में मिट्टी के क्यूरल उकेरे हैं। लहठी तो पूरे सीतामढ़ी में बनाई और बेची जाती है। साधारण से लेकर डिजाइनर लहठी तक यहां सब बनता है।

गांधी का ग्रामोफोन

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी दो बार सीतामढ़ी आए थे। पहली बार 1927 में वे यहां आए थे। पहली बार आने पर वे जानकी स्थान मंदिर गए, फिर श्रद्धानंद अनाथालय का शिलान्यास किया। आज भी जानकी मंदिर में प्रवेश करते ही गांधी जी के मुस्कराती हुई प्रस्तर प्रतिमा आपको सहज अपनी ओर खींच लेती है। दूसरी बार गांधी जी 1931 में यहां आए। यहीं छपरा के वकील सांवलिया बिहारी वर्मा के साथ बैठकर सीतामढ़ी में अंग्रेजों से संघर्ष का खाका खींचा गया था। सांवलिया बाबू के आवास को गीता भवन नाम दिया गया, जहां आज गांधी जी, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के लिखे पत्र, गांधी जी का फाउंटेन पेन, ग्रामोफोन, एलपी रिकार्ड्स, घड़ी, फर्नीचर, पांच हजार दुर्लभ पुस्तकों के साथ सुरक्षित रखा है। यह एक अघोषित संग्रहालय ही है। गीता भवन गए बिना सीतामढ़ी का भ्रमण अधूरा है।

विनय कुमार

(लेखक, बोधगया बिनाले के संस्थापक-निदेशक)

Advertisement
Advertisement
Advertisement