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प्रथम दृष्टि: खेल और सियासत

नीरज चोपड़ा और अरशद नदीम की जोड़ी ने जेवलिन थ्रो में दुनिया में जिस तरह एशिया का दबदबा कायम किया, वह गवाह है कि भारत और पाकिस्तान के अधिकतर लोग चाहते हैं कि दोनों देशों के सांस्कृतिक संबंध हमेशा बहाल रहें
खेल भावना की मिसाल: पाकिस्तान के खिलाड़ी अरशद नदीम के साथ नीरज चोपड़ा

कला और खेल को सियासतदां बख्श ही दें तो देश और समाज के लिए बेहतर, लेकिन दुर्भाग्य कि ऐसा होता नहीं है। राजनैतिक स्वार्थ के लिए इनका इस्तेमाल सदियों से बदस्तूर जारी रहा है। इस सप्ताह हंगरी से ऐसी खबर आई जिसका इंतजार भारतीय खेलप्रेमी दशकों से कर रहे थे। हरियाणा के ‘ब्यॉय विद द गोल्डन आर्म’ नीरज चोपड़ा ने वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप के जेवलिन थ्रो प्रतिस्पर्धा में स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रच दिया। उन्होंने सिद्ध कर दिया कि पिछले ओलंपिक में उन्होंने स्वर्ण पदक संयोग से नहीं, अपनी विलक्षण प्रतिभा के बल पर जीता था। इस बार उन्होंने फिर यह साबित कर दिया कि विश्व में भाला फेंकने में उनके जैसा कोई दूसरा खिलाड़ी फिलहाल नहीं है।

इसके बावजूद कुछ लोगों को उनकी जीत इसलिए उल्लेखनीय लगी कि उन्होंने यह स्वर्ण पदक पाकिस्तान के अरशद नदीम को हरा कर हासिल किया, जिन्हें इस प्रतियोगिता में रजत पदक हासिल हुआ। इसी बात के हवाले से किसी ने नीरज की मां सरोज देवी से एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में उनकी प्रतिक्रिया पूछ ली। सरोज देवी ने जो कुछ कहा, उससे बड़े से बड़ा राजनीतिक, कूटनीतिज्ञ और टिप्पणीकार बहुत कुछ सीख सकता है। उन्होंने कहा कि मैदान में जब खिलाड़ी उतरते हैं तो किसी एक को जीतना ही होता है और यह मायने नहीं रखता है कि वह हरियाणा का है या पाकिस्तान का। उन्होंने पाकिस्तान के खिलाड़ी को रजत पदक मिलने पर खुशी भी जाहिर की।

सरोज देवी उसी नीरज चोपड़ा की मां हैं जिसने पाकिस्तान के अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी के साथ व्यवहार से भी दर्शकों का दिल जीता है। स्पर्धा का अंतिम निर्णय जाहिर होने के बाद तिरंगे को लहराते हुए नीरज ने जब देखा कि अरशद नदीम के पास पाकिस्तान का झंडा नहीं है तो उन्होंने उन्हें अपने पास बुला कर तस्वीर खिंचवाई। जाहिर है, उनके जेहन में यह खयाल रहा होगा कि वे दोनों मूलतः खिलाड़ी हैं, तल्‍ख रिश्तों वाले दो मुल्कों के नुमाइंदे नहीं।

नीरज और नदीम नई पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करते हैं जो खेल की दुनिया को सियासी चश्मे से नहीं देखती। उनके लिए ज्यादा सुकून देनी वाली बात यह है कि भारत और पाकिस्तान दोनों आज वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप में इस उपमहाद्वीप का परचम लहरा रहे हैं, जहां कभी यूरोप और अमेरिका के खिलाड़ियों का बोलबाला हुआ करता था। शायद यही वजह है कि सियासी समीकरणों को नजरअंदाज कर दोनों देशों के आम लोगों में भी आज इस बात का गर्व है कि सीमित संसाधनों के बावजूद उनके बीच से गए खिलाड़ी वैश्विक स्तर पर नाम कमा रहे हैं। आज नीरज चोपड़ा पाकिस्तान में उतने ही लोकप्रिय हैं, जितना किसी दौर में वहां भारत के सुनील गावस्कर और सचिन तेंडुलकर हुआ करते थे। 

यह भी सच है कि हर दौर में भारत और पाकिस्तान के खिलाड़ियों का आपसी रिश्ता प्रेम और भाईचारे का ही रहा है। क्रिकेट मैचों में मैदान पर उनकी प्रतिद्वंद्विता भले ही चरम पर दिखती रही हो, खेल खत्म होने के बाद उनके संबंध दोस्ताना ही रहते थे। जब सियासी कारणों से भारत और पाकिस्तान के मैच को एक-दूसरे के खिलाफ ‘जंग’ से कम नहीं समझा जाता था, उस दौर में भी दोनों टीमों के खिलाड़ी एक ही होटल में हंसी-मजाक के माहौल में समय बिताया करते थे। पाकिस्तान के पूर्व कप्तान जावेद मियांदाद सहित कई पाकिस्तानी खिलाड़ियों ने कहा है कि खेल के मैदान पर दिखने वाली उनकी प्रतिद्वंद्विता होटल पहुंचते ही खत्म हो जाया करती थी। उनमें से कई खिलाड़ी तो एक साथ इंग्लैंड की एक ही काउंटी टीम के लिए खेला करते थे।

इसके बावजूद जैसे-जैसे समय बीता, खेल और कला के क्षेत्रों पर दोनों देशों की सियासत की तल्खी का साया बढ़ता गया। राजनैतिक या तात्कालिक कारण जो भी रहे हों, भारत और पाकिस्तान ने एक-दूसरे के खिलाफ अपने-अपने देश में मैच खेलना बंद कर दिया, जिसका खामियाजा खेलप्रेमियों को उठाना पड़ा। आज वे गावस्कर बनाम इमरान खान जैसे मैचों के रोमांच से महरूम हैं। फिर भी, आज भारत और पाकिस्तान में करोड़ों खेलप्रेमी ऐसे हैं जो दोनों देशों के बीच खेल संबंधों के जल्द से जल्द सामान्य होने की दिली ख्वाहिश रखते हैं।

क्रिकेट की तरह ही सिनेमा सहित कला के अन्य क्षेत्रों में भी लोग दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान का सिलसिला फिर से शुरू होने की आस रखे हुए हैं। आज भी भारत में मेहंदी हसन, गुलाम अली और नुसरत फतेह अली खान के उतने ही प्रशंसक हैं, जितने लता मंगेशकर, मोहम्मद रफी और किशोर कुमार के चाहने वाले पाकिस्तान में हैं। दोनों देशों की अधिकांश आबादी चाहती है कि दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक संबंध हमेशा बहाल रहें और सियासी वजहों से उनके ऊपर किसी तरह की आंच न आए।

नीरज चोपड़ा और अरशद नदीम की जोड़ी की वैश्विक स्तर पर सफलता इसी बात को रेखांकित करती है, भले ही दोनों मुल्कों के सियासतदां इससे इत्तेफाक रखें या इनकार करें। 

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