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27 मई 2024 · MAY 27 , 2024

फिल्म: परदे पर राम राज की वापसी

आज राम रतन की चमक छोटे और बड़े परदे पर साफ दिख रही है, हर कोई राम नाम की बहती गंगा में हाथ धोना चाहता है
परदे पर राम

अयोध्या में राम लला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद हर जगह राम नाम ही गूंज रहा है। कुछ दिन पहले राम मंदिर में राग सेवा का 45 दिवसीय कार्यक्रम पूरा हुआ, जिसमें देश भर के दिग्गज कलाकारों ने राम लला की सेवा में कलार्पण किया। डाक विभाग ने राम मंदिर के नए टिकट भी जारी किए। टेलीविजन भी राम भक्ति रस से परिपूर्ण है। प्रतिदिन प्रातः दूरदर्शन पर राम लला की आरती का सीधा प्रसारण होता है। जनवरी में सोनी एंटरटेनमेंट टेलीविजन ने श्रीमद रामायण नामक नए धारावाहिक का प्रसारण शुरू किया, जिसका निर्माण सिद्धार्थ कुमार तेवरी ने किया है। फरवरी से दूरदर्शन और शेमारू टीवी पर रामानंद सागर की रामायण का पुनः प्रसारण भी शुरू हुआ।

रामानंद सागर की रामायण

रामानंद सागर की रामायण

पिछले साल रामायण पर आधारित ओम राउत की आदिपुरुष बॉक्स ऑफिस पर असफल रही और उसे दर्शकों और विशेषज्ञों की आलोचना का सामना करना पड़ा। आने वाले समय में बड़े और छोटे परदे पर रामायण बनाने की योजनाएं बन रही हैं। नितेश तिवारी इस साल रणबीर कपूर को लेकर एक और रामायण बना रहे हैं। दूरदर्शन पर भी एक नया रामायण धारावाहिक प्रसारित होने वाला है। पर इनमें से कितने दर्शकों का दिल जीतने में कामयाब रहेंगे, यह अब चर्चा का विषय बनता जा रहा है।

इस बात से कोई नकार नहीं कर सकता कि 1987 में रामानंद सागर की रामायण के प्रसारण का भारत की राजनीति पर गहरा प्रभाव पड़ा। कहने वाले तो यह कहते हैं कि इस सीरियल से मंदिर आंदोलन को नई ऊर्जा मिली थी। रामायण के प्रसारण के बाद राजीव गांधी सरकार की देखरेख में अयोध्या में मंदिर का शिलान्यास हुआ और 1990 में लालकृष्ण अाडवाणी का रामरथ सोमनाथ से अयोध्या की ओर चल पड़ा। रथ अयोध्या तो नहीं पहुंचा मगर छह साल बाद भाजपा ने केंद्र में पहली बार अपनी सरकार बनाई।

नए दौर की रामायण 

श्रीमद रामायण

श्रीमद रामायण

मुंबई में सागर आर्ट्स के दफ्तर में काफी चहल-पहल है। 2008 में रामानंद सागर के पुत्र आनंद सागर ने एनडीटीवी इमेजिन के लिए रामायण बनाई थी और अब, 16 साल बाद रामानंद सागर के पौत्र और प्रेम सागर के पुत्र शिव सागर दूरदर्शन के लिए रामायण बना रहे हैं। मुंबई में सागर आर्ट्स के दफ्तर में  शिव अपने नए सीरियल काकभुशुण्डि रामायण की कास्टिंग में व्यस्त हैं। शिव मानते हैं कि हर पीढ़ी कला से कुछ अलग चाहती है और ऐसे में नई पीढ़ी के लिए एक नई रामायण का निर्माण होना चाहिए।

वे कहते हैं, “आज के युवा अपनी जड़ों की खोज कर रहे हैं। वे यह जानने के इच्छुक हैं कि हम वास्तव मैं कौन हैं, कहां से आए हैं, हमारे मूल्य और पहचान क्या हैं। इन सब बातों से एक पीढ़ी को रूबरू कराने के लिए रामायण से ज्यादा उपयुक्त अन्य कोई माध्यम नहीं है।”

शिव के लिए सबसे बड़ी चुनौती यही है कि लोग उनके दादा रामानंद सागर की रामायण को एक मापदंड समझते हैं। वे कहते हैं, “हम दादाजी की रामायण का मुकाबला नहीं कर रहे हैं। वह एक उत्कृष्ट रचना है। हम कम्बन, तुलसीदास, वाल्मीकि, रंगनाथ आदि कई कवियों की रामायणों से कुछ अनसुनी कहानियां चुनकर लोगों के सामने रख रहे हैं। और इसे हम काकभुशुण्डि के दृष्टिकोण से बता रहे हैं।”

तथ्यों का मामला

रामायण के विशेषज्ञ बस इतना चाहते हैं कि जो भी बने तथ्यों के आधार पर बने और रचनात्मक स्वतंत्रता के नाम पर कुछ अनर्थ न बन जाए। बेंगलूरू से थोड़ी दूर रागिहल्ली में वाल्मीकि आश्रम चलाने वाले डॉ. आर. रंगन वाल्मीकि रामायण के विशेषज्ञ हैं और मानते हैं कि रामायण बनाने वाले फिल्मकार तीन प्रकार के होते हैं। ‘‘एक, जिनमें राम के प्रति श्रद्धा है और वे पूरा प्रयास करते हैं कि राम कथा के साथ न्याय हो, जैसे रामानंद सागर थे। दूसरे वे होते हैं, जो सोचते हैं कि राम की एक लहर चल पड़ी है तो कुछ बनाकर चार पैसे कमा लेते हैं। तीसरी श्रेणी के लोग राम कथा कहने के बहाने राम की बदनामी करने की कोशिश करते हैं और एक एजेंडा पूरा करने के लिए फिल्म या सीरियल बनाते हैं। आदिपुरुष दूसरे वर्ग में आती है।”

