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13 मई 2024 · MAY 13 , 2024

जनादेश ’24/ सोशल मीडिया: इनफ्लुएंसर काल में चुनाव

सोशल मीडिया के लोकप्रिय चेहरों को भुनाकर राजनीतिक दलों ने मतदाताओं तक पहुंचने के एक सशक्त औजार को साध लिया
प्रधानमंत्री मोदी के साथ बैयनपुरिया

हरियाणा के सोनीपत निवासी कुश्ती खिलाड़ी अंकित बैयनपुरिया 2022 में कंधे की चोट के चलते खेल छोड़कर सोशल मीडिया पर फिटनेस के वीडियो डालने लगे। धीरे-धीरे वे अपनी वर्जिश की तकनीकों और कठोर अनुशासन के चलते लोकप्रिय हो गए। अपने वीडियो की शुरुआत में वे अपने दर्शकों को ‘राम राम भाई सारेयाणे’ कह के अभिनंदन करते हैं। इस खास शैली ने उन्हें  दर्शकों के साथ जुड़ने में काफी मदद की है। उन्हें  प्रसिद्धि तब मिली जब अंतरराष्ट्रीय उद्यमी और लेखक एंडी फ्रिसेला से प्रेरित होकर उन्होंने ’75 डे हार्ड चैलेंज’ नाम की शारीरिक और मानसिक वर्जिश शुरू की। इसके बाद उनकी जिंदगी ने नया मोड़ लिया, जब बीते साल अगस्त में उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ एक वीडियो में बातचीत करते हुए लोगों ने देखा।

अपने ‘75 डे चैलेंज’ कार्यक्रम के तहत उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के ‘स्वच्छता के लिए श्रमदान’ अभियान में हिस्सा लिया जो पार्टी के ‘स्वच्छता ही सेवा’ नामक प्रचार अभियान का अंग था। उनकी वीडियो प्रधानमंत्री के सरकारी सोशल मीडिया एकाउंट पर जारी की गई। रातोरात उनके फॉलोवर बढ़ कर दोगुने हो गए। फिलहाल इंस्टाग्राम पर बैयनपुरिया के 77 लाख से ज्यादा फॉलोवर हैं और यूट्यूब पर उनकी संख्या 37 लाख से ऊपर है। पार्टी के अभियान का हिस्सा बनने से केवल उन्हें ही फायदा नहीं हुआ बल्कि उनके अभियान ने पार्टी की रणनीति को उनके दर्शकों तक पहुंचाने का भी काम किया।

स्मृति ईरानी के साथ रणवीर इलाहाबादिया

स्मृति ईरानी के साथ रणवीर इलाहाबादिया

पिछले कुछ साल में राजनीतिक दल घर-घर जाकर प्रचार करने के बजाय सोशल मीडिया पर असर रखने वाले बैयनपुरिया जैसे लोगों के भरोसे हो गए हैं। ऐसे असरदार लोग पार्टी के प्रचार का वाहक बनकर उभरे हैं। बहुत महीन तरीकों से और अनौपचारिक बातचीत के माध्यम से ये लोग पार्टी के संदेश को शहर, गांव और कस्बों तक पहुंचाने का काम कर रहे हैं। खासकर ऐसे असरदार लोगों की पहुंच युवाओं तक है, जो राजनीतिक दलों के संभावित वोट बैंक हैं। ये लोग सोशल मीडिया के लोकप्रिय चेहरे होते हैं और अलग-अलग क्षेत्रों से आते हैं। इन्हें आजकल सोशल मीडिया इनफ्लुएंसर कहा जाता है।

नीतीश राजपूत

नीतीश राजपूत

ऐसे ही चेहरों की मदद से राजस्थान विधानसभा चुनाव से पहले अशोक गहलोत की सरकार ने अपनी कल्याणकारी योजनाओं का प्रचार करने की एक रणनीति बनाई थी। यह योजना यूट्यूब, फेसबुक, इंस्‍टाग्राम और ट्विटर पर अच्छे-खासे फॉलोवर वाले इनफ्लुएंसर खातों के लिए थी। सरकार ने अपनी योजनाओं का प्रचार करने के एवज में इन लोगों के लिए दस हजार से लेकर पांच लाख रुपये के पुरस्कार का ऐलान किया था।

