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इजरायल/फलस्तीनः हिज्बुल्ला अभी जिंदा है

सवाल यह है कि अब नेतन्याहू क्या करेंगे? इजरायल की क्या योजना है? और क्या ईरान इस जंग में कूदेगा?
तेहरान में विरोध-प्रदर्शन

इजरायल के हालिया हवाई हमलों में हिज्बुल्ला के सुप्रीमो हसन नसरुल्ला सहित इस समूह के कई आला नेताओं की मौत ने लेबनान सहित ईरान में भी उसकी कार्रवाइयों को गहरा झटका दिया है। नसरुल्ला अपने शीर्ष कमांडर के साथ मिल रहे थे जब इजरायल ने हमला किया। इस घटना से इजरायली प्रधानमंत्री बेंजमिन नेतन्याहू की छवि अपने देश में सुधरेगी। लेबनान में हिज्बुल्ला के ठिकानों को नष्ट करने के लिए इजरायल के हवाई हमले अब भी जारी हैं। हिज्बुल्ला का संचार तंत्र पेजर और वॉकी-टॉकी हमले के बाद ध्वस्त हो चुका है। ऐसे में इजरायल के पास उसके ऊपर हमला करने का अच्छा मौका है। नसरुल्ला की मौत अकेले लेबनान और गाजा को प्रभावित नहीं करेगी। इसका असर समूचे पश्चिमी एशिया और उसके पार होगा। बावजूद इसके, यह हिज्बुल्ला का अंत नहीं है क्योंकि वे महज लड़ाके नहीं हैं, राजनीतिक इस्लाम के प्रति संकल्पबद्ध लोग हैं। हां, नसरुल्ला और कई शीर्ष कमांडरों के चले जाने के बाद इस समूह को दोबारा संगठित होने और भविष्य  की कार्रवाइयों को गढ़ने में वक्त जरूर लग सकता है। इस क्षेत्र के जानकार मानते हैं कि कोई न कोई इसका नेता बनकर उभर ही आएगा। नसरुल्ला ने करिश्माई नेता सैयद अब्बास मुसावी से समूह की कमान थामी थी, जिन्हेंं मार दिया गया था।

ऊहापोहः नेतन्याहू के साथ अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडन

ऊहापोहः नेतन्याहू के साथ अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडन

हिज्बुल्ला और हमास को समर्थन देने वाले ईरान के लिए यह बहुत बुरा घटनाक्रम है। नसरुल्ला ईरानी नेतृत्व के करीबी थे और 1992 में उन्हें ईरानियन रेवॉल्यूशनरी गार्ड ने हिज्बुल्ला का मुखिया बनाया था। एक मजहबपरस्त शिया होने के नाते ईरान के सुप्रीम नेता अली खमैनी और वहां के उलेमाओं के साथ उनके रिश्ते मजबूत थे। उन्होंने समूचे इलाके में राजनीतिक इस्लाम के ईरानी संस्करण का प्रसार करने में अहम भूमिका निभाई थी। वे ही थे जिन्होंने सीरिया, इराक और गाजा में प्रतिरोधी ताकतों के साथ समन्वय बनाया था। हिज्बुल्ला के समर्थक तमाम लेबनानियों के लिए नसरुल्ला पिता समान थे। जो लोग उनके विरोधी थे, वे मानते थे कि नसरुल्ला ही लेबनान की बदहाली के लिए जिम्मेदार हैं।    

अब सवाल एक ही है कि ईरान का अगला कदम क्या होगा। क्या ईरान इस जंग में खुद कूदेगा? अतीत में कई बार इजरायल ने ईरान को शर्मिंदा किया है। संदिग्ध इजरायली एजेंटों ने ईरान के भीतर ही उसके परमाणु वैज्ञानिकों को मार दिया था। दमिश्क में ईरान के वाणिज्यिक दूतावास पर हमला कर के ईरानी रेवॉल्यूशनरी गार्ड के एक बड़े कमांडर का सफाया किया गया। इसके जख्म अभी सूखे भी नहीं थे कि इस्माइल हानिये को उड़ा दिया गया जब वे एक सरकारी गेस्टहाउस में ठहरे हुए थे। वे राष्ट्रपति मसूद पेजेश्कियां के शपथ ग्रहण समारोह में सम्मानित अतिथि के तौर पर ईरान बुलाए गए थे।

