Advertisement

हरियाणा: दांव पर जजपा का वजूद

दस सीटों पर जीत को दुहराना भाजपा के लिए मुश्किल
अपनी राजनीतिः हिसार में अपनी पार्टी के नेता और कार्यकर्ताओं से रू-ब-रू दुष्यंत चौटाला

हरियाणा के सियासी क्षितिज से चौथे लाल (पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल) की लाली छंटने के साथ यहां के एक और लाल (पूर्व मुख्यमंत्री देवीलाल) की विरासत संभाले जननायक जनता पार्टी (जजपा) का अस्तित्व भी अस्त होने के कगार पर है। जितनी तेजी से जजपा उभरी, उतनी ही तेजी से उसकी सियासी जमीन खिसकने के आसार हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव से पांच महीने पहले दिसंबर 2018 में देवीलाल की पार्टी इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) से टूटकर कर बनी जजपा के दुष्यंत चौटाला 2019 के विधानसभा चुनाव में 90 में से 10 सीटें जीत गए तो बहुमत से 6 सीटें कम 40 सीटों पर सिमटी सत्तारूढ़ भाजपा की लगातार दूसरी पारी के लिए किंग बने।

2014 में हिसार से इनेलो के सांसद रहे दुष्यंत चौटाला पूर्व उप-प्रधानमंत्री देवीलाल के पौत्र अजय चौटाला के पुत्र हैं। विधायक चाचा इनेलो नेता अभय चौटाला से छिड़ी सियासी रार के बाद दुष्यंत ने अपने परदादा देवीलाल के नाम पर जननायक जनता पार्टी के गठन के पांच महीने बाद 2019 का लोकसभा चुनाव आम आदमी पार्टी के साथ मिलकर लड़ा। तब कोई सफलता नहीं मिली, लेकिन पांच महीने बाद विधानसभा चुनाव में 10 विधायकों के दम पर दुष्‍यंत उप-मुख्‍यमंत्री बन गए। 

ऐन लोकसभा चुनाव के पहले 12 मार्च को साढ़े चार साल पुराना जजपा-भाजपा गठबंधन टूट गया। भाजपा ने साढ़े नौ साल मुख्यमंत्री रहे मनोहर लाल खट्टर को विदा किया और उनकी जगह ओबीसी वर्ग के नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री बना दिया ताकि गैर-जाट वोट की गोलबंदी पक्‍की की जा सके। जाट चेहरे दुष्यंत से गठबंधन तोड़ भाजपा ने 78 प्रतिशत गैर-जाट मतदाताओं को अपने पाले में करने की कोशिश की है। वहीं जजपा के अलग मैदान में उतरने से जाट वोट बंटने पर विपक्षी दल कांग्रेस को नुकसान का फायदा भाजपा को हो सकता है।

29 प्रतिशत जाट मतदाताओं के दम पर हरियाणा की छह दशक की सियासत में ज्यादातर समय सत्ता जाट मुख्यमंत्रियों बंसी लाल, देवी लाल, ओमप्रकाश चौटाला, मास्टर हुकुम सिंह और भुपेंद्र सिंह हुड्डा के हाथ रही है। 2014 की मोदी लहर में 47 सीटें जीतने वाली भाजपा ने पहली बार के विधायक गैर जाट चेहरे मनोहर लाल को मुख्यमंत्री बनाया। 2019 के लोकसभा चुनाव में भी मोदी लहर के सहारे सभी 10 लोकसभा सीटों पर जीत के चार महीने बाद अक्टूबर में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा बहुमत से पिछड़ गई। अब भाजपा ने ओबीसी वर्ग से आने वाले नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री बनाकर 22 प्रतिशत ओबीसी मतदाताओं में सेंध लगाने की कोशिश की है।

1967 में राव बीरेंद्र सिंह ओबीसी वर्ग से आने वाले पहले मुख्यमंत्री थे। राव के बाद नायब सिंह सैनी हरियाणा में ओबीसी वर्ग के दूसरे मुख्यमंत्री हैं।  सैनी समाज का मत प्रतिशत करीब 6 प्रतिशत है वहीं पंजाबी समुदाय 5 प्रतिशत मतदातों का प्रतिनिधित्व करता है। खट्टर को हटाए जाने से पंजाबियों में हुई नाराजगी दूर करने के लिए खट्टर को करनाल से सांसद का चुनाव लड़ाकर मोदी-3 मंत्र‌िमंडल में शामिल किया जा सकता है।

दुष्यंत चौटाला ने आउटलुक से कहा, “साढ़े चार साल तक भाजपा के साथ गठबंधन में सरकार सफलतापूर्वक चली। चार दौर की बैठक के बावजूद भाजपा हरियाणा की 10 लोकसभा सीटों में से हमें दो सीटें हिसार और भिवानी-महेंद्रगढ़ देने के लिए राजी नहीं हुई। केवल कुरुक्षेत्र की एक सीट हमें मंजूर नहीं थी। दूसरा मनोहर लाल जी को मुख्यमंत्री पद से हटाकर नायब सिंह सैनी की सरकार का हिस्सा बनना हमें मंजूर नहीं था। लोकसभा की सभी 10 विधानसभा की सभी 90 सीटों पर हम अकेले लड़ेंगे।”

कुरूक्षेत्र से कांग्रेस के सांसद रहे उद्योगपति नवीन जिंदल को इस बार भाजपा ने मैदान मेंं उतारा है।  हिसार सीट से भाजपा के रणजीत चौटाला अपने ही परिवार के सदस्य दुष्यंत चौटाला या दिग्विजय चौटाला से घिर सकते हैं। इधर कांग्रेस की ओर से बृजेंद्र सिंह के मैदान में उतरने से इस सीट पर तीनों जाट उम्मीदवार मुकाबले को रोचक बनाएंगे।  भिवानी-महेंद्रगढ़ सीट पर दुष्यंत के पिता अजय चौटाला भाजपा के वर्तमान सांसद धर्मवीर की राह मुश्किल कर सकते हैं। 

लोकसभा चुनाव से दो महीने पहले जजपा से गठबंधन तोड़ने और मनोहर लाल खट्टर को मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने के बाद हरियाणा में जिस तरह का सियासी मिजाज दिख रहा है, उसमें भाजपा के लिए सभी 10 लोकसभा सीटों पर जीता को दुहराना आसान नहीं है, वहीं जजपा के लिए अस्तित्व बनाए रखना कड़ी चुनौती है। जो भी हो, चुनावी जंग के रंग दिलचस्प होते जा रहे हैं।

Advertisement
Advertisement
Advertisement