अब लोकसभा चुनाव शुरू हो चुके हैं तो ऐसे इनफ्लुएंसर एक बार फिर पार्टियों के लिए अहम हो गए हैं। इनका बाजार गरम है। भाजपा से लेकर कांग्रेस और अन्य क्षेत्रीय दलों ने ऐसे लोगों के साथ बीते दिनों बैठकें की हैं और अपने प्रचार के लिए अपने पाले में खींचने की कोशिश की है या उन्हें रिझाने का काम किया है।

राहुल गांधी के साथ समदीश

राहुल गांधी के साथ समदीश

स्मार्टफोन और सस्ते डेटा के चलते जिस तरह भारत के समाज में मोबाइल फोन का चलन बढ़ा है, अब कम ही लोग अखबार पढ़ रहे हैं। ज्यादातर लोग सोशल मीडिया से ही सूचनाएं ले रहे हैं। भारत के दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राइ) के अनुसार सितंबर 2023 के अंत तक भारत में 91.8 करोड़ इंटरनेट का इस्तेमाल करने वाले लोग थे। यह संख्या 2.5 प्रतिशत की दर से तिमाही बढ़ रही है। फोर्ब्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक इनमें से 67 प्रतिशत ऐसे लोग हैं जो कम से कम एक सोशल मीडिया मंच (फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम, यूट्यूब) पर मौजूद हैं (जनवरी 2023 तक)। इसके अलावा करीब 49 करोड़ लोग वॉट्सएप का इस्तेमाल करते हैं। भारत वॉट्सएप का सबसे बड़ा बाजार है।

इन सभी मंचों पर आने वाली सामग्री में सबसे ज्यादा लोकप्रिय छोटे वीडियो या रील हैं। जनसोच पॉलिटिकल कंसल्टेंसी के संस्थापक हमराज सिंह कहते हैं, ‘‘रील आने के साथ नेताओं के लिए अपनी हीरो जैसी छवि बनाना आसान हो गया है। आप देखेंगे कि कई नेता अपनी छवि को बड़ा करने में रील से काम लेते हैं। जैसे मोदी के पैदल चलते हुए शॉट या उनकी हिंदू वाली पहचान, उनके कपड़े, पूजा करती हुई वीडियो या लोगों से मिलने के दौरान, ये सबसे ज्यादा लोकप्रिय और पसंद किए जाने वाली रील हैं। ऐसी ही रीलें भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी की बनाई गई थीं।’’

इनफ्लुएंसर काल

भारत के लोग भावना-प्रधान हैं, इतिहास इसकी गवाही देता है। डिजिटल दौर के आने से पहले नेता लोग अकसर अभिनेताओं और चर्चित चेहरों के साथ प्रचार किया करते थे ताकि भीड़ बंटोर सकें। अब भी अक्षय कुमार और अमिताभ बच्चन खुलकर भाजपा के प्रचार अभियानों में हिस्सा लेते हैं। उसी तरह कई खिलाड़ी और मुख्यधारा से बाहर के चर्चित चेहरे कांग्रेस का प्रचार करते दिखते हैं। राजनीतिक दलों को अब यह समझ में आ चुका है कि लोगों तक पहुंचने के लिए सोशल मीडिया पर प्रचार करना बहुत जरूरी है और लोगों तक उन्हीं के माध्यम से पहुंचा जा सकता है जिन्हें लोग फॉलो करते हैं, यानी इनफ्लुएंसर।

इसीलिए राजनीतिक मसलों पर या प्रत्याशियों के बारे में हलचल पैदा करने में इनफ्लुएंसर सबसे असरदार माध्यम बनकर उभरा है। इनफ्लुएंसर न केवल राजनीतिक हस्तियों से सोशल मीडिया पर चर्चा करते हैं बल्कि उन्हें नागरिक जागरूकता अभियानों में हिस्सा लेने के लिए भी बुलाया जाता है, जैसे मतदाता जागरूकता अभियान, इत्यादि।

कोलकाता के एक समाजशास्‍त्री डॉ. अबीर चट्टोपाध्याय के अनुसार लोगों की धारणा को प्रभावित करने में सोशल मीडिया अहम भूमिका निभाता है। यह एक आभासी मंच है जो लोगों को उनके समाज से काटने का काम करता है। किसी इनफ्लुएंसर के माध्यम से नेता अकसर जमीन पर काम करने के अपने झंझट से मुक्त हो जाते हैं।