अली खमैनी

अली खमैनी

इतने अपमान के बावजूद ईरान ने कड़े बयान देने के अलावा कुछ और नहीं किया। यह उसकी रणनीति को रहस्यमय भी बनाता है और कई हलकों में संदेह का कारण भी बना हुआ है। दशकों से लगे प्रतिबंधों ने ईरान की सैन्य ताकत को कम कर दिया है। उस पर से आर्थिक मुश्किलात और अशांत आबादी ने घरेलू मोर्चे पर उसे परेशान किया हुआ है। ऐसे में ऐसा लगता है कि ईरान दहाड़ चाहे जितना ले, वह इजरायल के खिलाफ जंग में नहीं कूदेगा। ईरान का नेतृत्व इस बात को समझता है कि इजरायल, अमेरिका और उसके सुन्नी पड़ोसी दरअसल यही तो चाहते हैं। इससे इजरायल को ईरान के एटमी प्रतिष्ठानों पर हमला करने का एक बहाना मिल जाएगा। यह एटमी कार्यक्रम फिलहाल अहम मोड़ पर है। सऊदी अरब और यूएई बीते कोई दशक भर से इजरायल के साथ एक मायने में कबड्डी खेल रहे हैं। यूएई ने इजरायल के साथ कूटनीतिक रिश्ते बना लिए हैं। सऊदी अरब भी इसी राह पर था लेकिन गाजा पर इजरायली हमले के कारण यह मामला फंस गया। न तो इजरायल और न ही अरब के सुन्नी देश चाहते हैं कि ईरान परमाणु शक्ति संपन्न हो जाए। इसलिए ईरान अपने राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखते हुए अपने विकल्प तौलेगा और कदम उठाएगा।

अगला सवाल है कि अब नेतन्याहू क्या करेंगे? इजरायल की क्या योजना और रणनीति है? क्षेत्र में कई लोग मानते हैं कि इजरायल गाजा पर कब्जा करना चाहता है और फलस्तीनियों को मिस्र के सिनाई रेगिस्तान में भेजना चाहता है। यह 1947 से ही यहूदियों का सपना रहा है। नेतन्याहू और उनके समर्थकों को लगता है कि यही वह सही समय है कि बाइबिल में दर्ज ग्रेटर इजरायल के यहूदी सपने को पूरा करने के लिए पूरा जोर लगा दिया जाए।

फलस्तीनियों की समर्थक लीग ऑफ पार्लियामेंटेरियंस फॉर अल-कुदस के इस्तांबुल स्थित डायरेक्टर जनरल मोहम्मद मकरम बलावी कहते हैं, ‘‘गाजा में इजरायल की जंग का लक्ष्य साफ है। उसके दिमाग में केवल नस्ली सफाये की बात है और इजरायल की स्थापना के समय से ही उसने हमेशा यहूदियों के लिए एक राज्य का सपना देखा है। वे ऐसा इसलिए नहीं कर पाए क्योंेकि इजरायल को मिली जमीन पर भारी संख्या में फलस्तीनी रह रहे थे। इसलिए उन्होंने फलस्तीनियों को उनके घर से बाहर खदेड़ने की कदम दर कदम योजना बनाई। यह 1948 में हुआ, फिर 1967 में और आज भी जारी है।"

वे कहते हैं, "कब्जे वाले क्षेत्र में फलस्तीनियों के लिए हालात इतने मुश्किल हो गए हैं कि नौजवान लोग फलस्तीन के बाहर निकलने के मौके तलाश रहे हैं। गाजा से फलस्तीनियों को खदेड़ने का यह एक और कदम है। यही सब वेस्ट बैंक में भी चल रहा है, जहां इजरायल ज्यादा से ज्यादा बस्तियां बसा रहा है और जमीनें कब्जा  रहा है। वे फलस्तीनियों को पूरी तरह महरूम कर के मिस्र के सिनाई के रेगिस्तानों में भेज देना चाहते हैं।"

 

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