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शहरनामा: रुद्रपुर

मच्छरों से मुक्त एक शहर की दिलचस्प कथा
यादों में शहर

शहर पर भारी मलेरिया 

सोलहवीं शताब्दी में अल्मोड़ा के राजा रुद्र बहादुर चंद का अपने नाम पर बसाया नगर आज भी पूरी शान से है। 1588 ई. में मुगलों के आक्रमणों का सामना करने के लिए उन्होंने सैनिकों की एक छावनी भी बनाई थी। प्रसिद्ध अटरिया मंदिर आज भी यहां मौजूद है, जिसकी नींव राजा चंद्र बहादुर ने खुद रखी थी। इस मंदिर के बारे में एक लोककथा प्रचलित है। कथा के अनुसार, राजा रुद्र यहां से गुजर रहे थे। इस जगह बहुत कीचड़ और दलदल था। उनका रथ इस दलदली भूमि में फंस गया। बहुत कोशिश के बाद भी रथ नहीं निकला, तो उन्होंने देवी का आह्वान किया और कहा कि रथ निकलने पर वे इसी जगह एक मंदिर बनवाएंगे। अटरिया मंदिर रुद्रपुर-हल्द्वानी मार्ग से आधा किलोमीटर दूर है। हर साल नवरात्र के अवसर पर यहां मेला लगता है और दूर-दूर से देवी के भक्त दर्शन के लिए यहां आते हैं। 10 दिनों के इस मेले की वजह से साल के ये दिन सबसे अच्छे और चहल-पहल भरे होते हैं। सोलहवीं शताब्दी से लेकर बीसवीं शताब्दी तक रुद्रपुर कई बार बसा और उजड़ा। घने जंगल होने के कारण यहां मच्छरों की तादाद बहुत ज्यादा थी। इस कारण मलेरिया बहुत फैलता था और बड़ी संख्या में लोगों की मौत हो जाया करती थी। मलेरिया भी इसके बार-बार उजड़ने की एक बड़ी वजह रही है। आजादी के बाद देश के मलेरिया उन्मूलन केंद्रों में से एक की स्थापना रुद्रपुर में भी की गई। इसके बाद यहां मलेरिया को लेकर सकारात्मक परिणाम देखने को मिले।

संस्कृतियों का गुलदस्ता

1947 में भारत विभाजन के बाद पश्चिमी और पूर्वी पाकिस्तान बने। इसके कारण वहां पीढ़ियों से रह रहे पंजाबी और सिंधी शरणार्थी के रूप में भारत आए। इन शरणार्थियों को यहां बसाया गया। इनके अलावा, अंग्रेजों की सेना में भर्ती होकर द्वितीय विश्व युद्ध में भाग ले चुके कुमाऊं और गढ़वाल के पूर्व सैनिकों, सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज के सैनिकों, पर्वतीय अंचल और पूर्वी उत्तर प्रदेश के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों आदि को भी यहां कृषि भूमि आवंटित कर रुद्रपुर को नए सिरे से आबाद करने की कोशिश सरकार ने की, जो बहुत सफल रही। 1971 में बांग्लादेश का मुक्ति संग्राम होने पर बहुत सारे बंगाली विस्थापितों को भी यहां बसाया गया।

देश की विभिन्न संस्कृतियों के रंग में रंगे, इन सभी लोगों ने रुद्रपुर की धरती को कठिन परिश्रम से उपजे अपने पसीने से सींचा। परिश्रम की यह चमक यहां के वातावरण में दिखाई देती है। यहां की सफाई, बसाहट में अलग तरह का अनुशासन देखते ही बनता है। 2002 के आसपास यहां औद्योगिक क्षेत्र सिडकुल की स्थापना हुई, इससे विकास के नए ऐसे आयाम देखने को मिले, जिन्हें देखकर पुराने लोग दांतों तले उंगली दबा लेते हैं। अचरज भरा सवाल होता है, क्या यह वही रुद्रपुर है? 

ऐसे बसा शहर

इस शहर के विकास की शुरुआत 30 सितंबर 1995 को उत्तर प्रदेश के तत्कालीन नैनीताल जिले के तराई क्षेत्र की चार तहसीलों किच्छा, काशीपुर, सितारगंज तथा खटीमा को मिलाकर ऊधम सिंह नगर जनपद का गठन और रुद्रपुर को जनपद का मुख्यालय बनाए जाने से हुई। 9 नवंबर, 2000 को देश की संसद ने उत्तर प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, 2000 पारित कर उत्तराखंड राज्य का निर्माण किया। उसके बाद से रुद्रपुर भौगोलिक दृष्टि से उत्तराखंड राज्य के तहत आता है। कभी रुद्रपुर की भौगोलिक सीमाएं और शहर की फिजा सिमटी-सिमटी थी। कालांतर में 2002 के बाद रुद्रपुर ने लंबी-लंबी छलांगें लगाईं और यह समुचित विकसित शहर बन गया। अब शहर अपनी सुंदरता के कारण राष्ट्रीय ही नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मानचित्र पर भी अपनी उपस्थिति दर्ज करा लेने में कामयाब हो गया है। आज रुद्रपुर का विशाल और जीवंत इंदिरा गांधी चौराहा, शहर की शान है। किसी जमाने में साधारण सा यह चौक अब रौनक और चहल-पहल से भरा हुआ है। कस्बा से नगर अब राष्ट्रीय राजमार्गों से घिर कर यह शहर जल्द ही महानगर बनने की राह पर अग्रसर है।

पुराने डाकघर की स्मृतियां

गांधी पार्क के पास स्थित पुराना डाकघर ही तब शहर का एकमात्र और प्रमुख डाकघर हुआ करता था। यह एक किराए के भवन से चलता था। इसके सामने लगे लाल लैटर बॉक्स से होते हुए कई पत्र पता नहीं कहां-कहां पहुंचे होंगे। ई-मेल इस्तेमाल करने वाली पीढ़ी शायद किसी भी डाकघर के महत्व को नहीं जानती होगी, फिर इस डाकघर की क्या कहें। लेकिन मेरे बचपन में यह जगह भारी चहल-पहल से भरी रहती थी। डाकिए के बड़े-बड़े खाकी थैले, पत्रों पर लगती मोहर की खट-खट आवाज, बाहर से आए पत्रों की छंटाई, सब कुछ ऐसे ताजा है, जैसे बस कल ही की बात हो। जो बात इस डाकघर की मुहर लग कर आए पत्रों की होती थी, वह बात ह्वॉट्सऐप संदेश में कहां।

खान पान में भी अव्वल

खाने के शौकीनों के लिए यह स्वर्ग है। यहां की चाट पूरे उत्तराखंड में प्रसिद्ध है। चाट मार्केट में एक ही जगह अलग-अलग प्रकार के व्यंजन चखने को मिल जाते हैं। रुद्रपुर का चाट मार्केट अपने स्वाद के लिए इतना प्रसिद्ध है कि यहां ऊधम सिंह नगर, नैनीताल और रामपुर जनपद से बड़ी संख्या में लोग आते हैं। सुबह से शाम तक चाट मार्केट स्वाद के शौकीन से भरा रहता है। गांधी मैदान के पास स्थित चाट मार्केट में सत्तर से ज्यादा ठेले लगते हैं। यहां हर तरह का जायका आपको मिल जाएगा। फास्ट फूड से लेकर एकदम ठेठ पंजाबी जायका भी। यहां का नॉनवेज खाना भी बहुत प्रसिद्ध है। सो, पहुंचिए और आनंद लीजिए।

गंभीर सिंह पालनी

(लेखक)

 

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