आदिपुरुष के दृश्य

आदिपुरुष के दृश्य

डॉ. रंगन के हिसाब से रामायण को बनाने के कुछ उल्लेखनीय प्रयास रहे हैं, जैसे 1993 में आई यूगो साको द्वारा निर्देशित एनीमेशन फिल्म रामायण: दी लेजेंड ऑफ प्रिंस राम और यशोदीप देवधर की 21 नोट्स वाल्मीकि रामायण। “रामानंद सागर ने रामचरितमानस को लेकर अच्छा काम किया था। सागर से पहले सब यही कहते थे कि रामायण जैसे विषय पर आज के जमाने में कोई रुचि नहीं लेगा। उन्होंने रामायण बनाकर धार्मिक धारावाहिकों का ट्रेंड शुरू किया था। आज लोग रामायण तो बनाने को तैयार हैं मगर वाल्मीकि को आधार नहीं बनाना चाहते। उनको लगता है कि जब तक इस कथा में कुछ मसाला न जोड़ा जाए, तब तक लोग नहीं देखेंगे।”

एनिमेशन फिल्म रामायणः द लीजेंड ऑफ प्रिंस राम

एनिमेशन फिल्म रामायणः द लीजेंड ऑफ प्रिंस राम

1987 में रामानंद सागर की रामायण में सीता राम की भूमिका में दिखने वाले कलाकार दीपिका और अरुण गोविल में लोग आज भी ईश्वर की छवि देखते हैं। ये कलाकार भी अपनी छवि बनाए रखने के वास्ते ऐसा कोई काम नहीं करते, जिससे लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचे। क्या आज के अभिनेता ऐसा कर पाएंगे?

कला समीक्षक विजय साई कहते हैं, “आज अपनी छवि बनाए रखना और भी मुश्किल है क्योंकि यह सोशल मीडिया का युग है। पहले कलाकार अपनी छवि को लेकर सचेत थे। वे किरदार भी ऐसे चुनते थे, जिससे उनकी छवि को कोई क्षति न पहुंचे। हर बड़ा कलाकार चाहता था कि वह कुछ ऐसी फिल्में करे जिसके लिए उसे मरने के बाद भी याद रखा जाए। इसके लिए उनकी तैयारी भी अलग किस्म की होती थी।”

हिंदुस्तानी सिनेमा में शायद तेलुगु इंडस्ट्री से बेहतर पौराणिक कथाओं को पर्दे पर किसी ने नहीं उतारा होगा। विजय इसका श्रेय उस जमाने के तेलुगु रंगमंच को देते हैं, जहां से तैयार होकर ये कलाकार निकलते थे। “मंच पर उनको लंबे डायलॉग और कविता याद करने की शिक्षा मिलती थी। जो कलाकार इसका मंचन करने के लिए तैयार होते थे, उनमें इन किरदारों की समझ भी बेहतरीन होती थी। एन.टी. रामाराव ने न सिर्फ परदे पर राम और कृष्ण के किरदारों को निभाया, बल्कि लोगों ने उनमें भगवान का रूप देखा।” विजय कहते हैं, “रामायण को बनाने के लिए पारदर्शिता की आवश्यकता है, जो रामानंद सागर जैसे फिल्मकारों में थी। 

आज के सिया राम

बॉक्स ऑफिस विश्लेषक अतुल मोहन को लगता है कि जिस लिहाज से फिल्म इंडस्ट्री ने तकनीकी क्षेत्र में प्रगति की है, उस लिहाज से काम भी बेहतरीन होना चाहिए। “टेक्नोलॉजी होने के बावजूद आदिपुरुष कमाल नहीं कर पाई। रामायण परिचित कहानी होने पर भी लोग इसे बार-बार देखेंगे अगर इसे दिलचस्प तरीके से पेश किया जाए।

राम आएंगे

शिव के अनुसार इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है कि वर्षों बाद वे फिर दूरदर्शन के साथ काम कर रहे हैं। “हम इस बात को ध्यान रख रहे हैं कि तथ्यों के साथ कोई खिलवाड़ न हो। चुनावी साल में प्राण प्रतिष्ठा और राममय वातावरण मात्र संयोग नहीं हो सकता। रामानंद सागर ने जब रामायण बनाई थी, तब भाजपा मात्र दो सीटों तक सीमित थी। आज भाजपा अपने चरम पर है।  शिव सागर मानते हैं कि बतौर फिल्मकार उनका राजनीतिक पृष्ठभूमि से कोई लेना-देना नहीं है। “पापाजी अगर चाहते तो राजनीति में प्रवेश कर सकते थे। पर वे राम भक्त और कलाकार थे। सनातन धर्म के मूल्यों को घर-घर पहुंचाने में उनका बड़ा योगदान रहा है। उन्होंने कभी इसका श्रेय नहीं लिया। रामायण उन्होंने अपने आदर्शों के लिए बनाई थी। हम पापाजी के उन आदर्शों को जिंदा रखना चाहते हैं। मैं मानता हूं कि दूरदर्शन एक सोता हुआ शेर है। समय आ गया है कि वह अपनी शक्ति पहचाने और जाग जाए।”

(लेखक एक पत्रकार और फिल्म शोधकर्ता है)

 

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