वे कहते हैं, ‘‘यह फायदे का सौदा है। बिना दिमाग खपाए उन्हें जबरदस्त लोकप्रियता मिलती है। ये बातचीत प्रतीकात्मक होती है। नेता पहले से तय सवालों के जवाब देते हैं। नतीजा पहले से तय होता है। इसलिए हर्र लगे न फिटकिरी और रंग चोखा।’’

गडकरी के साथ कामिया जानी

गडकरी के साथ कामिया जानी

सोशल मीडिया डाली गई सामग्री की पहुंच और उसके चर्चित होने की क्षमता पर फलता-फूलता है। यह इससे तय होता है कि एक वीडियो को कितने लोगों ने देखा, लाइक किया और सब्सक्राइब किया। हिमाचल प्रदेश के चुनाव में कांग्रेस के लिए काम कर चुके हमराज सिंह कहते हैं, ‘‘यूट्यूब जैसे मंचों पर सुविधा होती है कि आप जान पाएं कि कितने लोगों ने आपका शो देखा है। टीवी चैनलों या अखबारों में यह संभव नहीं। इसीलि‍ए नेताओं को अब सोशल मीडिया मंचों पर इनफ्लुएंसरों को ऐसे साक्षात्कार देने की अहमियत पता चल चुकी है।’’

क्या इनफ्लुएंसर अब पत्रकारों की परंपरागत जगह को ले रहे हैं? इस सवाल पर वे कहते हैं, ‘‘उन्होंने कभी नहीं कहा कि वे समाचार दिखा रहे हैं या नेताओं से निष्पक्ष होकर सवाल कर रहे हैं। वे इस तरह से सवाल बनाते हैं कि दोनों पक्षों को फायदा हो- पूछने वाले को भी और जवाब देने वाले को भी।’’

सिंह कहते हैं, ‘‘अपने किए इंटरव्यू में इनफ्लुएंसर पत्रकारीय शुचिता को कायम रखने के जवाबदेह नहीं होते। मेरा मानना है कि भारत में डिजिटल साक्षरता के मुकाबले डिजिटल प्रसार की रफ्तार बहुत तेज रही है। दिक्कत यहां है। इस बारे में कोई बात ही नहीं करता। क्या तथ्यात्मक है और क्या फर्जी, यह फर्क इसीलिए खत्म होता गया है। यह चलन अब बढ़ रहा है।’’

ध्रुव राठी

ध्रुव राठी

इनफ्लुएंसर अपने बनाए वीडियो से पैसा कमाने के लिए उसमें बाजार के उत्पादों का जिक्र करते हैं और उन्हें किसी न किसी रूप में प्रायोजित करते हैं। अपने वीडियो में नेताओं को दिखाने या राजनीतिक सामग्री डालने से उनके वीडियो को बूस्ट भी मिलता है। अपने फॉलोवर के लिए वे जब वीडियो बनाते हैं या कोई विचार जाहिर करते हैं, तो अकसर ऐसा होता है कि मामला विश्वसनीयता के पैमाने पर फंस जाता है। यह तय करना मुश्किल हो जाता है कि उसके विचार प्रायोजित हैं या खालिस। इस चक्क‍र में इनफ्लुएंसर संदिग्ध हो जाता है। यह सवाल अब भी कायम है कि क्या लोगों का मनोरंजन करते हुए एक इनफ्लुएंसर सार्वजनिक प्रसारण में निहित सामाजिक जिम्मेदारी को दरकिनार कर सकता है! 

चट्टोपाध्याय के मुताबिक असल समस्या सूचनाओं के बौछार की है। दर्शकों पर इतने ज्यादा कंटेंट की बमबारी कर दी जाती है उनके ऊपर पड़ने वाला प्रभाव कंटेंट की गुणवत्ता से तय नहीं हो पाता। वे कहते हैं, ‘‘लोग इसी बात से पगला जाते हैं कि उन्हें इतना व्यू और रीच मिल रहा है। उन्हें कंटेंट की अंतर्वस्तु से कोई मतलब नहीं होता जबकि इनफ्लुएंसरों की न तो कोई संस्थागत जिम्मेदारी होती है न ही कोई नैतिक बाध्यता।’’

 

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